पाकिस्तान और चीन को भारत के विरुद्ध उकसाने की गतिविधियों में भी अमेरिका की सीआईए सक्रिय रही है। इसके साथ-साथ वहां के नेतृत्व ने भी भारत को नीचा दिखाने में कभी किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी। इसे महज एक संयोग या राहुल गांधी का बचकानापन ही नहीं कहा जा सकता कि वह अमेरिका की धरती पर जाकर भारत के विरुद्ध जहर उगलकर अपने देश लौट आए हैं । इसके पीछे भारत के वर्तमान नेतृत्व को चलता करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश काम कर रही है । भारत का मित्र नहीं रहा है। हर मोड़ पर इसने भारत को पटखनी देने का हर संभव प्रयास किया है। पाकिस्तान और चीन को भारत के विरुद्ध उकसाने की गतिविधियों में भी अमेरिका की सीआईए सक्रिय रही है। इसके साथ-साथ वहां के नेतृत्व ने भी भारत को नीचा दिखाने में कभी किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी। इसे महज एक संयोग या राहुल गांधी का बचकानापन ही नहीं कहा जा सकता कि वह अमेरिका की धरती पर जाकर भारत के विरुद्ध जहर उगलकर अपने देश लौट आए हैं। इसके पीछे भारत के वर्तमान नेतृत्व को चलता करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश काम कर रही है। जिसका मोहरा राहुल गांधी को बनाया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रची जा रही इस साजिश का नेतृत्व अमेरिका और चीन कर रहे हैं। ये दोनों ही देश भारत को अपने लिए एक चुनौती बनने देने से रोकने के लिए सक्रिय हैं। खबर है कि भारत फरवरी 2026 तक विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। भला इस खबर को चीन और अमेरिका कैसे पचा सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को उसकी भीतरी समस्याओं में उलझाने का काम किया जा रहा है। इसके लिए पूरी तरह समाप्त गए खालिस्तानी आंदोलन को फिर से जीवित करने का गंभीर प्रयास किया जा रहा है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि जिस राहुल गांधी की दादी को खालिस्तानी आतंकवादियों ने ही मारा था, वह भी खालिस्तानी आंदोलन का समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी इस बात को भूल गए हैं कि उनकी दादी ने अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले ही कहा था कि उनके शरीर के रक्त का एक-एक कतरा देश के काम आएगा। आज इंदिरा गांधी खून की कीमत को राहुल गांधी सत्ता स्वार्थ के लिए पूरी तरह भूल चुके हैं। तभी तो वह अमेरिका की धरती पर खड़े होकर खालिस्तानी आंदोलन को हवा देते दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका ने अपनी धरती पर भारत के खालिस्तानी आतंकवादियों को खुला समर्थन और संरक्षण देना आरंभ कर दिया है। अमेरिका की इसी नीति के चलते वांछित खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित दक्षिणी जिला न्यायालय में एक दीवानी मुकदमा दायर किया है। जिसमें अमेरिका की एक अदालत भारत सरकार को समन जारी किए हैं। यह वही अमेरिका है जो अपने यहां नीग्रो लोगों का राष्ट्र देने को कभी तैयार नहीं होता । यद्यपि नीग्रो लोगों की मांग बहुत अधिक जायज है, परन्तु अमेरिका अपनी तानाशाही दिखाकर इन लोगों की मांग को मानने को तैयार नहीं है। इसके विपरीत वह भारत को तोड़ने के षडयंत्रों में अपने आप को सम्मिलित करता रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि अमेरिका को सही जवाब देने वाला हमारे पास नेतृत्व नहीं रहा है। इस संबंध में हमें सावरकर जी के जीवन का एक प्रसंग याद आता है। बात उन दिनों की है, जब देश के बंटवारे की गतिविधियां बड़े जोरों पर चल रही थीं। उन्हीं दिनों अमेरिका का एक पत्रकार लुई फिशर भारत में रहकर भारत विभाजन पर देश के बड़े नेताओं की प्रतिक्रिया जान रहा था। वह पहले तो जिन्ना के पास गया और उसके पश्चात वह वीर सावरकर जी के पास पहुंचा । बातचीत आरंभ हुई तो फिशर की जुबान फिसल गई और उसने बिना यह सोचे कि अब तू जिन्ना के पास नहीं अपितु सावरकर जी के पास बैठा है, उनसे भी यह प्रश्न कर दिया कि ” आखिर आपको मुसलमानों को अलग देश पाकिस्तान देने में आपत्ति क्या है ? ” इस पर सावरकर जी ने उल्टे फिशर से ही प्रति प्रश्न कर लिया “आप लोग भारी मांग के उपरांत भी नीग्रो लोगों के लिए अलग नीग्रो स्थान क्यों नहीं स्वीकार कर लेते ? ” श्री फिशर ने इस प्रश्न पर वही बात कह दी, जिसे सावरकर जी उनसे कहलवाना चाहते थे । वह बोले ” देश का विभाजन करना राष्ट्रीय अपराध होगा, इसलिए नहीं करते।” सावरकर जी को अपनी बात कहने का सही अवसर मिल गया था। वह बोले ” आपका उत्तर सही राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत और तथ्य पूर्ण है । हर राष्ट्रभक्त अपने देश के टुकड़े सहन नहीं कर सकता । देश का विभाजन चाहने वाले देशभक्त कदापि नहीं कहे जा सकते। इसीलिए हम भारत विभाजन की योजना को राष्ट्र विरोधी बात कहकर उसका विरोध कर रहे हैं। जबकि मुस्लिम लीगी जो इस देश को ही नापाक मानते हैं, इसके टुकड़े कर देने पर तुले हुए हैं। लुई फिशर ने बाद में अपने एक लेख में लिखा ” मैंने सावरकर के हृदय में जहां राष्ट्रभक्ति की असीमित भावना देखी वहां जिन्ना के हृदय में भारत में भारतीय संस्कृति के प्रति घोर घृणा के बीज दिखाई दिए। सावरकर के राष्ट्रवाद को पानी पी पीकर कोसने वाले राहुल गांधी क्या सावरकर के व्यक्तित्व से कोई शिक्षा ले पाएंगे ? संभवतः कदापि नहीं । क्योंकि वह उस दोगली विचारधारा में पले बढ़े हैं जो दोगले लोगों को राष्ट्रभक्त मानने की समर्थक रही है और राष्ट्रभक्तों को अपराधी के दृष्टिकोण से देखती रही है। दोगले लोगों की आरती उतारना और देशभक्तों को लताड़ना कांग्रेसी संस्कारों का एक ऐसा रक्तबीज है जो इसे कभी भी राष्ट्र के प्रति पवित्र नहीं होने देता। अमेरिका की धरती पर जाकर जिस प्रकार देश विरोधी बयान देकर राहुल गांधी लौटे हैं, उससे उन्होंने कांग्रेस के इसी रक्तबीज का एक बार फिर परिचय दिया है। अतः अमेरिका की अदालत ने भारत सरकार को समन जारी नहीं किया है बल्कि उससे समन जारी करवाया गया है। जिन लोगों ने अपने ही देश के विरुद्ध जाकर अमेरिका को अपना समर्थन देकर उसका दुस्साहस इतना बढ़ाया है, वे राष्ट्रीय संदर्भ में पूर्णतया नंगे हो चुके हैं और अब उन्हें देश की जनता को पहचानने में देर नहीं करनी चाहिए। जो लोग राहुल गांधी की सभाओं में नारे लगाते हैं कि ” राहुल तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं ” उन्हें भी इस नारे की गंभीरता पर विचार करना चाहिए कि वह किस बिंदु पर राहुल गांधी के साथ हैं ? क्या देश तोड़ने के बिंदु पर भी साथ खड़े हैं।