कलंकित भागचंद जैन को बचाने में चंद्र प्रकाश शर्मा के क्या हैं स्वार्थ?
विहंगम योग के नाम पर चंदे के धंधे की पोल खुलने का सता रहा है डर?
गुवाहाटी। गत 15 अगस्त को अमृत भोग भंडारा के नाम से तथाकथित दुकानदारी चलाने वाले भागचंद जैन को महानगर के फाटाशील आमबाड़ी स्थित महर्षि सदाफल देव विहंगम योग आश्रम से शराबखोरी और जिस्मफरोशी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था। इस घटना से यह खुलासा हुआ था कि किस तरह कुछ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए आश्रम की संपत्ति का सरेआम दुरुपयोग कर रहे थे। ये लोग आश्रम में चल रहे अनैतिक कार्यों की जानबूझकर अनदेखी कर रहे थे। जिस दिन भागचंद जैन को रंगे हाथों पकड़ा गया, उसी दिन से विहंगम योग के नाम पर चंदे का धंधा करने वाले चंद्र प्रकाश शर्मा और उसके कुछ साथी भागचंद जैन को बचाने में जुट गए। पहले तो आश्रम की इज्जत की दुहाई देकर उसे पुलिस के हवाले नहीं करने दिया गया, फिर जब इस घटना की खबर सोशल मीडिया पर सार्वजनिक होने लगी तो खुद को आश्रम का कर्ताधर्ता बताने वाला चंद्र प्रकाश अपने व्हाट्सएप ग्रुप और अन्य जगहों से भागचंद से संबंधित खबरें और उन पर आने वाले कमेंट्स को डिलीट करना शुरू कर दिया। जब लोगों ने उसकी इन हरकतों पर सवाल खड़े किए तो उसने बेहूदे कुतर्क देकर सवाल उठाने वालों का मुंह बंद करने की असफल कोशिश की। यह बात अलग है कि इस पूरे प्रकरण में चंद्र प्रकाश शर्मा नाम का भागचंद जैन का हितेषी आम जनता के सामने पूरी तरह नंगा हो गया। लोगों को समझ में आ गया कि दाल में कुछ काला है। विहंगम योग के नाम पर चंदे की दुकान चलाने वाला यह व्यक्ति भागचंद जैन जैसे कलंकित को बचाने की बेशर्म कोशिश क्यों कर रहा है? उसे विहंगम योग आश्रम की गरिमा का ख्याल क्यों नहीं है, जैसे सवाल लोगों के दिमाग में जाने लगे। इस बीच उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत को सही साबित करते हुए चंद्र प्रकाश ने आश्रम को भागचंद जैन की काले कारनामों से मुक्त करने वाले राकेश शर्मा को ही विहंगम विरोधी कार्यो में लिप्त बता दिया। इतना ही नहीं, उन पर गुरुद्रोह का आरोप तक लगा दिया। यहां यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या आश्रम में चल रहे अनैतिक कार्यों पर से पर्दा हटाना विहंगम विरोधी कार्य है ? क्या भागचंद जैन जैसे तत्वों से आश्रम को मुक्त करने की कोशिश करना गुरु द्रोह है? सवाल का जवाब निश्चित रूप से ना ही है। असल में सवाल तो यह उठाना चाहिए कि चंद्र प्रकाश शर्मा और उसके चेले चपाटी के साथ इंफाल के योगेंद्र गुप्ता गुरु और आश्रम के मान-सम्मान को दरकिनार कर भागचंद जैन जैसे अपराधी को बचाने में क्यों लगे हैं? क्या वहां भंडारे के नाम पर भी आर्थिक अनियमितताओं का खेल चल रहा था? क्या चंद्र प्रकाश शर्मा को विहंगम योग संस्थान के नाम पर चल रहे अपने चंदे के धंधे के बंद होने का डर सता रहा है? इन सब सवालों का विस्तार से जवाब अगले अंक में दिया जाएगा।