आईएमएफ का अनुमान

आईएमएफ का अनुमान
आईएमएफ का अनुमान

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानि आईएमएफ का अनुमान है कि भारत मजबूत निजी निवेश और व्यापक आर्थिक स्थिरता के दम पर 2025-26 में 6.5 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर्ज करके सबसे तेजी से बढ़ती प्रामुख अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखेगा। आईएमएफ के इस अनुमान से मिलता जुलता भारत सरकार का भी आंकलन है जो उसने बजट 2025-26 से एक दिन पहले जारी अपने आर्थिक सत्रेक्षण में स्पष्ट कर दिया था। आर्थिक सव्रेक्षण में 6.4 प्रातिशत जीडीपी रहने का अनुमान लगाया गया है जो दशकीय औसत के करीब है । सर्वेक्षण में यह अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 2026 के लिए भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.3 से 6.8 प्रातिशत के बीच रहेगी। यही नहीं आईएमएफ ने निजी निवेश और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए संरचनात्मक सुधारों के गहन कार्यान्वयन की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। आर्थिक सर्वेक्षण में भी यही कहा गया है कि औपचारिक क्षेत्र में नौकरियों की संख्या में वृद्धि हुईं, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानि ईपीएफओ का शुद्ध वेतन अधिग्रहण 2019 में 61 लाख से दो गुना होकर वित्त वर्ष 2024 में 131 लाख हो गया । वास्तविकता तो यह है कि निजी निवेश और एफडीआईं यानि प्रात्यक्ष विदेश निवेश को बढ़ावा देकर ही जीडीपी में वृद्धि की जा सकती है । किन्तु इसके लिए स्थिर नीतिगत ढांचे, व्यापार करने में अधिक आसानी, शासन सुधार और व्यापार एकीकरण वृद्धि की आवश्यकता होगी। भारत सरकार और हमारे निजी क्षेत्र की सामूहिक कोशिश यही है कि हमारी अर्थव्यवस्था का आकार जल्दी से जल्दी 5 ट्रिलियन तक पहुंच जाना चाहिए। यह सच है कि डॉ. मनमोहन सिह और नरसिम्हाराव ने मिलकर 1991 में आर्थिक सुधारों के नाम पर अर्थव्यवस्था को वामपंथी दल-दल से निकाल कर ठोस जमीन पर लाकर खड़ा जरूर किया किन्तु दशकों तक संयुक्त अर्थव्यवस्था के अच्छे बहाने के पीछे सार्वजनिक सेक्टर को ही बचाने में लगे रहे क्योंकि हमारी मानसिकता ही दोहरेपन की है। हमने 1991 में भले ही आर्थिक सुधारों को अपना लिया किन्तु सच तो यही है कि भारत आर्थिक नीति में कम्युनिस्टों से भी दस कदम आगे चल रहा था जबकि वास्तविक वामपंथी देश चीन ने हकीकत समझकर ही 1971 में पूंजीवादी व्यवस्था को अपना लिया था। यही कारण है कि जब भारत गठबंधन की राजनीति में उलझा हुआ था, चीन ने उसी वक्त पूंजीवाद का ऐसा चोला अपनाया कि यूरोपीय देश जो पहले से ही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था अपनाए बैठे थे वे भी पीछे छूट गए। भारत चीन से तभी पिछड़ता चला गया। यह सच है कि जन कल्याण की भावना से वामपंथी अर्थशास्त्र का जो ढिढोरा पीटा गया उससे न तो लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया और न ही लोगों की जेब में पैसे आए। पूंजी निर्माण के क्षेत्र में उदासीनता की स्थिति बनी रही । असल में भारत ने कभी भी खुलकर खुली अर्थव्यवस्था और बाजारवाद का समर्थन किया ही नहीं कारण कि हमारी तो दशकों की आदर्श वामपंथी अर्थव्यवस्था थी । दशकों से हमने पूंजीवाद को सारी मुसीबतों की जननी बताकर नुक्कड़ नाटक खेले और देखे थे। हमने पूंजीवाद के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिए वामपंथी और समाजवादी डफली की तान का आनन्द लिया। यही नहीं हमने मुफ्त में वामपंथी दुष्प्रचार के लिए प्राकाशित होने वाली पत्रिकाओं और बड़े-बड़े अखबारों के वामपंथियों के लेख पढ़कर यह धारण स्थाईं भाव के रूप में बना ली कि अर्थव्यवस्था का सही रास्ता वामपंथ और समाजवादी है ।

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