जलवायु परिवर्तन : असम अब बाढ़ और सूखे दोनों के प्रति संवेदनशील

गुवाहाटी। असम में चराइदेउ, डिब्रूगढ़ शिवसागर, दक्षिण सलमारा मनकाचर और गोलाघाट के बीच क्या समानता है ? ये जिले बाढ़ और सूखा दोनों ही प्रवण हैं । यह खुलासा भारत के लिए जिला स्तरीय जलवायु जोखिम आकलन: आईपीसीसी फ्रेमवर्क का उपयोग करके बाढ़ और सूखे के जोखिमों का मानचित्रण नामक रिपोर्ट का हिस्सा है, जिसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी ने आईआईटी मंडी और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी), बेंगलुरु के सहयोग से जारी किया है। रिपोर्ट का आज अनावरण किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई जिले बाढ़ और सूखे दोनों का जोखिम झेल रहे हैं। बाढ़ के उच्च जोखिम वाले शीर्ष 50 जिलों और सूखे के उच्च जोखिम वाले शीर्ष 50 जिलों में से 11 जिले बाढ़ और सूखे के दोहरे जोखिम में हैं। इस प्रकार के जोखिम का सामना करने वाले जिलों में बिहार में पटना, केरल में अलपुझा, ओडिशा में केंद्रपाड़ा और पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद, नदिया और उत्तर दिनाजपुर शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि असम का बरपेटा जिला, केरल के अलपुझा के बाद, सबसे अधिक बाढ़ जोखिम वाले जिलों में दूसरे स्थान पर है । अत्यंत उच्च बाढ़ जोखिम के अंतर्गत वर्गीकृत 51 जिलों में से 24 असम में, 14 पश्चिम बंगाल में तथा शेष मणिपुर, बिहार, जम्मू और कश्मीर, ओडिशा, उत्तराखंड और केरल में फैले हुए हैं। इस बीच, अत्यंत उच्च सूखा जोखिम श्रेणी के 90 प्रतिशत से अधिक जिले (91 में से 83) बिहार, असम, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में स्थित हैं। रिपोर्ट के लॉन्च के दौरान बोलते हुए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) में वैज्ञानिक प्रभागों की प्रमुख डॉ. अनीता गुप्ता ने कहा कि जलवायु परिवर्तन हमारे समय की सबसे विकट चुनौतियों में से एक है, जो कृषि, आजीविका और जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रहा है। कोई भी एक इकाई अकेले इसका समाधान नहीं कर सकती है – इसके लिए सामूहिक प्रयासों और अभिनव रूपरेखाओं की आवश्यकता है। इस रिपोर्ट के माध्यम से, हम कमजोरियों की पहचान करने, संवेदनशीलता का आकलन करने और जोखिम में स्थानीय समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हैं। डॉ. गुप्ता ने इन निष्कर्षो को कार्रवाई योग्य उपायों में बदलने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अंतर्दृष्टि राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर हितधारकों तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ शुरुआत है, क्योंकि भारत एक स्वच्छ, हरित और जलवायु – लचीला भविष्य प्राप्त करने के लिए एक संतुलित अनुकूलन और शमन रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। हम सब मिलकर 2047 तक विकसित भारत और नेट जीरो भारत के अपने लक्ष्यों को तेजी से हासिल करेंगे। आईआईटी गुवाहाटी के निदेशक प्रो. देवेंद्र जलिहाल ने भारत जैसे कृषि प्रधान समाज में जलवायु चुनौतियों से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया, जहां मानसून एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि भारत का कृषि प्रधान समाज मानसून पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली चुनौतियां, जैसे सूखा और अत्यधिक वर्षा, लगातार गंभीर होती जा रही हैं।

जलवायु परिवर्तन : असम अब बाढ़ और सूखे दोनों के प्रति संवेदनशील
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