हिंदू धर्म में सिंदूर विवाहित होने की निशानी है तथा इसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए मांग में सजाती हैं लेकिन सिंदूर का महत्व बस इतना ही नहीं है। सिंदूर घर में नकारात्मकता के साथ वास्तुदोष को भी दूर करता है। महिलाएं मांग में जिस स्थान पर सिंदूर लगाती है वह स्थान समाधि योग का प्रथम स्थान ब्रह्मरन्ध्र के ठीक ऊपर का भाग होता है। स्त्री के शरीर में यह भाग पुरुष की अपेक्षा विशेष कोमल होता है, अतः उसकी संरक्षा के लिए शास्त्रकारों ने सिंदूर का विधान किया है। सिंदूर में पारा जैसी अलभ्य धातु बहुत मात्रा में होती है। जिससे यह स्त्री के मस्तिष्क को हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है और बाहरी दुष्प्रभाव से बचाता है। सिंदूर महिलाओं के श्रंगार के साथ ही उनकी सौंदर्य में भी वृद्धि करता है। सिंदूर के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़ती हैं।
निगेटिविटी को नो
बहुत से लोग घर के मुख्य द्वार पर भी सरसो का तेल और सिंदूर मिला कर स्वस्तिक चिन्ह और शुभ-लाभ लिखते हैं । जिससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। सरसों का तेल शनि देव का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही घर को बुरी नजर के प्रभाव से बचाता है। वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार पर सिंदूर और तेल लगाने से घर में निगेटिव शक्तियां प्रवेश नहीं कर सकती और वास्तुदोष भी समाप्त होते हैं।
ये है मान्यता
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने अपने पति के सम्मान के लिए अपने जीवन की आहुति दी थी जिसके कारण सिंदूर को देवी पार्वती का प्रतीक माना जाता है । अतः माना जाता है कि जो महिला अपने माथे पर सिंदूर धारण करती है, देवी पार्वती का हाथ उसके सर पर सदैव बना रहता है तथा देवी पार्वती हर समय उसके पति की रक्षा करती है।