इस साल पहली तिमाही में 6.4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया राजकोषीय घाटा, केंद्र सरकार पर बढ़ रहा कर्ज
नई दिल्ली।
पिछले साल केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा 20 प्रतिशत बढ़ा था तो इस वर्ष की पहली तिमाही में यह घाटी 6.4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने बुधवार को जारी अपने वक्तव्य में यह बात कही है। रमेश के मुताबिक, आरबीआई बुलेटिन, बेहद चिंताजनक आर्थिक ट्रेंड को दिखाता है। मोदी सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था का जिस तरह से लगातार कुप्रबंधन किया है, वो इस बुलेटिन में स्पष्ट रूप से दिख रहा है। याद कीजिए, सितंबर 2023 के बुलेटिन में कई नकारात्मक इंडीकेटर्स सामने आए थे। उनमें घरेलू बचत का 47 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंचना, निजी क्षेत्र के लिए घरेलू ऋण में स्थिरता और श्रम-बल भागीदारी का एक ही तरह से बने रहना आदि शामिल थे । अब भी वे ट्रेंड्स या तो वैसे ही बने हुए हैं या और भी अधिक बिगड़ गए हैं।
जयराम रमेश ने कहा क शुद्ध घरेलू बचत में कमी आने का एक प्रमुख कारण यह है कि घरेलू देनदारियों (लायबिलिटिज) में भारी बढ़ोतरी हुई है। वित्त मंत्रालय ने गुमराह करने के लिए दावा किया था कि यह बढ़ोतरी गृह और वाहन ऋण के कारण है। दूसरी तरफ आरबीआई के सितंबर माह के बुलेटिन ने स्पष्ट रूप से दिखाया था कि गोल्ड लोन में 23 प्रतिशत और पर्सनल लोन में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। आरबीआई का अक्तूबर का बुलेटिन इसकी पुष्टि करता है। अगस्त 2023 में बैंक से लिए गए कुल लोन में सबसे ज्यादा पर्सनल लोन लिए गए हैं। इसमें 23 फीसदी की भारी वृद्धि हुई है। गोल्ड लोन में 22 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है। वास्तव में, पिछले 15 महीने से गैर-आवासीय पर्सनल लोन, 20 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ रहे हैं। यह कुछ ऐसा है जो कम से कम 15 वर्षों में कभी नहीं हुआ।
औद्योगिक क्षेत्र की ऋण वृद्धि धीमी—
औद्योगिक क्षेत्र की ऋण वृद्धि, जो निवेश और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है, धीमी हो रही है। अगस्त 2023 में यह केवल 6.1 प्रतिशत थी। यह पिछले वर्ष की तुलना में लगभग आधी और 2013 की सिर्फ एक-तिहाई है। इस बीच, उद्योग के लिए बैंक ऋण का हिस्सा मोदी सरकार द्वारा आधा कर दिया गया है। कांग्रेस पार्टी के महासचिव ने कहा, 2013 में गैर-खाद्य ऋ 46 प्रतिशत था, जो 2023 में केवल 24 प्रतिशत रह गया। महंगाई दर 6.8 प्रतिशत के साथ नियंत्रण से बाहर है। यह आरबीआई के 4 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी ऊपर । आरबीआई ने अनाज, दालों और मसालों में निरंतर महंगाई के दबाव का मुद्दा उठाया। अधिकांश भारतीयों को अपनी आमदनी पर महंगाई के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। इस वजह से भोजन, शिक्षा और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करना मुश्किल हो रहा है।
भविष्य में भारत पर बोझ पड़ेगा—
बतौर जयराम रमेश, मोदी सरकार पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है। इससे भविष्य में भारत पर बोझ पड़ेगा। घाटा कम दिखाने के लिए मोदी सरकार राज्यों को कम कर ट्रांसफर करके संघवाद के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन कर रही है। मेक इन इंडिया का बुरी तरह से विफल होना और पीएलआई योजनाओं का प्रभावी न होना, इसका मतलब साफ है कि इस तिमाही में 4 प्रतिशत से भी कम निर्यात वृद्धि थी । निर्यात में मंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित एमएसएमई हैं। वजह, क्योंकि उन्हें मुनाफा कम हो रहा है, लेकिन लागत ज़्यादा लग रही है। यह कोई नया ट्रेंड नहीं है। साल 2004-2014 तक निर्यात प्रति वर्ष औसतन 14 प्रतिशत की दर से बढ़ा, लेकिन मोदी सरकार में निर्यात वृद्धि आधे से भी कम होकर सिर्फ 6 प्रतिशत रह गई है। हर महीने जारी होने वाले आरबीआई बुलेटिन को मोदी सरकार के लिए एक रिमाइंडर के रूप में काम करना चाहिए। जयराम का आरोप है कि सरकार चाहे जितना डेटा को छिपाने और जनता को गुमराह करने की कोशिश करे, मगर बेसिक तथ्य झूठ नहीं बोलते हैं । अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदहाल है और अधिकांश भारतीय पीड़ित हैं।