नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के मामले की जांच की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट हर चीज का समाधान नहीं है। सरकार चलाना कोर्ट का काम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि याचिका में उन नेताओं के खिलाफ लापरवाहीपूर्वक और गैरजिम्मेदाराना आरोप लगाए गए हैं जो अब जीवित नहीं हैं। यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ने याचिका में महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की प्रामाणिकता का परीक्षण किया जाना आवश्यक है । याचिकाकर्ता पिनाक मोहंती ने अपनी याचिका में कहा है कि वह विश्व मानवाधिकार संरक्षण संगठन के कटक जिला सचिव हैं। उन्होंने जनहित और लोगों के मानवाधिकारों के लिए क्या काम किया है। चेन्नई में सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा है कि न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र प्रयोग न केवल न्यायाधीश का विशेषाधिकार है, बल्कि यह उनका कर्तव्य भी है। इसलिए यह जरूरी है कि जज कानून की अपनी समझ और अपनी अंतरात्मा के अनुसार मामलों पर निर्णय लें तथा अन्य विचारों से प्रभावित न हों । न्यायमूर्ति एस नटराजन शताब्दी स्मृति व्याख्यान में जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अंततः न्यायाधीशों का दृढ़ विश्वास, साहस और स्वतंत्रता ही अदालत के समक्ष मामलों का फैसला करती है। उन्होंने कहा कि अदालत व्यवस्था के भीतर न्यायिक स्वतंत्रता के पहलू से अलग-अलग राय या असहमतिपूर्ण राय को न्यायाधीशों की पारस्परिक स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सबसे प्रबुद्ध रूप है। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि उन्होंने और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने संवैधानिक पीठ के मामलों पर असहमति जताई थी। उन्होंने यह भी कहा कि केवल एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका ही न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सकती है।