भारत की भूमि उत्सव एवं मेलों की प्रतीक है। यहां पर प्रत्येक दिवस का अपना महत्व है। भारत की देव दर्शन संस्कृति विश्व भर में प्रचलित है। इसी परंपरा की श्रृंखला में नवरात्रि पर्व भी सम्मिलित है। नवरात्रि का अर्थ है नौ रातों का समय, जिसमें शक्ति की पूजा की जाती है। भारतीय सनातन धर्म परंपरा में एक वर्ष में चार बार नवरात्रि पर्व होता है जो चैत्र, आषाढ़, आश्विन एवं माघ मास शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होते हैं। आषाढ़ एवं माघ गुप्त नवरात्रि पर्व हैं जिनका विधान योगियों से संबंधित है। चैत्र एवं आश्विन नवरात्रि का विधान गृहस्थ जीवन में रहने वाले साधकों के लिए है। चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व एवं प्राचीन इतिहास है । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हिंदू नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से आरंभ होते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में नवरात्रों में पूजन की क्षेत्रीय विधियां भी हैं जो वहां की संस्कृति की प्रतीक हैं। गुजरात में गरबा नृत्य करके देवी को प्रसन्न किया जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा का महापर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। उत्तर भारत में नवरात्रि महोत्सव की धूम निराली ही होती है। हिमाचल प्रदेश में इस पर्व की तैयारियों में शक्तिपीठ सजाए जाते हैं। देश के विभिन्न कोने से भक्त मां ज्वालादेवी, श्री नयना देवी, चिंतपूर्णी वज्रेश्वरीदेवी, चामुण्डा देवी एवं कटड़ा में मां वैष्णो देवी के दर्शन के लिए लम्बी कतारें लगती हैं। चातुर्मास में जो धार्मिक एवं शुभ कार्य धार्मिक दृष्टिकोण से रोक दिए जाते हैं, वे नवरात्रि में शुरू हो जाते हैं। नवरात्रि का इतिहास वैदिक काल से भी पूर्व के समय से जुड़ा हुआ है। इस वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार 2081 शारदीय नवरात्रि पर्व आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि 3 अक्तूबर से आरंभ हो रहे हैं। नवरात्रि पर्व में मां दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा की जाती है। पूजन विधि : भगवती मां दुर्गा अपने नौ अवतारों में साधकों एवं भक्तों के संकल्प को पूरा करती हैं। जिस भावना से भक्त अपनी देवी की उपासना करता है, विधि- विधान से दुर्गा स्तुति, दुर्गा सप्तशती पाठ एवं आरती करता है, मां उसी भावना के साथ उसके मनोरथ पूर्ण करती है। प्रत्येक एक दिन देवी के प्रत्येक अवतार का प्रतीक है। प्रथम नवरात्रि 3 अक्तूबर प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करके सर्वप्रथम गणेश स्तुति करने के बाद कलश स्थापना करें । इसके साथ जौं बोने की विधि को भी सम्पन्न करें। जौं को शास्त्रों में प्रथम फसल स्वीकार किया गया है। हवन सामग्री में भी जौं की आहुति अग्नि देवी को दी जाती है। जौं बीजना समृद्धि एवं प्रगति के सूचक हैं। इसके बाद आप देवी मां का स्मरण करते हुए संकल्प लें कि ‘हे मां ! हम आपकी शरणागत हैं और आप हमारी यह पूजन विधि सफल करना। आपके आशीर्वाद से ही यह कार्य सफल होगा। प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के पश्चात पुष्प, लाल सिंदूर, लौंग, इलायची, फल आदि अर्पित करें। आप अपनी सुविधानुसार गाय के घी का दीपक सुबह- शाम कर सकते हैं। यदि आपके पास समय एवं सामथ्र्य है तो आप नौ दिन उपवास एवं अखंड ज्योति भी प्रज्वलित करके भगवती मां को प्रसन्न कर सकते हैं। प्रथम नवरात्रि से नवम नवरात्रि तक मां के नौ अवतारों की पूजा विधि-विधान से की जाती है। नवरात्रि के नौवें दिन नौ कन्याओं को श्रद्धा एवं प्रेम के साथ घर पर आमंत्रित करके हलवा-पूड़ी, सब्जी, फल एवं चने आदि सात्विक आहार का भोग लगाया जाता है और सामथ्र्य के अनुसार उपहार एवं दक्षिणा दी जाती है। देवी का पूजन कुछ क्षेत्रीय मान्यताओं पर भी आधारित है। कई स्थानों पर भक्त महा अष्टमी को यह कार्यक्रम करते हैं। कुछ भक्त रामचरितमानस का पाठ भी करते हैं। शारदीय नवरात्रि में प्रभु श्रीराम रामेश्वरम धाम में समुद्र तट पर भगवती मां के नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं और चार वेदों के ज्ञाता सभी ग्रहों को अपने वश में करने वाले महान विद्वान लंकापति राजा रावण को पराजित करने का वरदान प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के दसवें दिन राम-रावण का समर असत्य पर सत्य, छल पर विश्वास एवं अहंकार पर परोपकार की विजय के साथ समाप्त होता है जिसे हम विजयदशमी या दशहरा के रूप में उत्सव मनाते हैं। मां के नौ स्वरूप हैं : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धीदात्री । शैलपुत्री : शैल का शाब्दिक अर्थ चट्टान है। शैलपुत्री का अर्थ पहाड़ की बेटी है। मां पार्वती का पुनर्जन्म है। यह पहली नवदुर्गा का स्वरूप है। मां शैलपुत्री अरुणोदय में प्रकट हुई और सूर्यप्रभा से इनका रंग नारंगी हो गया। इनकी सवारी बैल है। पहले नवरात्रि को इस मंत्र का जाप अवश्य करें: ‘या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।’ ब्रह्मचारिणी : ब्रह्म का अर्थ है तप । ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली एक समर्पित देवी। मां का यह स्वरूप अंतर्मन की ऊर्जा को जागृत करने का प्रतीक है। मां पार्वती शिव को पति रूप में पाने के लिए वाम हस्त में कमंडल तथा दाहिनी हाथ में माल लेकर तप करने के लिए जाती हैं। उनके इसी स्वरूप को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इस दिन आप ऐसी कुंवारी लडक़ी जिसका विवाह तय हो गया हो, लेकिन विवाह अभी होना हो, उसे शाम को देवी स्वरूप में बुलाकर श्रद्धा भाव से भोजन करवा कर उपहार दे सकते हैं। दूसरे नवरात्रि को इस मंत्र का जाप अवश्य करें: ‘या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।’ चंद्रघंटा : तीसरा नवरात्रि मां चंद्रघंटा को समर्पित है। शिव के साथ विवाह के पश्चात मां पार्वती ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर सुशोभित किया, जिससे मां का यह स्वरूप विकसित हुआ। स्वर्ण से आभामय मां का 10 भुजाओं वाला स्वरूप है । अस्त्र-शास्त्र धारण करके मां सिंह की सवारी करती हैं। देवी के इस स्वरूप के पूजन से भक्तों को आरोग्य, सुख-संपदा की प्राप्ति होती है। शाम को आरती के बाद देवी को दूध से बने हुए मिष्ठान का भोग लगाकर प्रसाद को भक्तों में बांट दें। तीसरे नवरात्रि को इस मंत्र का जाप अवश्य करें : ‘या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।’ कूष्मांडा : चौथा नवरात्रि मां कूष्मांडा को समर्पित है। देवी कुष्मांडा अष्ट भुजाओं वाली, दिव्य मुस्कान की स्वामिनी हैं।