लोगों के बीच एकजुटता के महत्व को बताने, गरीबी पर अंकुश लगाने, दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन के लिए नए रास्तों की तलाश करने, विकासशील देशों में मानव और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने, शांति एवं सौहार्दपूर्ण जीवन को संभव बनाने, सरकारों को अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने की याद दिलाने एवं पूरी दुनिया में, विशेष रूप से विकासशील देशों में सहयोग, शांति, सह-जीवन, समानता और सामाजिक न्याय की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये अंतरराष्ट्रीय मानव एकता दिवस हर साल 20 दिसंबर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 22 दिसंबर 2005 को यह दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को विश्वएकजुटता कोष और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, जो दुनियाभर में गरीबी उन्मूलन के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने पर केंद्रित हैं। इस दिवस को मनाते हुए हर व्यक्ति शिक्षा में योगदान देकर, गरीबों या शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम लोगों की मदद करके अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस दिवस के माध्यम से सरकारों को सतत विकास लक्ष्य के गरीबी और अन्य सामाजिक बाधाओं का जवाब देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। विविधता में एकता दर्शाने, सतत विकास के लिए लोगों, सरकारों को प्रेरित करने, लोगों को गरीबी, भुखमरी, बीमारियों से बाहर निकालने के लिए इस दिवस का विशेष महत्व है। इसमें भारत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस जिम्मेदारी को संभालने का अर्थ है भारत को सशक्त करने के साथ-साथ दुनिया को मानव एकता की दृष्टि से एक नया चिन्तन, नया आर्थिक धरातल, शांति एवं सह-जीवन की संभावनाओं को बल देना। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, “संयुक्त राष्ट्रके निर्माण ने विश्व के लोगों और राष्ट्रों को एक साथ शांति, मानवाधिकारों और सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आकर्षित किया। संगठन की स्थापना अपने सदस्यों के बीच एकता और सद्भाव के मूल आधार पर की गई थी, जो सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा में व्यक्त की गई थी, जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए अपने सदस्यों की एकजुटता पर निर्भर करती है।” अंतरराष्ट्रीय मानवएकजुटता दिवस सतत विकास एवं समतामूलक विकास के एजेंडा पर आधारित है, जो अपने आप में गरीबी, भूख और बीमारी जैसे कई दुर्बल पहलुओं से लोगों को बाहर निकालने के लिए केंद्रित है। ‘मिलेनियम डिक्लेरेशन’ को ध्यान में रखते हुए, एकजुटता को 21वीं सदी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूलभूत मूल्यों में से एक माना जाता है, जिसके तहत कम से कम लाभ उठाने वाले और सबसे अधिक मुश्किलों का सामना करने वाले लोग उन लोगों की मदद के योग्य होते हैं जिन्हें सबसे अधिक लाभ मिलता है । मार्टिन लूथर किंग जूनियरनेकहा भी है कि एक व्यक्ति तब तक जीना शुरू नहीं करता जब तक वह अपनी व्यक्तिगत चिंताओं के संकीर्णदायरे से ऊपर उठकर समस्त मानवता की व्यापक चिंताओं तक नहीं पहुंच जाता। आज समूची दुनिया में मानवीय एकता एवं चेतना के साथ खिलवाड़ करने वाली त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण परिस्थितियां सर्वत्र परिव्याप्त हैं – जिनमें आतंकवाद सबसे प्रमुख है। जातिवाद, अस्पृश्यता, सांप्रदायिकता, महंगाई, गरीबी, भिखमंगी, विलासिता, अमीरी, अनुशासनहीनता, पदलिप्सा, महत्वाकांक्षा, उत्पीड़न और चरित्रहीनता आदि अनेक परिस्थितियों से मानवता पीड़ित एवं प्रभावित है । उक्त समस्याएं किसी युग में अलग-अलग समय में प्रभावशाली रहीं होंगी, इस युग में इनका आक्रमण समग्रता से हो रहा है । आक्रमण जब समग्रता से होता है तो उसका समाधान भी समग्रता से ही खोजना पड़ता है। हिंसक परिस्थितियां जिस समय प्रबल हों, अहिंसा का मूल्य स्वयं बढ़ जाता है। महात्मा गांधी ने कहा है कि आपको मानवता में विश्वास खोना नहीं चाहिए। मानवता एक महासागर है। यदि महासागर की कुछ बूंदें गंदी हैं, तो भी महासागर गंदा नहीं होता है।’ ऐसे ही विश्वास को जागृत करने के लिये ही विश्व मानव एकता दिवस की आयोजना की गई है। गरीबी का कारण हिंसा, आतंक, अप्रामाणिकता, संग्रह, स्वार्थ, शोषण और क्रूरता आदि हैं, इनके दंश मानवता को मूर्च्छित कर रहे हैं एवं मानव एकता की सबसे बड़ी बाधाएं हैं। इस मूर्च्छा को तोड़ने केलिए अहिंसा, सह-जीवन, सौहार्द, शांति और सह-अस्तित्व का मूल्य बढ़ाना होगा तथा सहयोग एवं संवेदना की पृष्ठभूमि पर स्वस्थ समाज-संरचना की परिकल्पना को आकार देना होगा। दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता मानव एकता का आधार तत्व है | जब तक व्यक्ति अपने अस्तित्व की तरह दूसरे के अस्तित्व को अपनी सहमति नहीं देगा, तब तक वह उसके प्रति संवेदनशील नहीं बन पाएगा। जिस देश और संस्कृति में संवेदनशीलता का स्रोत सूख जाता है, वहाँ मानवीय रिश्तों में लिजलिजापन आने लगता है । अपने अंग-प्रत्यंग पर कहीं प्रहार होता है तो आत्मा आहत होती है । किंतु दूसरों के साथ ऐसी घटना घटित होने पर मन का एक कोना भी प्रभावित नहीं होता। यह संवेदनहीनता की निष्पत्ति है। इस संवेदनहीन मन की एक वजह सह-अस्तित्व का अभाव भी है। नेल्सन मंडेला ने कहा है कि हमारी मानवीय करुणा हमें एक दूसरे से जोड़ती है – दया या संरक्षण के भाव से नहीं, बल्कि ऐसे मानव के रूप में जिसने सीख लिया है कि कैसे अपने साझा दुख को भविष्य के लिए आशा में बदला जाए। आज हम इतने संवेदनशून्य हो गये हैंकि औरों का दुःख-दर्द, अभाव, पीड़ा, औरों की आहें हमें कहीं भी पिघलाती नहीं। देश और दुनिया में निर्दोष लोगों की हत्याएं, युद्ध की विभीषिकाएं, हिंसक वारदातें, आतंकी हमले, अपहरण, जिन्दा जला देने की रक्तरंजित सूचनाएं, महिलाओं के साथ व्यभिचार- बलात्कार की वारदातें पढ़ते-देखते हैं पर मन इतना आदती बन गया कि यूं लगता है कि यह सब तो रोजमर्रा का काम है।