ईरान द्वारा इजरायल पर मिसाइल हमलों के बाद वैश्विक स्तर पर जियोपॉलिटिकल तनाव गहराता जा रहा है। इस संघर्ष का असर कच्चे तेल की कीमतों पर देखने को मिला, जहां अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें चार फीसदी तक बढ़ गई हैं। वहीं ब्रेंट क्रूड वायदा 3.5 फीसदी बढ़कर 74.2 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया, जबकि यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड 3.7 फीसदी की बढ़त के साथ 70.7 डॉलर प्रति बैरल पर हो गया है। इस तेजी से पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से ही अस्थिर है। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का असर कई क्षेत्रों पर पड़ सकता है। शेयर बाजारों में भी इसका प्रभाव देखा गया, जहां निफ्टी और डाओ फ्यूचर्स समेत कई देशों के बाजार लाल निशान पर कारोबार कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह युद्ध लंबा चला, तो कच्चे तेल की कीमतें और बढ़ सकती हैं, जिससे पेट्रोल, डीजल, खाद्य पदार्थ और अन्य जरुरी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू सकती हैं। ऑयल एक्सप्लोरेशन कंपनियों जैसे पेट्रोल, डीजल, खाद्य पदार्थ की कीमतें छू सकती हैं आसमान ओएनजीसी और ऑयल इंडिया के शेयरों में वृद्धि की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि इन कंपनियों को महंगे कच्चे तेल से फायदा हो सकता है। दूसरी ओर पेंट और टायर कंपनियों के शेयरों में गिरावट की उम्मीद है, क्योंकि इन उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ जाएगी। इसके अलावा जियोपॉलिटिकल तनाव के बढ़ने से सोने की कीमतों में भी उछाल देखने को मिल सकता है। युद्ध जैसे हालात में निवेशक गोल्ड में निवेश को सुरक्षित मानते हैं, जिससे सोने की मांग और कीमतें बढ़ जाती हैं। ईरान- इजरायल संघर्ष के बीच, निवेशक गोल्ड की तरफ रुख कर सकते हैं। ऐसे संघर्षों का प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, खासकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर । युद्ध की स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, आयात-निर्यात और सप्लाई चैन बुरी तरह प्रभावित होते हैं, जिससे महंगाई बढ़ने लगती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी ऐसा ही हुआ जब कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया और वैश्विक बाजारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा ।