बरपेटा । असम में धर्म के नाम पर एक बार फिर राजनीतिक बहस शुरू हो गई है। असम के बरपेटा से बड़ी खबर सामने आई है। बताया जा रहा है कि 28 मुस्लिमों को वहां डिटेंशन कैंप में डाल दिया गया है। बताया जा रहा है कि इन लोगों के पास भारतीय कागजात नहीं थे। इसके बाद से राज्या का सियासी पारा बहुत ज्यादा हाई हो गया है। इस मामले पर मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन ऑफ असम ने आपत्ति जताई है। मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन ऑफ असम के अध्यक्ष आशिक रब्बानी ने इसे सरासर गलत करार दिया है। साथ ही उन्होंने कहा है कि वो इस कदम के खिलाफ प्रदर्शन भी करेंगी। दूसरी तरफ गौहाटी हाई कोर्ट की सीनियर वकील रिजावल करीम ने असम की पार्टी संगठन से इन 28 लोगों को हर संभव मदद देने की अपील की है। बरपेटा के एक स्थानीय कार्यकर्ता फारुक खान ने बताया कि जिले के विभिन्न क्षेत्रों के 28 परिवारों में से प्रत्येक को पुलिस स्टेशनों में बुलाया गया था, जिसके बाद उन्हें एसपी कार्यालय में बुलाया गया और जबरन बस में बिठाया गया । खान ने कहा कि असम पुलिस की सीमा शाखा द्वारा उन्हें विदेशी नोटिस दिए गए और उनके मामले विदेशी न्यायाधिकरणों को भेज दिए गए, जहां कई सुनवाई के बाद उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया। अवैध प्रवासन के मामलों से निपटने के लिए विदेशी अधिनियम 1946 के तहत स्थापित विदेशी न्यायाधिकरण अर्ध न्यायिक निकाय हैं। डी (संदिग्ध ) मतदाताओं और विदेशियों के मामलों से निपटने के लिए पूरे असम में लगभग 100 ऐसे न्यायाधिकरण हैं। पड़ोसी बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों का पता लगाने के लिए स्वदेशी असमियों द्वारा लंबे आंदोलन के बाद असम में ऐसे न्यायाधिकरण स्थापित किए गए थे । उन्होंने कहा कि अवैध प्रवासियों ने असमिया लोगों की पहचान और संस्कृति के लिए खतरा पैदा कर दिया है।