पर्यटन के साइड इफेक्ट

पर्यटन के साइड इफेक्ट
पर्यटन के साइड इफेक्ट

छुट्टियों में चढ़ता घरेलू पर्यटन का बुखार हिमाचल की आबोहवा में रंग घोलता है, तो इसी के साथ कुछ  अवांछित पहलू भी जुड़ जाते हैं। सारे यात्री पर्यटक नहीं हो सकते, इसलिए सही पर्यटन को चिन्हित करना होगा, जबकि हिमाचल में हर आने वाले की पहचान तथा उसके आचरण की निगरानी बेहद जरूरी है। प्रदेश में एक हुजूम ऐसा भी आने लगा है, जो भ्रमित है या हिमाचल में आकर पर्यटन के आंकड़े बिगाड़ रहा है। एक और पर्यटक समूह है, जो अभी आया नहीं या यहां पहुंचा नहीं, उसे बुलाने की जरूरत है। जो भीड़ आती है, उसका पर्यटन से अलग करके मुआयना करना होगा। सही को सहेजना और गलत को वापस भेजना भी पर्यटन की कला है। सही वह है जिसे हाई एंड टूरिस्ट कहते हैं। उसके लिए सुकून चाहिए। उसे संस्कृति, पर्वतीय आबोहवा, परंपराओं में बहती सादगी और पहाड़ी रिवायत में गीत-संगीत व ट्राइबल जीवन से रूबरू होना है। इस तरह असली पर्यटक तो अभी आया नहीं, क्योंकि उसके लिए रास्ते अभी बने नहीं और जो रास्ते बने, उनसे पर्यटन के नाम पर हमने अवांछित भीड़ इकट्ठी कर ली। यही भीड़ ऊना में पुलिस से उलझ जाती है, तो मणिकर्ण गुरुद्वारे के दर्शन को अफरा-तफरी में बदल देती है। आखिर यह कौनसा पर्यटन है, जो झंडा प्रदर्शन की इबारत में चुनौती दे रहा है। क्या हिमाचल इस हुड़दंग की गिनती भी पर्यटन में करता है। हम इन्हें किसी राज्य से जोड़कर नहीं देख सकते, लेकिन वर्ष के सारे यात्री साधु नहीं होते या हिमाचल की पर्यटन महफिल को अशांत करने वालों से निपटने की व्यवस्था करनी चाहिए। हम अगर पर्यावरण राज्य हैं, तो एक सीमा से आगे बाहरी राज्यों के पुराने वाहनों खास तौर पर बाइकर्ज को आने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थलों से दस किलोमीटर पहले ही बाहरी वाहन रोककर आगे का सफर सार्वजनिक परिवहन या रज्जुमार्गों के माध्यम से ही संभव करना होगा हिमाचल में पर्यटन को अनुशासित, उपयोगी और शालीन बनाए रखने के लिए पुलिस की गश्त चौबीस घंटे करनी पड़ेगी। अब हमें पर्यटन पुलिस के खाके में मेहनत करते हुए देश में सबसे आगे खड़ा होना पड़ेगा। दरअसल हमने पर्यटन को फेरी बना दिया है, जहां चंद गेड़ीबाज लोग माहौल को खराब कर रहे हैं। यह भीड़ पर्यटन है जो प्रदेश के शांत माहौल में आवारगी का आलम पैदा करता है। इसी भीड़ के बीच पर्यटन की सौम्यता का कायल युवा पढ़ा-लिखा व कारपोरेट से जुड़ा सैलानी आहत होता है । गेड़ीबाज पर्यटक किसी न किसी तरह के पुराने- अनफिट वाहन पर सवार होकर आ रहा है। परिवहन के मानकों को नजरअंदाज करके कानून-व्यवस्था पर दबाव डाल रहा है। इसे पर्यटक अधोसंरचना से कोई सरोकार नहीं। यह मुफ्त के लंगर खोज रहा है या एक दिन और रात के सफर में सामाजिक ताने-बाने, धार्मिक परंपराओं और शिष्टाचार के सारे पैमानों को नजरअंदाज कर रहा है। इसकी जिज्ञासा में हो- हल्ले का सफर ही मुकम्मल है और यह प्रकृति के विपरीत खतरे मोल लेता है। कांगड़ा की बनेर खड्ड में अगर पंजाब का युवक डूब कर मरा, तो यह खुदकुशी है। वहां सुरक्षा के सारे इतंजाम तथा चेतावनियों के बावजूद अगर पानी से छेडख़ानी होगी, तो मौत की मंजिल तय है।

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