‘कानून में संशोधन को मंजूरी दे सकती है जीएसटी, रियल एस्टेट कंपनियों को लगेगा झटका

नई दिल्ली वस्तु एवं सेवा कर परिषद की शनिवार को होने वाली बैठक में केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) कानून में संशोधन को मंजूरी दे सकती है। इससे सफारी रिट्रीट्स मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी हो जाएगा जिसमें किराए की प्रॉपर्टी की निर्माण लागत पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के दावों की अनुमति दी थी। ऐसा हुआ तो रियल एस्टेट कंपनियों को झटका लगेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकारी खजाने को भारी नुकसान होने की आशंका जताई थी। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इसका प्रभाव करीब 10 हजार करोड़ रुपए का हो सकता है क्योंकि फैसला 1 जुलाई, 2017 से प्रभावी माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सीजीएसटी अधिनियम में इस्तेमाल किए गए शब्द ‘ प्लांट ऐंड मशीनरी’ और ‘प्लांट और मशीनरी’ अलग-अलग हैं जिन्होंने ‘प्लांट’ को परिभाषित करने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत तय किए हैं। कोर्ट ने कहा कि आईटीसी के लिए पात्रता का मूल्यांकन हर मामले के आधार पर किया जाना चाहिए। उसमें करदाता के कारोबार की प्रकृति और मकान के उपयोग जैसे कारकों पर विचार करना चाहिए। इस मामले से जुड़े एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि जीएसटी परिषद की कानून समिति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गंभीरता से विचार किया है। समिति ने अस्पष्टत दूर करने और भविष्य में मुकदमेबाजी को रोकने के लिए 1 जुलाई, 2017 से सीजीएसटी अधिनियम में संशोधन करने की सिफारिश की है। समिति ने पाया कि ‘प्लांट और मशीनरी’ शब्द के बारे में कोर्ट का फैसला जीएसटी परिषद के साथ-साथ विधायिका की मंशा को भी विफल करता है। अधिकारी ने कहा कि कानून समिति ने पाया कि हर मामले में तथ्यों की जांच के आधार पर यह तय करना मुश्किल है। कि परिसंपत्ति सीजीएसटी अधिनियम के तहत प्लांट के तहत आती है या नहीं। इससे काफी भ्रम और अराजकता पैदा हो सकती है जिससे मुकदमेबाजी बढ़ सकती है। इसलिए यह सुचारु कर प्रशासन और कारोबारी सुगमता के लिहाज से उपयुक्त नहीं होगा। पीडब्ल्यूसी के टैक्स पार्टनर ने कहा कि नीतिगत दृष्टिकोण से देखा जाए तो निर्माण से जुड़े खर्च पर इनपुट टैक्स क्रेडिट की अनुमति दी जानी चाहिए। खास तौर पर ऐसे मामलों में जब निर्मित प्रॉपर्टी का इस्तेमाल सीधे तौर पर जीएसटी के तहत सेवाएं प्रदान करने में किया जाए।

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