नई दिल्ली। असम के कामरूप महानगर जिले में वन भूमि के अतिक्रमण मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक से जवाब तलब किया है। अधिकरण ने एक मीडिया रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया है, जिसमें दावा किया गया कि जिले में 35,329 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैले 16 आरक्षित वनों के एक बड़े हिस्से पर अतिक्रमण किया गया है। जिले के अवैध अतिक्रमणों में फाटाशिल, दक्षिण कालापहाड़, जालुकबाड़ी, गोटानगर, हैंगराबाड़ी, रणिया और गड़भांगा जैसी पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण पहाड़ियां शामिल हैं। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए संथिल वेल की पीठ ने 19 नवंबर को जारी एक आदेश में रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा कि जंगलों पर अतिक्रमण के कारण राज्य के कई हिस्सों में मानव – पशु संघर्ष बढ़ रहा है, जो चिंता का एक बड़ा कारण बन गया है। वनों पर अतिक्रमण के कारण हवा का तापमान भी बढ़ गया है और इस साल असम में सितंबर का महीना अब तक का सबसे गर्म रहा। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में 113 से अधिक अभियान चलाए गए हैं, जिसके तहत 2022-23 में 402.32 हेक्टेयर और 2023-24 में 564.58 हेक्टेयर भूमि को खाली कराया गया है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि रिपोर्ट में पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन के बारे में महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए हैं। साथ ही वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन का संकेत भी दिया गया है। पीठ ने कहा कि खबर में यह दावा किया गया है कि कुछ जंगलों में लोग वर्षों से रह रहे हैं और उन्हें बेदखल करना मुश्किल हो सकता है। सीमाओं पर स्थित जंगलों में भी पड़ोसी राज्यों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है और सीमा विवाद पूरी तरह से सुलझने के बाद ही उन्हें अतिक्रमण मुक्त किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि खबर में पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन के संबंध में पर्याप्त मुद्दे उठाए गए हैं और वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन का भी संकेत दिया गया है। न्यायाधिकरण ने राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और कामरूप महानगर जिले के जिला आयुक्त को पक्षकार या प्रतिवादी के रूप में शामिल किया। कहा कि प्रतिवादियों को न्यायाधिकरण की पूर्वी क्षेत्रीय पीठ (कोलकाता में) के समक्ष हलफनामे के माध्यम से अपना जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया जाता है। मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी।