हम बच्चे को नहीं मार सकते, गर्भपात की जिद पर सीजेआई की सख्त टिप्पणी
नई दिल्ली। 26 सप्ताह की गर्भवती महिला पहले ही दो बच्चों की मां बन चुकी है। अब महिला तीसरी बार बच्चे को जन्म देने वाली है, लेकिन वह बच्चा गिराना चाहती है, लेकिन मेडिकल तरीकों का इस्तेमाल कर गर्भपात की अनुमति लेने पहुंची महिला को सुप्रीम कोर्ट से भी निराशा हाथ लगी है। गर्भ गिराने की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसी बच्चे को नहीं मार सकते। कोर्ट के निर्देश पर एम्स के मेडिकल बोर्ड ने कहा था कि बच्चे की जान बचाई जा सकती है। अदालत मामले में शुक्रवार सुबह 10.30 बजे भी सुनवाई करेगी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 10 अक्तूबर को केंद्र सरकार की अपील पर गर्भपात पर अस्थायी रोक लगाई थी। केंद्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार, 12 अक्तूबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि हम एक बच्चे को नहीं मार सकते । कोर्ट ने ये भी पूछा कि गर्भवती महिला शादीशुदा हैं, दो बच्चों की मां हैं। ऐसे में वे 26 हफ्तों तक क्या कर रही थीं? अदालत ने स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत को अजन्मे बच्चे, एक जीवित और व्यवहार्य भ्रूण के अधिकारों को उसकी मां के फैसले लेने के अधिकार के साथ संतुलित करना है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार और महिला के वकील से बात कर गर्भ में पल रहे शिशु को कुछ और हफ्तों तक पालने की संभावना पर विचार करने को कहा। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के साथ अदालत की पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। पीठ ने 27 वर्षीय महिला की ओर से पेश वकील से पूछा कि क्या आप चाहते हैं कि हम एम्स के डॉक्टरों को की धड़कनों को रोकने के लिए कहें ? जब वकील ने जवाब में नहीं कहा, तो पीठ ने पूछा, जब महिला ने 24 सप्ताह से अधिक समय तक इंतजार किया है, तो क्या वह कुछ और हफ्तों तक भ्रूण को अपने गर्भ में नहीं पाल सकती ? ताकि एक स्वस्थ बच्चे के जन्म की संभावना बन सके। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, मामला सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष तब आया जब बुधवार को दो न्यायाधीशों की पीठ ने खंडित फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने 9 अक्तूबर के आदेश में कहा था कि महिला अवसाद से पीड़ति है । कोर्ट ने भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं होने के कारण महिला को गर्भ गिराने के लिए चिकित्सीय तरीके अपनाने की अनुमति दी थी। दरअसल, एक विवाहित महिला 26 सप्ताह के गर्भ को मेडिकल तरीके से समाप्त कराने के लिए एम्स, दिल्ली के डॉक्टरों से मिली थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने गर्भ गिराने की अनुमति दी थी। हालांकि, भ्रूण के गर्भपात के मामले में केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने आदेश को वापस लेने की मांग की। भाटी ने चीफजस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ को गत 10 अक्तूबर को बताया था कि मेडिकल बोर्ड की राय में भ्रूण विकसित होने और बच्चे के जन्म की पूरी संभावना है। डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें भ्रूणहत्या करनी होगी मेडिकल बोर्ड के ऐसा कहने के बावजूद गर्भपात की अनुमति दी गई। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा था कि एम्स के डॉक्टर गर्भपात के इस मामले में बहुत गंभीर दुविधा में हैं।