1885 में ही दर्ज हुआ श्रीराम जन्मभूमि को लेकर पहला मुकदमा
लखनऊ, 3 दिसंबर (हि.स.)। 1857 के विद्रोह की आग में देश जल ही रहा था। अंग्रेजी हूकूमत से हिन्दू और मुसलमान दोनों समान रुप से प्रताडि़त थे। यह वक्त ऐसा था जब अभूतपूर्व हिंदु-मुस्लिम एकता भी कायम हुई। लेकिन श्रीराम जन्मभूमि का मसला हल नहीं हो पाया। विवाद बढ़ा तो अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित स्थल को तारों के बाड़े से घेर दिया। हांलाकि अवध के नबावों के समय में ही हिन्दु मुस्लिम दोनों को पूजा और नमाज की इजाजत दे दी गई थी। 1885 आते-आते देश मध्यकालीन न्याय व्यवस्था की जकडऩ से मुक्त होकर आधुनिक न्याय व्यवस्था के प्रारंभिक चरण में प्रवेश करना शुरू कर चुका था। फैजाबाद के जिला जज की अदालत में 25 मई 1885 को पहली बार श्रीराम जन्मभूमि का मामला पहुंचा और कानूनी लड़ाई का सूत्रपात हो गया।
विवादित ढांचे को अलग करने को दीवार बनी
फैजाबाद गजेटियर के अनुसार अयोध्या में विवादित ढांचे के पास निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास ने एक ऊंचा मंच बनाया। इसी मंच पर महंत रघुवर दास ने राममंदिर का निर्माण शुरू कर दिया। जिसे लेकर मुस्लिम पक्ष ने फैजाबाद जिला मजिस्टे्रट के यहां विरोध दर्ज कराया। जिसके बाद निर्माण कार्य को रुकवा दिया गया और मंच और बाबरी ढांचे को अलग करने के लिए एक दीवार बनाई गई थी। इसके बाद महंत रघुवर दास ने चबूतरे के निर्माण और उसके मालिकाना हक का दावा करते हुए फैजाबाद के उपन्यायधीश की अदालत में मुकदमा दायर कर दिया। हांलाकि उप न्यायधीश और जिला न्यायधीश अनुमति देने से इंकार कर दिया। लेकिन महंत ने न्यायायिक आयुक्त अवध की अदालत में मामला दायर कर दिया। न्यायायिक आयुक्त ने यथास्थिति में किसी भी बदलाव से इंकार कर दिया और साल 1934 तक स्थिति यथावत कायम रही।