नई दिल्ली। दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश अमेरिका में छोटी कंपनियों का बुरा हाल है। रसेल 2000 इंडेक्स में शामिल कंपनियों में से 43 फीसदी घाटे में चल रही हैं। यह साल 2020 की महामारी के बाद सबसे अधिक है। यह 2008 के वित्तीय संकट से भी अधिक है तब 41 फीसदी छोटी कंपनियां घाटे में चल रही थीं। इतना ही नहीं इन कंपनियों का ब्याज के भुगतान पर भारी रकम खर्च करनी पड़ रही है। यह 2003 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। उच्च ब्याज दरों के कारण इन कंपनियों के लिए ब्याज चुकाना भी मुश्किल हो रहा है। अमेरिका में छोटी कंपनियां ही नहीं बल्कि बड़ी कंपनियां भी मुश्किल में हैं। इस साल अब तक 512 बड़ी कंपनियां खुद को दिवालिया घोषित कर चुकी हैं। यह 2020 की महामारी के दौरान से बस 6 कम है। महामारी के दौर को हटा दिया जाए तो यह 14 साल में सबसे बड़ी संख्या है। सितंबर में जहां 59 कंपनियां दिवालिया हुईं, वहीं अगस्त में 63 कंपनियों ने खुद को बैंकरप्ट घोषित किया। सबसे ज्यादा 81 कंपनियां कंज्यूमर सेक्टर में बैंकरप्ट हुई हैं। इंडस्ट्रियल में 60 और हेल्थकेयर में 48 कंपनियां इस साल बैंकरप्ट हुई हैं। इस बीच अमेरिका का कर्ज तेजी से बढ़ता जा रहा है। यह 35.7 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है जो उसकी इकॉनम का करीब 125 फीसदी है। साल 2000 में अमेरिका पर 5.7 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज था जो साल 2010 में 12.3 ट्रिलियन डॉलर और 2020 में 23.2 ट्रिलियन डॉलर पहुंचा था । यूएस कांग्रेस के बजट दस्तावेजों के मुताबिक अगले दशक तक देश का कर्ज 54 ट्रिलियन डॉलर पहुंचने का अनुमान है। पिछले तीन साल में ही देश का कर्ज 10 ट्रिलियन डॉलर से अधिक बढ़ चुका है। स्थिति यह हो गई है कि अमेरिका को रोज 1.8 अरब डॉलर ब्याज के भुगतान में खर्च करने पड़ रहे हैं ।