बराक घाटी पर असम के बंगाली अपना रुख स्पष्ट करें : अल्फा (स्वा.)
गुवाहाटी। प्रतिबंधित उग्रवादी समूह अल्फा (स्वा.) ने असम से बंगाली बहुल बराक घाटी को अलग राज्य बनाने की मांग का कड़ा विरोध करते हुए रविवार को राज्य में बंगाली भाषी लोगों से 60 दिनों के भीतर इस मांग पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा । संगठन ने चेतावनी दी कि यदि बंगाली 60 दिनों के भीतर इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने में विफल रहते हैं, तो राज्य में पूरी बंगाली भाषी आबादी भविष्य में किसी भी अप्रिय घटना के लिए जिम्मेदार होगी। एक बयान में अल्फा (स्वा.) के प्रचार विंग के सदस्य रुमेल असोम ने बराक घाटी के अलगाव के लिए समर्थन जुटाने के लिए बराक घाटी स्थित संगठन, बराक डेमोक्रेटिक फ्रंट (बीडीएफ) के मुख्य संयोजक प्रदीप दत्त रॉय की आलोचना की । बयान में कहा गया है कि असम में विभिन्न कि समुदाय सद्भाव और एकता के साथ रह रहे हैं । लेकिन प्रदीप दत्त रॉय बराक घाटी को अलग करने की मांग उठाकर लोगों के बीच विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं । बराक घाटी विभाजन करने का उनके पास कोई अधिकार नहीं है और न ही उनके पूर्वजों का इसकी सुरक्षा में कोई योगदान है। बयान में कहा गया कि हम किसी भी परिस्थिति में असम का विभाजन नहीं होने देंगे। बराक घाटी, जिसमें दक्षिण असम में कछार, करीमगंज और हैलाकांदी जिले शामिल हैं, बंगाली भाषी हिंदुओं और मुसलमानों का प्रभुत्व है। इस क्षेत्र में 16 विधानसभा सीटें (126 में से) हैं। जिलों में कई लोगों ने आरोप लगाया है कि इस क्षेत्र की उपेक्षा की गई है क्योंकि अधिकांश नेता असमिया बहुल ब्रह्मपुत्र घाटी से चुने जाते हैं । इस असंतोष के कारण अलग राज्य की मांग उठी। असम की लगभग 30 प्रतिशत आबादी (3.2 करोड़ ) बांग्ला भाषी लोग हैं, लेकिन ब्रह्मपुत्र घाटी में वे अल्पसंख्यक हैं। चुनाव में कई विधायकों और सांसदों के भाग्य का फैसला करने में भी बंगाली महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।