तीसरा आदमी

तीसरा आदमी
तीसरा आदमी

यह तीसरा आदमी यूं तो जीवन के हर क्षेत्र में मौजूद है, पर राजनीति और धर्म का ताना-बाना ऐसा है कि तीसरा आदमी दोनों ही जगहों पर मौज कर रहा है। कभी चुनावों के नतीजे आने से पहले वह तपस्या करता हुआ दिखाई देता है, तो कभी पूरे कपड़ों में महाकुंभ में गंगा में डुबकी लगाता है। बलात्कार और हत्या के मामलों में सजायाफ्ता होने के बावजूद कभी चुनावों में पैरोल पर छूटता है तो कभी कहता है कि भगदड़ में मारे गए सभी लोग स्वर्ग पहुंच चुके हैं। कभी उस पर पत्नी को छोड़ने का आरोप लगता है तो कभी पत्नी की हत्या का । कभी तड़ीपार होता है तो कभी मिलावटी सामान बेचने या टैक्स न भरने पर करोड़ों का जुर्माना होता है। कभी उस पर लड़ाकू जहाजों की खरीद या अमेरिका में प्रोजेक्ट लेने के लिए करोड़ों डालर की घूस देने का आरोप लगता है । पर वह कभी तनाव में नहीं दिखता। तमाम आरोपों के बावजूद वह कभी देश की सत्ता पर काबिज होता है तो कभी जगतगुरु बन जाता है। यह तीसरा आदमी कभी कुश्ती नहीं खेलता, क्रिकेट नहीं खेलता, हॉकी या अन्य कोई खेल भी नहीं खेलता । पर अपनी प्रतिभा के दम पर ओलिम्पक्स के फाइनल में पहुंचे आम आदमी को वजन के आधार पर अयोग्य घोषित करवा देता है। उसे बल्ला पकड़ना नहीं आता, बॉल फेंकनी नहीं आती, पर वह अपने बाप के दम पर क्रिकेट में सबसे तेज पांच सौ विकेट लेने वाले आम आदमी को संन्यास लेने पर मजबूर कर देता है । यह तीसरा आदमी अपने मनचाहे बिजनेस हाऊस या संसाधनों पर हाथ रख देता है और सत्ता उस बिजनेस हाऊस या संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए देश के कानूनों का तिया-पांचा कर देती है। देश की तमाम सुरक्षा एजेंसियां आम आदमी को लपेटना शुरू कर देती हैं। इधर आम् आदमी है कि उसका कोई गुनाह न होने पर भी उसे सालों जेल में रहना पड़ता है। अदालतों के पास उसकी जमानत की याचिका पर सुनवाई का वक्त नहीं होता। कभी भी टूटने के डर के बावजूद बेचारा साल भर कमान की तरह तना रहता है। पर उसकी डोर कभी ढीली नहीं होती। अपने हुए पंखों के साथ आम आदमी जिंदगी के आकाश में उड़ने की कोशिश में गरीबी और लाचारी के दलदल में अपने आखिरी दम तक छप छप करता हुआ, तीसरे आदमी के हक और इकबाल के नारे बुलंद करता रहता है। झुके सिर और कमर के साथ जीने वाले आम आदमी के लिए पांच किलो राशन ही काफी है। उसे खाते हुए वह कभी सवाल नहीं करता कि यह तीसरा आदमी कौन है। उधर तीसरा आदमी आम आदमी से ही सवाल करता है कि यह तीसरा आदमी कौन है। अपनी जान बचाने के लिए आम आदमी पाकिस्तान का नाम लेता है। उसे पता है कि तीसरे आदमी का नाम बताते ही उसे गद्दार और देशद्रोही घोषित कर दिया जाएगा। पर आम आदमी कभी नहीं सोचता कि भेड़ की तरह भीड़ का हिस्सा होने पर उसे केवल अपने से आगे वाली भेड़ों का पिछवाड़ा और पूंछ ही दिखाई देगी। वह केवल यह सोचकर ही खुश रहता है कि उसके दुःखों के हरण के लिए ही तीसरा आदमी अवतरित हुआ है। वह उस तीसरे नॉन-बॉयोलॉजिकल आदमी को भगवान समझ कर पूजता है। इसलिए देश की संसद में मौन छाया है, तीसरे आदमी को लेकर भी और आम आदमी के मुद्दों और समस्याओं को लेकर भी । लेकिन संसद में खूब हंगामा बरपा है, बड़ा शोर है। लेकिन उसके पास कुंभ में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए न समय है और न फुर्सत । ऐसे में हैदर अली आतिश का यह शे’र बड़ा मौजूं हो उठता है, ‘बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का, जो चीरा तो इक कतरा -ए-खूंन निकला ।’ लेकिन सवाल है कि संसद के पहलू में दिल है भी या नहीं । कतरा -ए-खूं बात तो बाद में होगी।

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