मुस्लिम देश पाकिस्तान हो या बांग्लादेश सांप्रदायिक सोच की गिरफ्त में इतने हैं कि भारत पर कैसे आक्शेप लगाए जाएं, इसका अवसर तलाशने में लगे रहते है । भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने में कुछ ताकतें पूरा जोर लगा रही हैं। पहले पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत में मिली शरण को लेकर तो अब बांग्लादेश में आई बाढ़ के पीछे भारत की भूमिका इतनी उग्रता के साथ बताई गई कि सीमा पर भारतीय सैन्य बलों की तरफ से गोलीबारी की अफवाहें तक सोशल मीडिया पर फैला दी गई। इसे लेकर वहां रह रहे हिंदुओं में तनाव इतना बढ़ गया कि ढाका में भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने जब अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से मुलाकात की तो यह अफवाह भी उड़ा दी गई कि उच्चायुक्त को तलब किया गया है। आखिरकार भारतीय विदेश मंत्रालय को दो बार आगे आकर अफवाहों का खंडन करना पड़ गया । विदेश मंत्रालय ने स्पश्ट किया है कि भारत के इलाके में स्थित बांध के द्वार खोलने की वजह से बांग्लादेश में बाढ़ के हालात बदतर नहीं हुए है। दरअसल वहां के मीडिया ने यह सूचना दे दी की भारत में त्रिपुरी के गुमती नदी पर बने दुम्बुर बांध के द्वार खोल दिए गए है, जिससे बांग्लादेश के पूर्वी इलाके में बाढ़ आ गई। जबकि तथ्यात्मक सच्चाई यह है कि बांग्लादेश के जिस क्शेत्र में बाढ़ आई हुई हैं, वहां सेदुम्बुर बांध की दूरी 120 किमी से भी ज्यादा है। यही नहीं यहां जो बिजली बनाई जाती है, उसमें से 40 मेगावाट बिजली बांग्लादेश को दी जाती है । भारत इस पूरे इलाके में नदी के जलस्तर की लगातार निगरानी करता है। 21 अगस्त के बाद जो मूसलाधार बारिश त्रिपुरा और इस नदी के जल संग्रह क्शेत्र में हुई है, उसकी सूचना निरंतर बांग्लादेश को दी जाती रही है। 21 अगस्त 2024 को श्याम तीन बजे भी सूचना दे दी गई थी। इस वशेत्र में विडंबना यह भी है कि भारत व बांग्लादेश के आर-पार जाने वाली 54 नदियां हैं। इन पर द्विपक्शीय संबंधों में नदियों के जल बंटवारें की भी बड़ी अहमियत है । तीस्ता नदी के जल बंटवारें को लेकर भी कई बार शेख हसीना से द्विपक्शीय वार्ताएं हुई हैं, लेकिन परिणाम तक नहीं पहुंच पाए। इन सब कारणों के संदर्भ में विदेश मंत्रालय का कहना है कि ‘यह बिल्कुल गलत है कि बाढ़ नदी के द्वार खोलने की वजह से आई है। बाढ़ दोनों देशों के बीच एक साझा समस्या है, इससे दोनों देशों की जनता को परेशानी झेलनी पड़ती है। अतएव हर साल पैदा होने वाली इस समस्या से छुटकारे के लिए आपसी सहयोग से काम लेना होगा ।’ भारी बारिश के चलते पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा में भीशण बारिश से ज्यादातर नदियां बाढ़ के पानी से लबालब है । 1900 जगह भूस्खलन हुआ है, जिसके चलते 17 लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं और करीब एक दर्जन लोग मारे गए हैं। हजारों लोगों को 330 राहत शिविरों में शरण दी गई है। भूस्खलन से अनेक जगह सड़क संपर्क बाधित हो गया है। पश्चिमी त्रिपुरा और सिपाहीजला जिला सर्वाधिक बाढ़ की चपेट में है। त्रिपुरा के पड़ोसी राज्य मिजोरम की राजधानी आइजोल और कोलासिब का भी बुरा हाल है। सेना और एनडीआरएफ लगातार पानी में फंसे लोगों को निकाल रहे हैं। असम रायफल्स की चार टुकड़यां इस काम में लगी हुई हैं। अतएव भारत खुद बाढ़ की चपेट में हैं। इस बाढ़ का प्रमुख कारण बांध के नीचे की ओर बढ़े जलग्रहण क्शेत्रों में पानी भर जाने के कारण आई है। वैसे भी दुम्बुर बांध 30 मीटर से भी कम ऊंचाई का बांध है। अतएव बांध की जलग्रहण क्शमता बहुत अधिक नहीं है। बांग्लादेश में बाढ़ से हालात खराब होने का एक बड़ा कारण वहां की सेना और राहत दलों द्वारा व्यापक पैमाने पर कोई कदम नहीं उठाना भी रहा है। दरअसल बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से ही कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब है। अंतरिम सरकार की तरफ से बार-बार निर्देश जारी किए जाने के बाबजूद ढाका व कुछ शहरों के ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर पुलिस थाने अभी भी खाली पड़े हुए हैं। भीड़ का निशाना बनने के डर से पुलिसकर्मी ड्यूटी पर नहीं आ रहे हैं। ऐसी विशम स्थिति में भारतीय उच्चायुक्त भी अपने कार्यालय और परिसंपत्तियों को बचाने की चिंता में है। जबकि यह मुद्दा प्रणय वर्मा महोम्मद यूनुस के समक्श उठा चुके है। साफ है, यूनुस ने भारत को महत्वपूर्ण पड़ोसी देश बताकर स्थानीय कट्टरपंथियों को नसीहत जरूर दी है, लेकिन भारत विरोधी अराजक तत्वों पर लगाम लगाने में अंतरिम सरकार सफल होते नहीं दिख रही है। इससे यह भी आशंका होती है कि जब भारतीय उच्चायुक्त ही संकट में है। तो इस बात पर कैसे संतोश कर लिया जाए कि वहां रहने वाले हिंदू अल्पसंख्यक सुरक्शित और भयमुक्त हैं ? भारत एवं बांग्लादेश के बीच बहने वाली नदियों के जल बंटवारे को लेकर समझौते की बातचीत 25 वर्श से चल रही है। शेख हसीना और नरेंद्र मोदी की 2022 में परस्पर हुई बातचीत के बाद कुशियारा नदी के संदर्भ में अंतरिम जल बंटवारा समझौते पर हस्ताक्शर भी हो गए हैं। 1996 में गंगा नदी जल संधि के बाद इस तरह का यह पहला समझौता है। इसे अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता माना गया है। यह भारत के असम और बांग्लादेश के सिलहट क्शेत्र को लाभान्वित करेगा 154 नदियां भारत और बांग्लादेश की सीमाओं के आरपार जाती हैं और सदियों से दोनों देशों के करोड़ों लोगों की आजीविका का मुख्य साधन बनी हुई हैं। इन नदियों के किनारों पर मानव सभ्यता के विकास के साथ सृजित हुए लोक गीत और लोक कथाएं, धर्म एवं संस्कृति की ऐसी धरोहर हैं, जो मानव समुदायों को लोक कल्याण का पाठ पढ़ाने के साथ नैतिक बल मजबूत बनायें रखने का काम करती हैं। बावजूद दोनों देशों के बीच बहने वाली तीस्ता नदी के जल बंटवारे को अंतिम रूप अब तक नहीं दिया जा सका है।