वित्तीय अनुशासन पर आरबीआई गंभीर, दिसंबर में हो सकता है ब्याज दरों में कटौती का फैसला

सितंबर और अक्टूबर के महंगाई के आंकड़ों पर निर्भर करेगा आरबीआई का फैसला भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने उम्मीद के अनुरूप लगातार 10वीं बार नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। माना जा रहा है कि आरबीआई ब्याज दरों में बदलाव या कमी करने के पहले सितंबर और अक्टूबर के महंगाई के आंकड़ों की भी समीक्षा करेगा। इन दोनों महीनो में भी अगर महंगाई के आंकड़े अनुकूल रहे, तो दिसंबर के महीने में होने वाली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला लिया जा सकता है। अमेरिका के केंद्रीय बैंक अमेरिकी फेडरल रिजर्व (यूएस फेड) ने पिछले महीने ही ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की थी। यूएस फेड ने इस साल ब्याज दरों में और 50 बेसिस पॉइंट्स तक की कटौती करने का भी संकेत दिया है। अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती होने के बाद दुनिया के कई देशों में ब्याज दरों में कटौती की गई या राहत पैकेज का ऐलान किया गया। चीन ने हाल में ही राहत पैकेज का ऐलान किया है। इसी तरह न्यूजीलैंड में कल ही ब्याज दरों में 0.50 प्रतिशत की कटौती करके उनको 5.25 प्रतिशत से 4.75 प्रतिशत के स्तर पर लाया गया है। न्यूजीलैंड में अगस्त के महीने में भी ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती की गई थी। यूएस फेड द्वारा ब्याज दरों में कटौती करने के बाद भारत में भी ब्याज दरों में कटौती होने की चर्चा शुरू हुई थी, लेकिन मिडिल ईस्ट के बढ़ते तनाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था में जारी उथल-पुथल की वजह से शुरुआती चर्चा के दौरान ही ब्याज दरों में कटौती होने की संभावना को खारिज कर दिया गया। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में भी 5-1 के बहुमत से इस बार ब्याज दरों में कोई बदलाव कर नहीं करने का फैसला लिया गया। इसके पहले अगस्त के महीने में भी आरबीआई ने अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में ये स्पष्ट कर दिया था कि ब्याज दरों में कमी का उसका कोई भी फैसला घरेलू अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करेगा । मार्केट एक्सपर्ट राजीव मोरारका का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले कई महीनों से लगातार खुदरा महंगाई दर को काबू करने पर अपना फोकस केंद्रित रखा है। आरबीआई की कोशिश के परिणाम भी नजर आ रहे हैं। इन कोशिशों से खुदरा महंगाई दर आरबीआई द्वारा तय लक्ष्य 4 प्रतिशत के काफी करीब पहुंच गई है। मोरारका के मुताबिक अगर सितंबर और अक्टूबर में भी महंगाई दर नियंत्रण में बनी रही, तो दिसंबर के महीने में आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ब्याज दरों में कमी करने का फैसला ले सकती है। उनका कहना है कि ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट्स की कमी की जा सकती है, लेकिन ये कटौती एक बार में करने की जगह दो बार में 25-25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती के रूप में हो सकती है। इसी तरह अरिहंत फाइनेंशियल सर्विसेज के सीईओ वैभव जैन का कहना है कि रिजर्व बैंक को एक साथ दो मोर्चों पर अपना ध्यान केंद्रित करना पड़ रहा है। आरबीआई पर एक ओर तो खुदरा महंगाई दर को नियंत्रित रखने का दबाव है, तो दूसरी ओर देश की आर्थिक वृद्धि दर को भी तेज बनाए रखने की चुनौती है। कोरोना काल के दबाव के कारण दुनिया भर के ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हुई है। ज्यादातर देशों की विकास सुस्त हुई है या फिर घट गई है। दूसरी ओर लेकिन कोरोना के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी रही है। खासकर, कोरोना काल खत्म होने के बाद भारतीय अवस्था में अर्थव्यवस्था में जबरदस्त तेजी का रुख बना है। विकास दर में आई इस तेजी का पूरा श्रेय भारत रहने का जताया अनुमान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने बुधवार को वित्त वर्ष 2024-25 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। आरबीआई गवर्नर ने 7 अक्टूबर से | शुरू तीन दिवसीय मौद्रिक नीति समीति (एमपीसी) की समीक्षा बैठक में लिए गए इस फैसले की जानकारी | दी। शक्तिकांत दास ने बैठक के बाद मीडिया को बताया कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में वास्तविक जीडीपी में वृद्धि 6.7 फीसदी हुई है। सरकार की नीतियों और रिजर्व बैंक के वित्तीय अनुशासन को जाता है। आरबीआई आगे भी वित्तीय अनुशासन को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। यही कारण है कि तमाम मार्केट प्रेशर के बावजूद केंद्रीय बैंक अपनी मौद्रिक नीति में कोई लचीलापन नहीं दिख रहा है। वैभव जैन का कहना है कि ब्याज दरों में कटौती करने से लिक्विडिटी जरूर बढ़ेगी लेकिन इससे एक बार फिर खुदरा महंगाई दर में तेजी आने की संभावना बन सकती है। इसीलिए आरबीआई ने आज ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करके इस बात का सष्ट संकेत दे दिया है कि जब तक स्थितियां पूरी तरह से अनुकूल नहीं होंगी, तब तक ब्याज दरों में बदलाव या कटौती नहीं की जाएगी। वित्तीय अनुशासन से ही महंगाई पर पूरी तरह से काबू पाने में सफलता मिल सकती है और देश के विकास दर की रफ्तार भी उम्मीद के अनुरूप रखी जा सकती है।

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