नवादा, (हि.स.)। संतमत के प्रणेता ब्रह्मलीन 108 श्री महर्षि में ही जी महाराज के पट शिष्य गुरु स्नेही स्वामी आशुतोष जी महाराज ने कहा है कि ध्याना अभ्यास से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। तभी मनुष्य अपने जन्म जन्मांतर के दुखों से छूट सकते हैं। वे रविवार को नवादा सन्तमत सत्संग आश्रम में स्वामी केशवानंद की पुण्यतिथि पर प्रवचन कर रहे थे। स्वामी आशुतोष ने कहा कि जन्म – मरण के बंधन में बंधे रहना मानव ही नहीं बल्कि सभी जीवों के दुख का सबसे बड़ा कारण है। जब तक जीव ईश्वर को पा नहीं लेगा। तब तक वह दुखों से नहीं छूट सकता। उन्होंने ईश्वर स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा कि ईश्वर कण-कण में विद्यमान है । इसीलिए संसार की सारी वस्तुएं ईश्वर में समाई हुई है। उन्होंने कहा कि ध्यान भजन नहीं करने वाला मानव सदा 84 लाख योनियों में भटक कर दुख पाता है। दुखों से छूटने का सबसे बड़ा माध्यम सच्चे संत सद्गुरु से युक्ति जानकर जतन करने से ही दुखों से छूटना संभव है। उन्होंने कहा कि 84 लाख योनियों के जीवों में केवल मानव को ही ईश्वर पाने का अवसर मिल सकता है । मानव खुद ही बाहर कहीं भी नहीं, इसी शरीर में ध्यानाभ्यास कर ईश्वर को पा सकता है। मानव शरीर के आत्म तत्व ही ईश्वर तत्व है। जो ध्यान -भजन के माध्यम से कड़ी साधना की सफलता के बल ईश्वर में मिल जाते हैं। ऐसा होने से ही इंसान दुखों से छूट जाता है। उन्होंने कहा कि ध्यान भजन नहीं करने वाला मानव सदा 84 लाख योनियों में भटक कर दुख पाता है। दुखों से छूटने का सबसे बड़ा माध्यम सच्चे संत सद्गुरु से युक्ति जानकर जतन करने से ही दुखों से छूटना संभव है। उन्होंने कहा कि 84 लाख योनियों के जीवों में केवल मानव को ही ईश्वर पाने का अवसर मिल सकता है । मानव खुद ही बाहर कहीं भी नहीं इसी शरीर में ध्यानाभ्यास कर ईश्वर को पा सकता है। मानव शरीर के आत्म तत्व ही ईश्वर तत्व है। जो ध्यान – भजन के माध्यम से कड़ी साधना की सफलता के बल ईश्वर में मिल जाते हैं। ऐसा होने से ही इंसान दुखों से छूट जाता है। उन्होंने कहा कि “जन्म मरण सब दुख दूजा है नहीं जग में कोई इनके निवारण के लिए गुरु भक्ति करनी चाहिए ।”उन्होंने कहा कि सच्चे संत सद्गुरु ही ईश्वर तक पहुंचने के रास्ते बताते हैं । भजन भेद के माध्यम से मनुष्य गुरु के रास्ते पर चलकर ईश्वर को पा सकता है। जब कोई भी मानव ईश्वर को पा लेगा, तो निश्चित तौर पर सदा सदा के लिए वह दुखों से छूट जाएगा। लेकिन जब तक वह दुनिया की माया में भटकता रहेगा, सदा दुखों को पता रहेगा ।