
बिलासपुर से पूछने लगा है कि हे भाई ‘यह पूर्व विधायक बंबर ठाकुर पर आक्रमण क्यों हो रहे और इस बार तो गोली ने गहरे जख्मों से पूरे परिवेश को कलंकित किया ।’ कुछ तो है जो तेरी गली में डाकू आने लगे, वरना इसी राह से तो वो पुजारी जाता है। हो सकता है बंबर ठाकुर किसी सियासी आक्रोश का प्रतीक हो । उनके निजी मसलों में खोट हो, लेकिन कानून व्यवस्था के दर्पण अगर यूं टूटने लगे, तो हिमाचल का चेहरा न जाने कितना विकृत नजर आएगा। विडंबना यह कि होली के दिन अपराध की बारात निकल आई और पिचकारी से गोली निकल आई। यह पहला चित्र नहीं, इससे पूर्व भी युद्ध का मैदान सजा था। वहां कौन लड़ रहा है और हर बार यह बंबर सिंह ठाकुर ही क्यों मिल रहा है। यह कोई गुटीय संघर्ष है या सियासत का नायक अब यूं ही गोलियों के बीच मिलेगा। कम से कम इस गोली कांड ने सैकड़ों तोहमतें बटोर ली हैं और अब चर्चाओं के सदमे रोज मिलेंगे। चर्चाएं कयामत तक पहुंचने लगीं, तो कसूर कहने का नहीं आंखों देखीने, नफरत के दीये देखे हैं। बिलासपुर की आंखों देखी अब गोलियों के इस षड्यंत्र से डरने लगी। पहले बीबीएन में गोलियों की गलियों से सियासत का प्रभुत्व नाचा और अब सियासत की दौलत में बिलासपुर का अमन चकनाचूर होने लगा है। अपराध नंगे पांव चलकर आ रहा है, लेकिन इसके बीच सियासी चरित्र, सियासी पहचान और सियासत के प्रभाव को हर दौर और हर रुतबे में समझना होगा । आखिर हिमाचल क्यों असामान्य दिखाई देने लगा है और क्यों अपने सामान्य व्यवहार से दूर रहने लगा है। क्या यहां भी सियासत अपने प्रोफेशन से धंधे तक पहुंच गई या तमाम धंधों ने सियासत को पूज लिया। वो रेत- वो बजरी, तेरे महलों ने तो दुकान खोल ली। वो शराब, वो शराबी तेरे गल्ले ने उसकी जेब लूट ली। कहना न होगा कि हिमाचल में माफिया अब सिर पर चढ़कर बोल रहा है। बहुत पहले पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने माफिया के प्रवेश को हर भूमिका में इंगित किया था। अब यह नई सज्जनता है, जिसके पीछे सारा दारोमदार चल रहा है। हिमाचल में जिंदगी के हर पहलू में अगर सियासत रहेगी, तो माफिया हर कदम पे अपना कदम गिनेगा। यह जारी है। देखते ही देखते यह प्रदेश अगर पहाड़ को काटने का हुनर सीख गया, नदी-नालों को छान कर व्यापार सीख गया या चिट्टे की खान में धंधा चला पाया, तो जुर्म की गलबहियों में आर्थिक अपराध बढ़ गए हैं। एक वक्त था जब खच्चरों पर राशन और रेत ढोया जाता था। आज खच्चर के आगे टैक्सी और जेसीबी खड़ी हो गई। यह आर्थिक क्रांति हो सकती है, लेकिन जब इनका संचालन समाज के साथ सियासत करने लगे, तो हर छतरी के नीचे असामान्य राजनीतिक प्रश्रय पैदा हो रहा है। कभी बिकते शराब के ठेके को देखना, कभी सडक़ – इमारत के निर्माण से पहले ठेका हासिल करने का तरीका देखना। देखना विकास की उड़ती हुई धूल के नीचे और पीछे कौनसा सियासी पक्ष मजबूती से खड़ा है। इसलिए हिमाचल में राजनीति अब सीधी ठेकेदारी से जुड़ गई है। चाहे कोई भी सत्ता आए, हर विधायक के कुछ कार्यकर्ता ठेकेदार बन जाते हैं। पहले छोटे, फिर बड़े बन जाते हैं ।
