
नई दिल्ली। भारत और न्यूजीलैंड ने रविवार को मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत फिर से शुरू करने की घोषणा की। बता दें कि, यह वार्ता साल 2010 में शुरू हुई थी और साल 2015 में रुक गई थी, लेकिन अब इसे फिर से शुरू किया जाएगा। भारत और न्यूजीलैंड ने अप्रैल 2010 में समग्र आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) पर बातचीत शुरू की थी। जिसका उद्देश्य वस्तुओं, सेवाओं और निवेश के व्यापार को बढ़ावा देना था। लेकिन नौ दौर की वार्ताओं के बाद 2015 में ये चर्चा रुक गई थी । भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि दोनों देश भारत-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर फिर से वार्ता शुरू करने की घोषणा करते हैं । इस समझौते का उद्देश्य आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना और बाजार पहुंच को आसान बनाना है। यह घोषणा तब हुई जब न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन भारत की चार दिवसीय यात्रा (16- 20 मार्च) पर आए हुए हैं। केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया । वह रायसीना डायलॉग 2025 में मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता के रूप में शामिल होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर लक्सन 16 120 मार्च तक देश में रहेंगे। यह निर्णय भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और न्यूजीलैंड के व्यापार और निवेश मंत्री टॉड मैक्ले की बैठक के बाद लिया गया । इसे लेकर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, भारत और न्यूजीलैंड के बीच दीर्घकालिक साझेदारी है, जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, लोगों के बीच मजबूत संबंधों और आर्थिक पूरकताओं पर आधारित है। दोनों देशों ने व्यापार और निवेश को शामिल करते हुए अपने द्विपक्षीय संबंधों को बनाने की दिशा में लगातार किया है। आगे लिखा गया कि न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन की भारत यात्रा के अवसर पर और हमारे आर्थिक सहयोग को गहरा करने की भावना से, दोनों राष्ट्र एक व्यापक और पारस्परिक रूप से लाभकारी भारत- न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौते वार्ता के लिए वार्ता शुरू करने की घोषणा करते हुए प्रसन्न हैं । यह अहम फैसला 16 मार्च, 2025 को भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और न्यूजीलैंड के व्यापार और निवेश मंत्री टॉड मैक्ले के बीच एक बैठक की दौरान लिया गया कि जिसने दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापार संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण साझेदारी की नींव रखी । व्यापार में बढ़ोतरी होगी और दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत होंगे। निवेश के नए अवसर बनेंगे और बाजार में कंपनियों को अधिक पहुंच मिलेगी। आपूर्ति श्रृंखला बेहतर होगी, जिससे व्यापार करने में आसानी होगी।
