नई दिल्ली। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने डेरिवेटिव ट्रेडिंग में अटकलबाजी और खुदरा निवेशकों को हो रहे भारी नुकसान पर रोक लगाने के लिए छह सुधारात्मक उपायों का ऐलान किया है। सेबी के मुताबिक इन उपायों का उद्देश्य डेरिवेटिव बाजार में स्थिरता लाना और निवेशकों के हितों की सुरक्षा तय करना है। सेबी के मुताबिक पिछले तीन वित्त वर्षों में 93 फीसदी से ज्यादा खुदरा निवेशकों को वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) सेगमेंट में कुल 1.8 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इतनी बड़ी मात्रा में घाटा होने से आरबीआई और मुख्य आर्थिक सलाहकार सहित अन्य वित्तीय नियामकों ने भी चिंता जताई थी। इसको ध्यान में रखते हुए सेबी ने डेरिवेटिव ट्रेडिंग ढांचे अहम बदलाव किए हैं। पहले डेरिवेटिव अनुबंधों का आकार 5 लाख था, जिसे बढ़ाकर 15 लाख रुपए कर दिया गया है। यह पहली बार है जब पिछले 9 साल में अनुबंध के आकार में कोई बदलाव किया गया है। वही शॉर्ट पोजीशन अनुबंधों पर अतिरिक्त 2 फीसदी का अत्यधिक नुकसान मार्जिन लागू किया जाएगा, जो 20 नवंबर 2024 से लागू होगा। ब्रोकरों को अब ऑप्शन खरीदारों से प्रीमियम अग्रिम में लेना अनिवार्य होगा, जिससे इंट्राडे ट्रेडिंग में अत्यधिक लाभ उठाने से रोका जा सके। साप्ताहिक निपटान को प्रति एक्सचेंज एक बेंचमार्क तक सीमित किया गया है। इससे अत्यधिक अटकलबाजी और बाजार में अस्थिरता कम होगी। स्टॉक एक्सचेंजों को निर्देश दिया गया है कि वह पोजीशन लिमिट पर इंट्राडे के आधार पर नजर रखें। यह नियम अप्रैल 2025 से लागू होगा। निपटान के दिन अलग कैलेंडर की व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है, ताकि बाजार में समानता और पारदर्शिता आए। सेबी के इन बदलावों का उद्देश्य खुदरा निवेशकों को हो रहे भारी नुकसान को कम करना और डेरिवेटिव बाजार में स्थिरता लाना है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये कदम आने वाले समय में खुदरा निवेशकों को सुरक्षित निवेश वातावरण प्रदान करने में मददगार साबित होंगे।