
करीब 300 साल पुराना इतिहास आज प्रासंगिक कैसे हो सकता है? यदि इतिहास प्रासंगिक नहीं है, तो तत्कालीन बादशाहों, आक्रांताओं, तानाशाहों की चर्चा भी क्यों की जाए ? आज हम एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और संप्रभु राष्ट्र के नागरिक हैं, तो उस अतीत की चर्चा भी क्यों की जाए, जिसका इतिहास दुराग्रह और झूठ की सोच से लिखा गया हो ? भारत की विडंबना यह है कि यहां की लोकतांत्रिक राजनीति लगभग दोफाड़ है। एक तरफ भाजपा और उसके सहयोगी दल तथा दूसरी तरफ भाजपा-विरोधी जमात | ऐसी स्थिति में बाबर, अकबर, औरंगजेब सरीखे मुगल बादशाह भी उस सियासत के कथित आदर्श हैं, जो वैचारिक तौर पर भाजपा विरोधी है। हालांकि समकालीन इतिहास, घटनाक्रम और जनमत से स्पष्ट है कि बहुधा मुसलमान इन बादशाहों को न तो अपना आदर्श मानते हैं और न ही इनके नाम पर वोट देते हैं। अलबत्ता औरंगजेब की समर्थक एक जमात हमारे देश में सक्रिय भी है और वह पढ़ी- लिखी, जागरूक जमात है, लेकिन क्या करें, वह दक्षिणपंथी राजनीति की घोर विरोधी है, लिहाजा औरंगजेब भी उसे प्रिय लगता है। फिलहाल प्रसंग महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं विधायक अबु आजमी का है। उन्होंने औरंगजेब को उदार और महान बादशाह माना है। संविधान में दिए गए ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के मौलिक अधिकार को न तो कवच बनाया जाए और न ही उसकी गलत व्याख्या स्वीकार्य है। चूंकि अबु आजमी को सदन से निलंबित करने का आग्रह उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का था और लगभग पूरा सदन समर्थन में था, बेशक कांग्रेसी चेहरे खामोश थे, लिहाजा आजमी को पूरे बजट सत्र के लिए सदन से निलंबित कर दिया गया। शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने तो अबू आजमी की सदस्यता स्थायी रूप से खत्म करने की मांग की है। उद्धव और सपा तो विपक्षी गठबंधन के साथी हैं। यह कैसा गठबंधन है ! बहरहाल विधानसभा स्पीकर के विशेषाधिकार पर संवैधानिक प्रावधान भी हैं और सर्वोच्च अदालत के फैसले भी हैं कि यदि किसी सदस्य ने सदन के बाहर कुछ आपत्तिजनक बयान दिया है अथवा गतिविधि की है, तो उसे निलंबित नहीं किया जा सकता। निर्वाचित सदस्य का सदन में उपस्थित रहना उसका भी विशेषाधिकार है, लेकिन हमारे विश्लेषण का विषय यह नहीं है। चूंकि सपा नेता ने जिस तरह औरंगजेब का महिमामंडन किया है, वह महाराष्ट्र से निकल कर उप्र, बिहार और देश के अन्य हिस्सों का भी मुद्दा बन गया है, लिहाजा हमारे लिए भी यह सवालिया है कि औरंगजेब को उदार और महान बादशाह किस आधार पर माना जाए ? अबु भाजपाधर्मी राजनीति के घोर विरोधी नेता माने जाते हैं। क्या इसी आधार पर किसी बादशाह को उदारवादी, मानवीय, मंदिर-निर्माता आंका जा सकता है ? औरंगजेब ने अपने पिता बादशाह शाहजहां को आगरा किले में कैद करवा दिया था और उन्हें बूंद-बूंद पानी के लिए तरसा दिया था। शाहजहां ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि हे खुदा! ऐसा कमबख्त बेटा किसी घर में पैदा न करना ।” यही नहीं, औरंगजेब ने अपने सगे भाई दारा शिकोह को पिंजरे में कैद कर दिल्ली के चांदनी चौक में घुमाया था। उसके अत्याचारों की दास्ताना लंबी है । महिमामंडन ठीक नहीं।
