गुवाहाटी। असम के गोलाघाट जिले के देरगांव कस्बे में 126 साल पुराने गोलाघाट बैपटिस्ट चर्च के एक चर्च नेता राज्य के ईसाई समुदाय के पहले व्यक्ति बन गए हैं, जिन्हें नव अधिनियमित असम हीलिंग ( बुराई की रोकथाम) प्रथा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है। फरवरी में हिमंत विश्व शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा पेश किए गए इस कानून को 14 मार्च को राज्यपाल की मंजूरी मिल गई थी। अधिनियम के अनुसार कि बुरी प्रथाओं का अर्थ है किसी भी व्यक्ति द्वारा आम लोगों का शोषण करने के लिए किसी भी तरह की चिकित्सा पद्धति और जादुई उपचार करना । पद्मपुर गांव के निवासी प्रांजल भुइयां को कथित तौर पर जादुई उपचार पद्धतियों के माध्यम से क्षेत्र में हिंदुओं को धर्मातरित करने के प्रयास के लिए गिरफ्तार किया गया था। 38 वर्षीय प्रांजल भुइयां को शनिवार को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया और उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। पुलिस ने भुइयां के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 316 (2), 318 (2), 354 और 299 के साथ-साथ असम हीलिंग (बुराई निवारण) प्रथा अधिनियम, 2004 की धारा 6 (ए) के तहत मामला दर्ज किया है । उपचारात्मक कानून की धारा 6 (ए) के तहत कोई भी व्यक्ति जो अधिनियम या इसके नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, उसे दोषसिद्धि पर, पहली बार अपराध करने पर एक वर्ष तक के कारावास से, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या 50,000 रुपए का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। इस बीच, असम क्रिश्चियन फोरम (एसीएफ) ने चर्च के सदस्य की गलत गिरफ्तारी और उसके साथ अपमानजनक व्यवहार की कड़ी निंदा की है। एसीएफ के प्रवक्ता एलन ब्रुक्स ने दिप्रिंट को बताया कि यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तथा ईसाई समुदाय को अनुचित रूप से निशाना बनाता है, तथा उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करता है । ब्रूक्स ने कहा कि विभिन्न धर्मो के लिए आवश्यक प्रार्थना और उपचार प्रथाओं का अपराधीकरण चिंताजनक है। कानून के संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध पुलिस को बिना उचित प्रक्रिया के गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने का व्यापक अधिकार देते हैं, जिससे नागरिकों के अधिकारों से समझौता होता है। संगठन की ओर से उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि वह कानून पर पुनर्विचार करे और सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करे, चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो। ब्रूक्स ने कहा कि ईसाई धर्म में जादुई उपचार जैसा कोई शब्द नहीं है। उन्होंने कहा कि असम में ईसाई मिशनरियों ने 1840 में पहला स्कूल स्थापित किया था। अगर धर्मांतरण ही मकसद होता, तो असम की लगभग आधी आबादी ईसाई होती ।