जब हम अपने श्रेष्ठ अध्यापकों द्वारा शिष्यों के प्रति निभाई गई उनकी कर्तव्यपरायणता के लिए उन्हें याद करते हैं, सम्मानित करते हैं तो वहीं उन कतिपय कदाचारी अध्यापकों का भी स्मरण हो आता है जिनकी निकृष्ट सोच, हवस और गिरी हुई हरकतों के चलते समस्त शिक्षक जगत को आलोचना प्रताडऩा का संताप झेलना पड़ता है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य चरित्र निर्माण ही होता है, जिससे आगे चलकर साहस, ऊर्जा, दृढ़ता, बुद्धि, विवेक और अन्य गुणों में वृद्धि होती है और आप इन गुणों के बलबूते ही अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं । गाइ कावासाकी के अनुसार, ‘अगर आपको किसी को ऊंचे स्थान पर रखना है, तो शिक्षकों को रखें। वे समाज के नायक हैं।’ जब हम अपने श्रेष्ठ अध्यापकों द्वारा शिष्यों के प्रति निभाई गई उनकी कर्तव्यपरायणता के लिए उन्हें याद करते हैं, सम्मानित करते हैं तो वहीं उन कतिपय कदाचारी अध्यापकों का भी स्मरण हो आता है जिनकी निकृष्ट सोच, हवस और गिरी हुई हरकतों के चलते समस्त शिक्षक जगत को आलोचना प्रताडना का संताप झेलना पड़ता है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य चरित्र निर्माण ही होता है, जिससे आगे चलकर साहस, ऊर्जा, दृढ़ता, बुद्धि, विवेक और अन्य गुणों में वृद्धि होती है और आप इन गुणों के बलबूते ही अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं । चरित्र रक्षण को लेकर संस्कृत साहित्य में कहा भी गया है कि, ‘वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च। अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः ॥’ अर्थात चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर भी चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र नष्ट होने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है । लेकिन हम साल दर साल कई शिक्षकों के अमर्यादित आचरण से कलंकित होते शिक्षक समाज की व्यथा से पार नहीं पा रहे हैं। आजकल हमारे अध्यापकों के समक्ष वर्तमान भौतिकतावादी जीवन के दृष्टिगत अपने शिक्षार्थियों में न केवल भारतीय संस्कृति के अनुरूप उच्चकोटि के संस्कारों का परिमार्जन करने की चुनौती है, अपितु उन्हें आगामी जीवनपथ पर आने वाली कठिनाईयों-संघर्षों से लड़ने का जीवट कैसे पैदा हो, यह सामथ्र्य व साहस भरने का दृष्टिकोण विकसित करने की गुरुतर जिम्मेदारी भी है। अध्यापकों को शिक्षण कार्य के इतर कई प्रकार की गतिविधियों को संचालित करना होता है ताकि विद्यार्थियों का सर्वांगीण चहुंमुखी विकास हो, लेकिन इधर बीते वर्षों में शिक्षा व्यवस्था को ही बेतरतीब भारी भरकम पाठ्यक्रम, शैक्षणिक कार्य के अलावा अन्य कार्यों का संपादन एवं विभिन्न दिवसों के आयोजन के घालमेल वाला बना दिया गया है। आज नन्हें बच्चों का बस्ता भारी है, प्राइमरी शिक्षा प्रणाली वाले स्कूलों में अध्यापकों का अभाव है और बच्चों के लिए भम्रण कार्यक्रमों आदि की व्यवस्था न होना भी उनके सर्वांगीण विकास को प्रभावित कर रहा है। स्कूलों में खेल, वाद विवाद, भाषण, संगीत आदि प्रतियोगिताओं का महज खानापूर्ति के लिए आयोजन होने से हम आज भी वास्तविक शैक्षिक लक्ष्यों से कोसों दूर हैं। लेकिन हमें तमाम अवरोधों बाधाओं के बावजूद आगे बढना होगा। विनम्रता, धैर्य और दृढ़ता ये सभी गुण एक प्रेरक शिक्षक की पहचान हैं। शिक्षकों में बालकों के समक्ष आने वाली