
दिल्लीअद्र्धराज्य की नई भाजपा सरकार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रपटों पर बहुत फुनफुना रही है। ऐसा आभास दिया जा रहा है कि इधर कैग रपटों को विधानसभा में पेश किया जाएगा, उधर प्राथमिक विश्लेषण के बाद पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जाएगा । जनता और नौसीखिया मीडिया को इतना भ्रमित न करें। कैग की रपट सदन में पेश करना एक संवैधानिक बाध्यता है। यह सिर्फ सरकारी हिसाब-किताब की व्यवस्था है कि सरकार ने खर्च ठीक किए अथवा आनुपातिक तौर पर गलत किए गए। सरकार के आर्थिक फैसलों और कामकाज में क्या अनियमितताएं हैं, कैग उन पर सवाल उठा सकता है, लेकिन कैग का काम घाटा, नुकसान आदि बताना नहीं है और न ही वह घूस, भ्रष्टाचार आदि का उल्लेख कर सकता है । यह अन्य एजेंसियों का संवैधानिक दायित्व है। कैग की रपट कोई अदालती वारंट भी नहीं है कि पिछली सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रियों को जेल में डाला जा सके। यदि ऐसा होता, तो महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात सरीखे राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री समेत केंद्रीय वित्त मंत्री भी जेल में होने चाहिए थे। कैग ने उन पर भी गड़बडियों या ज्यादा, फिजूलखर्ची के सवाल उठाए हैं। दिल्ली की नई-नवेली मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने शराब घोटाले से जुड़ी की रपट विधानसभा में पेश की है। अभी 13 और रपटें हैं, जिन्हें पेश किया जाना है। उनमें 6 रपटें ऐसी बताई जाती हैं, जो करीब 500 दिनों से धूल फांक रही हैं, क्योंकि उन्हें सदन में पेश नहीं किया गया। केजरीवाल और आतिशी सरकार ने यह महत्वपूर्ण संवैधानिक गलती की है। कैग केंद्र सरकार सहित सभी राज्यों के खर्च का ‘ऑडिट’ करता है। यह संवैधानिक जनादेश है, लेकिन यह सिर्फ हिसाब-किताब की समीक्षा भर है। हमने कैग की रपटों को संसद के गलियारों और उनके बाहर रद्दी की तरह पड़े देखा है। संसद में इन रपटों पर बहस देखना-सुनना तो वाकई दुर्लभ रहा है। जरा याद करें, कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान की कैग रपटें और तत्कालीन प्रमुख विनोद रॉय के सनसनीखेज खुलासे ! वह जब भी कुछ खुलासे करते, तो 1.78 लाख करोड़ रुपए तक के 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला खदान आवंटन, राष्ट्रमंडल खेल, पनडुब्बी खरीद सरीखे घोटालों की बौछार होती थी। अखबारों में 8 कॉलम की बैनर खबरें छपती थीं । वामदलों और भाजपा ने संसद के भीतर और बाहर कोहराम मचा रखा था। बेशक तत्कालीन संचार मंत्री ए. राजा और द्रमुक मुख्यमंत्री करुणानिधि की सांसद-बेटी कनिमोझी आदि कुछ नेताओं की गिरफ्तारियां जरूर हुईं, लेकिन कुछ समय बाद अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया। अंततः वे कैग रपटें ‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया, वो भी मरी हुई ‘ साबित हुईं। तत्कालीन कैग प्रमुख विनोद रॉय ने जो गंभीर गलतियां की थीं, उन्हें एक बार फिर दोहराया जा रहा है। केजरीवाल सरकार की शराब नीति और कथित घोटाले का मुद्दा अदालत\ विचाराधीन है । सर्वोच्च अदालत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, राज्यसभा सांसद संजय सिंह आदि को पूर्ण जमानत पर रिहा किया हुआ है। केजरीवाल, सिसोदिया आदि के लिए चोर, लुटेरे, बर्बाद, घोटालेबाज आदि शब्दों का प्रयोग अनैतिक
