विश्वनाथ चाराली में हिंदी भाषा पर कार्यशाला संपन्न
विश्वनाथ (निसं)। विश्वनाथ चाराली राष्ट्रभाषा प्रबोध विद्यालय परिचालना समिति, विश्वनाथ के एक कक्ष मे कल संपन्न शैक्षिक कार्यशाला मे अनेक शिक्षण-संस्थाओं की छात्र-छात्राओं की भागीदारी उपयोगी रही। इस कार्यशाला मे प्रयागराज से पधारे भाषाविज्ञानी एवं समीक्षक आचार्य पं. पृथ्वीनाथ पांडे ने समस्त छात्र-छात्राओं तथा उपस्थित एक अध्यापक और चार अध्यापिकाओं से उनका परिचय प्राप्त करने के बाद स्वर और व्यंजन का बोध कराएा था तथा किसी भी शब्द मे पंचमाक्षर का कितना महत्व होता है, इसे बताया, समझाया तथा लिखाया था। उन्होंने अनुस्वार का शुद्ध प्रयोग करना सिखाया था। उन्होंने वर्णमाला का शुद्धता के साथ उच्चारण करना सिखाया था। आचार्य ने आरंभ मे पाठशाला मे पाठ के साथ जुड़े हुए शब्द शाला का अर्थ पूछा था, परंतु कोई भी प्रशिक्षणार्थी बताने मे समर्थ नहीं रहा, फिर आचार्य ने पाठ और शाला का अर्थ समझाते हुए, पाठशाला की उपयोगिता को समझाया। उन्होंने पाठशाला, विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय को हिंदी और अंग्रेजी मे समझाया था। उन्होंने वर्ण और अक्षर में अंतर सुस्पष्ट करते हुए, मात्रा का बोध कराएा था। उन्होंने यह भी सिखाया था कि किसी भी अर्द्ध-अक्षर में कोई भी मात्रा नहीं लगती। वाक्य का गठन कैसे किया जाता है। वाक्य-गठन के समय किसी भी वाक्य मे कर्त्ता, कर्म तथा क्रिया की किस प्रकार की उपयोगिता और महत्ता रहती ह, भूमिका रहती है, इसे लिखकर समझाया था। उन्होंने यह भी बताया और समझाया था कि किसी भी वाक्य मे किस स्थान पर कर्त्ता, कर्म तथा क्रिया रहती हैं तथा उनकी पहचान करने के लिए किस पद्धति का उपयोग करेंगे। आचार्य पं. पृथ्वीनाथ पांडे ने काल, काल के भेद-उपभेद को अंग्रेजी और हिंदी मे सोदाहरण समझाया था। इसके लिए उन्होंने कार्यशाला मे उपस्थित एकमात्र अध्यापक सुरेंद्र साहनी का चयन किया था। आचार्य बताते रहे और साहनी कृष्णपट्ट पर सुलेखन करते रहे। इस प्रकार उपस्थित समस्त छात्र-छात्राओं ने अपनी पुस्तिका मे लिखे हुए को उतारा था। उसके पश्चात् आचार्य ने पचास से भी अधिक शब्दों के शुद्ध लिंगों के कारण सहित ज्ञान कराए और लिखाए। इनके अतिरिक्त उन्होंने एक छात्रा को बुलाकर उससे चार अशुद्ध वाक्य लिखवाए थे, जिन्हें शुद्ध करने थे। उन्होंने अनेक छात्र-छात्राओं और अध्यापिकाओं से उन अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करने के लिए कहे, परंतु उनमे से कोई भी शुद्ध नहीं कर सका, अंत मे, आचार्य ने एक-एक वाक्य को कारण-सहित शुद्ध किया था। उपर्युक्त कार्यशाला मे लगातार 3 घण्टे तक प्रशिक्षण-कर्म किया जाता रहा तथा सभी प्रशिक्षु तन्मयतापूर्वक समझते रहे, लिखते रहे। कार्यशाला के अंत में चित्रा पौडेल और संतोष महतो ने आचार्य को अंगवस्त्र और विद्यालयीय पत्रिका महाबाहु दर्पण भेंटकर अपना सम्मान प्रदर्शित किया।