गुवाहाटी। असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों को बांग्लादेश में शामिल करने की मांग कोई नई बात नहीं है और इन क्षेत्रों में जनसांख्यिकी में व्यवस्थित परिवर्तन को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। हाल ही में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के सलाहकार महफूज आलम ने पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा को बांग्लादेश में शामिल करने की मांग करके हलचल मचा थी। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि यह मांग कोई नई नहीं है और समय- समय पर बांग्लादेश के नेता इस मांग को उठाते रहते हैं। सूत्रों ने बताया कि ब्रिटिश काल में भी उस क्षेत्र के नेता अक्सर कहते थे कि असम, त्रिपुरा और बांग्लादेश उस क्षेत्र के लोगों के प्राकृतिक आवास हैं। देश के बंटवारे के समय असम को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की कोशिश की गई थी। लेकिन असम के नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया और इस तरह असम बच गया। इसके अलावा, उस समय नागा युवाओं ने भी असम के लोगों के साथ मिलकर राज्य को बांग्लादेश में शामिल होने से बचाने के लिए हाथ मिलाया था। सूत्रों ने बताया कि अप्रैल 1946 में नागा नेशनल काउंसिल ने एक प्रस्ताव पारित किया था कि वह भारत में रहना पसंद करेगी, लेकिन समूह अधिक स्वायत्तता चाहता था। लेकिन बाद में नागा नेशनल काउंसिल ने स्वतंत्रता की मांग की। बंगाल के मामले में, स्वतंत्रता से पहले दो विधानमंडल थे। विभाजन समय, पूर्वी बंगाल विधानमंडल ने पूर्वी पाकिस्तान के साथ रहने के लिए मतदान किया, जबकि, पश्चिम बंगाल विधानमंडल ने जून 1947 में भारत के साथ रहने का प्रस्ताव पारित किया। यह सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय नहीं था क्योंकि कुछ विधायक पूर्वी पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे, लेकिन बहुमत भारत में रहना चाहता था और प्रस्ताव पारित हो गया। देश के बंटवारे के बाद भी पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं और बुद्धिजीवियों ने अक्सर यह मुद्दा उठाया कि असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल को पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। यहां तक कि शेख मुजीबुर रहमान जैसे कद के व्यक्ति ने भी कई बार यह मांग उठाई। लेकिन भारत की मदद से बांग्लादेश के स्वतंत्र होने और बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह मुद्दा उठाना बंद कर दिया। हालांकि, सूत्रों ने कहा कि भारत को मांगों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यवस्थित जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ है और स्वदेशी लोगों का प्रतिशत चिंताजनक रूप से घट रहा है। बिहार के पूर्वी हिस्से में भी जनसांख्यिकी बदल रही है। सूत्रों ने चेतावनी दी कि हमें निकट भविष्य में कोई समस्या नहीं हो सकती है। लेकिन अगर जनसांख्यिकी लगातार बदलती रही, तो हमें अब से लगभग चार दशकों में गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।