
आखिर केंद्र सरकार और आंदोलित किसानों के बीच सहमति कब बनेगी ? केंद्र सरकार स्पष्ट कब करेगी कि वहm न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देगी अथवा नहीं? सरकार और किसानों के बीच बीसियों बैठकें हो चुकी हैं। मौजूदा दौर की यह छठी वार्ता थी, जो बेनतीजा ही रही। अब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। उनसे पहले नरेन्द्र तोमर इस संवैधानिक पद पर थे। उन्होंने भी किसानों के अलग प्रतिनिधियों के साथ कई दौर की बेनतीजा बैठकें की थीं। अब संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) की अगुआई में 13 फरवरी, 2024 से किसान आंदोलित हैं और शंभु बॉर्डर तथा हरियाणा में जींद से सटे खनौरी बॉर्डर पर धरना दिए हुए हैं। 70 साल के बुजुर्ग, कैंसर के मरीज, किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल बीती 26 नवंबर से आमरण अनशन पर हैं। अन्न का दाना भी नहीं खा रहे अलबत्ता मेडिकल ऐड जरूर ले रहे हैं, ताकि जिंदा रहकर आंदोलन जारी रख सकें । कृषि मंत्री समेत अन्य मंत्रियों ने भी अनशन समाप्त करने का अनुरोध किया, लेकिन किसान नेता की एक ही बुनियादी मांग है कि सरकार फसलों के एमएसपी की कानूनी गारंटी दे। पहले दिल्ली बॉर्डर पर भी किसान आंदोलन करीब 378 दिन चला था और अब भी 374 दिन बीत चुके हैं। दिल्लीवाला आंदोलन प्रधानमंत्री मोदी के इस आश्वासन के बाद वापस लिया गया था कि सरकार एमएसपी को प्रभावी बनाएगी। क्या प्रधानमंत्री के आश्वासन की कोई कीमत नहीं होती ? एक कमेटी जरूर बनाई गई थी, जिसकी 6 बड़ी बैठकें हो चुकी हैं। छोटी बैठकें तो कई हुई हैं, लेकिन बैठकों के निष्कर्ष क्या रहे, आजतक उनका सार्वजनिक खुलासा नहीं किया गया। आखिर बातचीत के ढोंग कब तक किए जाते रहेंगे? एमएसपी का मुद्दा 1966 में पहली बार सामने आया था, जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। उनके बाद मोरारजी देसाई, चरण सिंह, फिर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी, देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, फिर वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे। बेशक उनके कार्यकालों के दौरान एमएसपी का मुद्दा उठता रहा होगा। यदि सुलझ नहीं सकता, तो मुद्दे को दफना देना चाहिए था। आंदोलन तो होते रहते हैं। अब नरेन्द्र मोदी बीते 11 सालों से प्रधानमंत्री हैं। उनके दौर में ही एमएसपी की कानूनी गारंटी का मुद्दा पुरजोर उठाया जाता रहा है। आखिर यह मुद्दा कितना पेचीदा है, जो सुलझ ही नहीं पा रहा है और लटका हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी का किसान की आय 2022 तक दोगुनी करने का वायदा भी खोखला साबित हुआ। किसानों पर 21 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। मनमोहन सरकार में कर्ज माफ करने बावजूद आज भी कर्ज है। इसका जवाब भी सरकार को ही देना पड़ेगा । जाहिर है कि किसान की आमदनी पर्याप्त नहीं है, लिहाजा वह कर्ज लेने को विवश है । कृषि मंत्री मानते हैं कि खेती की आत्मा किसान ही हैं और कृषि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कृषि ने ही कोरोना महामारी के दौर में देश की अर्थव्यवस्था को बचाए रखा और विकास दर करीब 3.5 फीसदी रही । कृषि मंत्री की मान्यता के बावजूद किसानों को उनकी मेहनत, फसलों की माकूल कीमत क्यों नहीं मिल पा रही है।
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