फांसी की सजा पाया दोषी दया याचिका खारिज करने के निर्णय को नहीं दे सकेगा चुनौती
नई दिल्ली। देश में आपराधिक कानून बदलने वाला है। नया कानून संसद से पारित हो चुका है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हो जाएगा। नए कानून लागू होने के बाद आपराधिक न्याय प्रणाली में काफी बदलाव आएंगे उनमें से एक यह भी है कि फांसी की सजा पाया दोषी राष्ट्रपति या राज्यपाल के दया याचिका खारिज करने के निर्णय को अदालत में चुनौती नहीं दे पाएगा। नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 472 कहती है कि दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णय के खिलाफ किसी अदालत में अपील नहीं होगी। यानी सीधा मतलब है कि आदेश को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। इतना ही नहीं नए कानून के मुताबिक, कोई तीसरा पक्ष दया याचिका दाखिल नहीं कर है कि दया याचिका दोषी, उसका सकता । कानून कहता कानूनी उत्तराधिकारी या कोई रिश्तेदार ही दाखिल कर सकता है। इसका मतलब है कि किसी दोषी की सजा माफ कराने के लिए कोई तीसरा पक्ष दया याचिका नहीं दाखिल कर सकता, जबकि मौजूदा कानून में ऐसी कोई शर्त नहीं है। नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की ये दोनों ही व्यवस्थाएं नई हैं, क्योंकि इससे पहले बहुत बार फांसी की सजा पाए दोषी दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं, इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर विचार किया और पूरे मामले के विश्वेषण के बाद मौत की सजा को उम्रकैद में भी तब्दील किया। इस संबंध में शत्रुघन चौहान बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट का 21 जनवरी, 2014 का फैसला उल्लेखनीय है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड के मामले में गाइड लाइन तय की हैं। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका निपटाने में अनुचित देरी के आधार पर 15 दोषियों की मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी थी। सभी 15 दोषियों की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा दया याचिका खारिज होने के बाद कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था, लेकिन अब नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की दया याचिका से संबंधित प्रावधान करने वाली धारा 472 में साफ कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 72 (राष्ट्रपति को दोषी को माफी देने का अधिकार) और अनुच्छेद 161 (राज्यपाल को दोषी को माफी देने का अधिकार) के तहत दिए गए आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में अपील नहीं होगी और राष्ट्रपति या राज्यपाल का आदेश अंतिम होगा। कानून में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के निर्णय पर पहुंचने के किसी भी सवाल पर कोई भी अदालत में किसी तरह की जांच नहीं की जाएगी। यानी नया कानून कहता है कि किसी भी अदालत को इस चीज की जांच पड़ताल और सवाल करने का अधिकार नहीं होगा कि राष्ट्रपति या राज्यपाल दया याचिका के बारे में लिए गए निर्णय पर कैसे पहुंचे। देखा जाए तो कानून में स्पष्ट तौर पर आगे कोर्ट जाने पर पूर्ण विराम लगाया गया है। मृत्युदंड के दोषियों की ओर से दया याचिका दाखिल करने के संबंध में नए कानून में एक और खास प्रावधान है जिसके मुताबिक, दया याचिका दोषी, उसका कानूनी उत्तराधिकारी या रिश्तेदार ही दाखिल कर सकता है। यानी किसी तीसरे पक्ष को दोषी की माफी के लिए दया याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं होगा।