बरामदा कैबिनेट की बैठक

बरामदा कैबिनेट की बैठक
बरामदा कैबिनेट की बैठक

आज तोताराम अपनी पत्नी मैना के साथ आया । बड़ी हड़बड़ाहट में था। बैठने से पहले ही बोला- भाभी को जल्दी बुला । हमने पूछा- क्यों, क्या मैना को कोई समस्या आ गई ? बोला- समस्या कुछ नहीं । बस, प्रांतीय महत्व के एक काम के लिए तत्काल मीटिंग करनी है और सर्व सम्मति से प्रस्ताव पास करना है । हमने कहा- यहां कोई विपक्ष भी नहीं है और अगर होता भी तो अध्यक्ष से एक ही झटके में 100-150 को एक साथ निलंबित करवा देते और जो करना होता सो कर लेते मीटिंग क्या तू जब कहे, जो प्रस्ताव कहे पास करवा दें। बरामदा संसद का लंगड़ा ही सही बहुमत अपने पास है तो चुनाव आयोग, न्यायालय, पुलिस, ईडी सब अपनी मुट्ठी में हैं। नहीं होता तो ‘ऑपरेशन तोता ‘ चलाकर खरीद लेते। वैसे ऐसा क्या जरूरी काम आ गया ? बोला- कल 8 फरवरी को बरामदा संसद के सभी सदस्य कुम्भ में स्नान करेंगे और उसके बाद मंत्री परिषद की बैठक होगी जिसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे। हमने कहा- वैसे तो संसद के सामने कोई एजेंडा नहीं है फिर भी बैठक के लिए वहां जाकर मरने की बजाय यहीं ठीक है । चार कंधे तो मिल जाएंगे। कुम्भ में मरने पर सरकार इमेज बचाए रखने और मुआवजे से बचने के लिए पुलिस से लाश ही गंगा में फिंकवा देगी। बोला- योगी जी ने भी तो अपने मंत्रीमंडल के साथ स्नान किया था और अब भजन जी भी मंडली के साथ कल कुम्भ में स्नान करेंगे। क्या सब मूर्ख है जो वहीं स्नान- ध्यान, काम-करम कर रहे हैं। हमने कहा- हो सकता है कोई बड़ा पाप धोने के लिए गए हों जो उन्हें रातों को डराता हो, सोने नहीं देता हो। हमने कोई पाप नहीं कर रखा जिसे धोने के लिए आज ही कुम्भ स्नान करना पड़े। पहले पाप करने के लिए कोई पद तो मिले फिर धोने के लिए कुम्भ में भी चले चलेंगे। बोला- क्या कुम्भ में जाने वाले सभी पापी होते हैं ? कुम्भ में तो अंबानी, अदानी, शाह, स्टीव जॉब्स की पत्नी, शाहरुख, सलमान, अमिताभ, आलिया भट्ट, रणवीर, विराट कोहली, रोनाल्डो, मैसी आदि तो गए तो क्या सब पापी हैं ? और कुम्भ में तो नेहरू जी भी गए थे तो क्या वे भी पापी थे ? हमने कहा- हम यह नहीं कह रहे लेकिन नेहरू जी कुम्भ स्नान करने नहीं बल्कि वहां की व्यवस्था देखने गए थे । उसके बाद भगदड़ वाली दुर्घटना होने पर उन्होंने संसद में उस पर चर्चा की और भविष्य में नेताओं को मेले के समय कुम्भ में जाने से परहेज करने की सलाह भी दी थी। जबकि अब तो विज्ञापन करके लोगों को बुलाया जा रहा है। । हजारों करोड़ खर्च करके लाखों करोड़ का सपना देखने दिखाने का धंधा चल रहा है, कुम्भ के बहाने चुनाव की राजनीति की जा रही है। वरना कर्म, सत्कर्म, दुष्कर्म कुछ भी करने के लिए कहीं भी जाने की कोई जरूरत नहीं होती । रैदास के तो कठौते में ही गंगा थी। बोला- तो क्या गंगा, जमुना, हिमालय, प्रकृति, तीज-त्योहार, संस्कृति का कोई मतलब नहीं ? हमने कहा- है लेकिन प्रेम और प्रदर्शन में बहुत फ़र्क होता है। जिसके मन में प्रेम नहीं होता वही बाहर बाहर प्रेम का ढिंढोरा पीटता फिरता है, प्रदर्शन करता है । हमारे दादाजी भी रामेश्वरम गए थे 1932 में पैदल लेकिन उनके साथ कोई फोटोग्राफर नहीं था और न ही गांव में आकर भक्ति का नाटक किया । हमारे मामाजी 1965 में पोते की मन्नत मांगने अकेले हरिद्वार से कांवड़ लाए थे लेकिन न किसीने रास्ते में हैलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा की और न ही रास्ते में किसी मुसलमान ठेले से फल लेने या किसी की जाति पूछे बिना उसकी गुमटी से चाय पी लेने से उनका धर्म भ्रष्ट हुआ माल-ए- मुफ्त दिल-ए-बेरहम | जनता का पैसा है फूंकें तरह तरह के तमाशों में । नेता बनने से पहले ये रईस की दुम एक बनियान को तीन दिन पहना करते थे ।

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