चुनौतियों से सामना करने के लिए और उनका मार्गदर्शन करने का महनीय सामथ्र्य होना चाहिए। तभी वे समाज में सार्थक बदलाव ला सकते हैं और अपने शिष्यों के महान रोल मॉडल भी बन सकते हैं। जहां तक हिमाचल प्रदेश की शैक्षिक प्रगति का सवाल है तो हिमाचल प्रदेश की साक्षरता दर अब आजादी के समय के 8 प्रतिशत से बढक़र 88 प्रतिशत से अधिक हो गई है। इसमें पुरुष साक्षरता दर 89.53 प्रतिशत है जबकि महिला साक्षरता दर 75.93 प्रतिशत है । वर्तमान समय में प्रदेश में लगभग 15 लाख छात्र शैक्षणिक संस्थानों में नामांकित हैं, जिनमें से 55 प्रतिशत छात्र सरकारी संस्थानों में हैं एवं राज्य सरकार नामांकन प्रतिशत को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने डा. यशवंत सिंह परमार विद्यार्थी ऋण योजना शुरू की है, जिसके तहत विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए एक प्रतिशत ब्याज दर पर 20 लाख तक का ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। हिमाचल सरकार सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों में राजीव गांधी राजकीय मॉडल डे बोर्डिंग स्कूल भी बना रही है जो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे। हाल ही में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने शिक्षा विद्या केंद्र का शुभारंभ किया है। केंद्र सरकार के समग्र शिक्षा विकास कार्यक्रम के तहत समीक्षा केंद्र खोलने वाला हिमाचल देश का तीसरा राज्य बन गया है। विद्या समीक्षा केंद्र डेटाबेस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित होगा। हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों के 200 शिक्षकों को एक्सपोजर विजिट के लिए सिंगापुर भेजा गया था और अब सरकार ने विद्यार्थियों को भी एक्सपोजर विजिट पर विदेश भेजने का निर्णय लिया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना शुरू की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य विधवा, बेसहारा, तलाकशुदा महिलाओं और दिव्यांग माता-पिता को उनके बच्चों की शिक्षा और कल्याण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है । शिक्षा विभाग में शून्य पंजीकरण वाले 99 स्कूलों और दो से पांच संख्या विद्यार्थियों वाले 460 स्कूलों को बंद करके सरकार ने सकारात्मक बदलाव की दिशा में साहसिक कदम बढ़ाए हैं। प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस हमें एक मौका उपलब्ध करवाता है ब हम कह सकते हैं कि शिक्षक का हमारे जीवन में अमूल्य योगदान है। शिक्षकों के बिना यह मनुष्य जीवन सार्थक नहीं है। हर किसी के जीवन में एक गुरु या शिक्षक का होना बेहद आवश्यक है। इसलिए हम सभी को सदा शिक्षकों का मान-सम्मान करना चाहिए और उनकी बातों पर अमल करना चाहिए। हमारी बाल्यावस्था से लेकर महाविद्यालयीन शिक्षा के दरमियान अनेकों शिक्षक हमारा मार्गदर्शन करते हैं और विभिन्न तौर तरीकों, उपायों और तकनीकों से हमें भावी जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करते हैं । जब कोई विद्यार्थी किसी शिक्षक को मिलकर यह कहता है कि आदरणीय गुरुवर आज मैं जिस मुकाम पर हूं, वहां तक पहुंचाने में आपका भी योगदान है, तो समझिए उस शिक्षक के लिए इससे बड़ी प्रशंसा और क्या हो सकती है। आज शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं दैनिक ‘दिव्य हिमाचल’ के सुधी पाठकों को हार्दिक बधाईयां ।