नई दिल्ली। एक शख्स को सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 28 साल बाद नौकरी मिली है। दरअसल, अंकुर गुप्ता नाम के शख्स ने साल 1995 में डाक सहायक के पद के लिए आवेदन किया था। प्री-इंडक्शन ट्रेनिंग के लिए चुने जाने के बाद में अंकुर को इस आधार पर मेरिट लिस्ट से बाहर कर दिया गया कि उन्होंने वोकेशनल स्ट्रीम से 12वीं की शिक्षा पूरी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए अंकुर गुप्ता की नियुक्ति का आदेश दे दिया कि उसे इस पद के लिए अयोग्य ठहराने में गलती हुई है। मेरिट लिस्ट से बाहर होने के बाद अंकुर गुप्ता अन्य असफल उम्मीदवारों के साथ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में चले गए, जिसने 1999 में उनके पक्ष में फैसला सुनाया। हालांकि, यह फैसला डाक विभाग को रास नहीं आया और उसने ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देते हुए साल 2000 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने साल 2017 में याचिका खारिज कर और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश को बरकरार रखा। वहीं, हाई कोर्ट में एक समीक्षा दायर की गई थी जिसे 2021 में खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद डाक विभाग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि अगर अभ्यर्थी की उम्मीदवारी को शुरुआती चरण में खारिज नहीं किया गया और सलेक्शन प्रोसेस में शामिल होने दिया गया। अंततः उनका नाम मेरिट लिस्ट में भी आया है । तो वह इसलिए उम्मीदवारी का दावा नहीं कर सकता है क्योंकि उसका नाम मेरिट लिस्ट में शामिल है। उसके पास निपक्ष व्यवहार के लिए सीमित अधिकार होते हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि डाक विभाग अगर संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य है, को मनमाने तरीके से काम करने और उम्मीदवार को बिना किसी कारण के बाहर निकालने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि अगर डाक विभाग ने अंकुर गुप्ता को शैक्षिक योग्यता की शुरूआती समय में ही अयोग्य घोषित कर दिया होता, तो स्थिति पूरी तरह से अलग होती ।