एक त्रासद तबाही का युद्ध

एक त्रासद तबाही का युद्ध
एक त्रासद तबाही का युद्ध

रूस युक्रेन युद्ध के तीन साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन युद्ध अभी जारी है। रूस ने ऐसे प्रतिरोध की कल्पना भी नहीं की होगी। हालांकि अब समझौते, शांति और संवाद की एकतरफा कोशिशें भी की जा रही हैं। अमरीका- रूस के विदेश मंत्री स्तर के प्रतिनिधिमंडल ने सऊदी अरब में बातचीत की है। यूक्रेन और यूरोप को इस संवाद से बाहर ही रखा गया है। क्या यूक्रेन की संप्रभुता और स्वतंत्र अस्तित्व को नकारा गया है ? क्या यूक्रेन की सहमति के बिना कोई युद्ध-समझौता हो सकता है? यूक्रेन का संकट बढ़ता जा रहा है, क्योंकि अमरीका में राष्ट्रपति ट्रंप के सत्तासीन होने के बाद उसने यूक्रेन की मदद करने से साफ इंकार कर दिया है। यूरोप अब यूक्रेन की सैन्य, आर्थिक मदद को लेकर विभाजित हो गया है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का सरोकार इतना है कि शांति स्थापित हो और यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाया जाए, तो वह राष्ट्रपति पद छोड़ने को तैयार हैं। रूस का साम्राज्यवादी रुख रहा है । इसी आधार पर उसने यूक्रेन पर आक्रमण कर युद्ध छेड़ा था । रूस की सोच है कि यूक्रेन को संप्रभु देश होने का कोई अधिकार नहीं है। तो फिर इस युद्ध का निष्कर्ष क्या होगा ? हमारा मानना है कि इस युद्ध में न तो कोई विजेता है और न ही कोई पराजित है। बल्कि रूस यूक्रेन दोनों ही हारे हैं, क्योंकि दोनों ही देशों में विध्वंस, तबाही व्यापक स्तर पर हुई है। दोनों ही देशों को यह अनुभव हो गया होगा कि युद्ध की परिणति क्या होती है ? युद्ध भी एक नए किस्म की निरंतर राजनीति का प्रतिरूप है। इस संदर्भ में ट्रंप, पुतिन, मोदी और यूरोपीय देश अपनी राजनीति के मोहरे चल रहे हैं। बहरहाल यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक त्रासद् तबाही वाला युद्ध साबित हुआ है। तबाही रूस और यूक्रेन दोनों पक्षों में हुई है। दोनों के करीब 2.5 लाख लोग मारे गए हैं। उनमें अधिकतर सैनिक थे। करीब 68.5 लाख यूक्रेनी शरणार्थी यूरोपीय देशों में हैं। करीब 1 करोड़ यूक्रेनी बेघर हुए हैं। उसके 8 लाख सैनिक घायल बताए जा रहे हैं। उनका इलाज कैसे होगा ? बेघर होने वालों में करीब 20 लाख बच्चे भी हैं। यूक्रेन का 20 फीसदी जमीनी हिस्सा खो चुका है। 2024 में यूक्रेन का 4168 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र रूस ने कब्जा लिया । यूक्रेन के 10 बड़े शहर ‘खंडहर हो चुके हैं। रूस को भी कुल 109 लाख करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। उसके 20 से अधिक पोत यूक्रेनी हमलों के कारण ‘काला सागर’ में डूब चुके हैं। रूस के बख्तरबंद वाहन, टैंक आदि भी तबाह हुए हैं । युद्ध के कारण ही रूस के औसत जीवन स्तर में 35 फीसदी की गिरावट आई है। तो किस आधार पर रूस खुद को युद्ध का विजेता घोषित कर सकता है ? बेशक युद्ध को समाप्त कराने के प्रयास प्रधानमंत्री मोदी के अलावा राष्ट्रपति ट्रंप ने भी किए हैं, लेकिन ट्रंप ‘शांति का नोबेल पुरस्कार’ हासिल करने के मद्देनजर ऐसे भेदभावपूर्ण प्रयास न करें। संवाद की मेज पर दोनों देशों के प्रतिनिधि उपस्थित होने चाहिए। इस युद्ध ने विश्व की ‘सप्लाई चेन’ को बुरी तरह प्रभावित किया है। रूस – यूक्रेन गैस और गेहूं उत्पादन के सर्वोच्च देश हैं। गैस सप्लाई नहीं की गई, तो यूरोप कंपकंपाया है। गेहूं की आपूर्ति नहीं हो सकी, तो गरीब, पिछड़े देशों में खाद्य संकट उभरा है। दुनिया भर की अर्थव्यवस्था भी गिरी है। रूस और यूक्रेन में धार्मिक, जातीय, नस्लीय, सांस्कृतिक समानताएं हैं।

एक त्रासद तबाही का युद्ध
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