26 हफ्ते का गर्भ गिराने के मामले को लेकर दो जज एकमत नहीं
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने नौ अक्तूबर के उस आदेश को वापस लेने की केंद्र की याचिका पर बुधवार को खंडित फैसला सुनाया, जिसमें एक महिला को 26 साल की उम्र में गर्भपात कराने की अनुमति दी गई थी। न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि केंद्र की याचिका को अब निर्णय के लिए उचित पीठ के पास भेजने के लिए मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष रखा जाएगा। इससे पहले दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने कहा उनकी न्यायिक अंतरात्मा उन्हें गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति नहीं देती है । उनके इस फैसले पर असहमति प्रकट करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि महिला के फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए । न्यायमूर्ति नागरत्ना ने 9 अक्तूबर के आदेश को वापस लेने की मांग करने वाली केंद्र की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पिछले आदेश पर अच्छी तरह से विचार किया गया था। दरअसल, एम्स, दिल्ली में एक विवाहित महिला 26 सप्ताह के गर्भ को मेडिकल तरीके से समाप्त करने की अपील के साथ पहुंची। गर्भ को चिकित्सीय तरीके से गिराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ही न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने गर्भ गिराने की अनुमति दी थी। भ्रूण के गर्भपात के मामले में केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने आदेश को वापस लेने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने सोमवार को महिला को यह ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था का चिकित्सीय उपायों के साथ समाप्त करने की अनुमति दी थी कि वह अवसाद से पीड़ित थी और भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं थी। गौरतलब है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत, गर्भावस्था को समाप्त करने की ऊपरी सीमा 24 सप्ताह है। विवाहित महिलाओं, बलात्कार पीड़ित महिलाओं सहित विशेष श्रेणियों और विकलांग और नाबालिगों जैसी अन्य कमजोर महिलाओं को गर्भ गिराने के लिए मेडिकल बोर्ड और अदालत की अनुमति जरूरी होती है।