संविधान पर चर्चा : सत्ता और विपक्ष ने एक दूसरे पर लगाए आरोप-प्रत्यारोप

नई दिल्ली (हि.स.)। राज्यसभा में सोमवार को संविधान के 75 गौरवशाली वर्ष पर सुबह साढ़े ग्यारह बजे से लगातार रात आठ बजे तक चर्चा की गई। इस दौरान भोजनावकाश भी स्थगित रखा गया। सत्ता पक्ष ने जहां कांग्रेस को आपातकाल, कश्मीर, संविधान में किए गए संशोधनों के मुद्दे पर घेरा, वहीं विपक्ष ने पलटवार करते हुए सत्तापक्ष पर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया। राज्यसभा में चर्चा की शुरुआत केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने की। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाए कि कांग्रेस ने संविधान में संशोधन सिर्फ एक परिवार के लाभ के लिए किया। जनता के हित से उन्हें कोई सरोकार नहीं था। वहीं विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोपों पर पलटवार करते हुए सत्तापक्ष पर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अपने भाषण को अनुच्छेद 370 पर केंद्रित रखते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा। पुरी ने कश्मीरी पंडितों और सिख विरोधी दंगों का भी उल्लेख करते हुए कहा कि 370 संविधान में यह एकमात्र प्रावधान था जिसका मसौदा बाबासाहेब आंबेडकर की नजरों से नहीं गुजरा था। उन्होंने कहा कि जब संविधान सभा ने अनुच्छेद 370 ( तब संख्या 306 ए) पारित किया, आंबेडकर चुप रहे। उन्होंने कहा कि यहां तक कि सरदार पटेल भी शेख अब्दुल्ला और उनके सहयोगियों को दी गई छूट से हैरान थे। उन्होंने कहा कि संविधान के इस अनुच्छेद को निरस्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अदम्य साहस और संकल्प की आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि हालांकि इसके अस्थायी होने की बात कही गई थी लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति ने वास्तव में इसे स्थायी बना दिया। पुरी ने शेख अब्दुल्ला को लिखे आंबेडकर के पत्र का हवाला देते हुए कहा कि कश्मीर को विशेष दर्जा देकर आप कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से अलग कर रहे हैं। नतीजतन, जम्मू-कश्मीर में औद्योगिक विकास या रोजगार के अवसर नहीं होंगे। मैं आपके प्रयासों का हिस्सा नहीं बनूंगा। कांग्रेस ने कश्मीर के संबंध में संविधान के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को भारत के संवैधानिक निकाय की राजनीति में एक विसंगति थी। यह भारत के मूल विचार के खिलाफ थी। इसके बाद कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग के कामकाज पर कोई श्वेत पत्र की मांग की। चर्चा में भाग लेते हुए सिब्बल ने कहा कि कोई भी लोकतंत्र संस्थाओं के बिना नहीं चल सकता और हमारे पास कौन सी संस्थाएं हैं? हमारे पास सिर्फ कुछ संस्थाएं हैं। आपके पास संसद की संस्था है। आपके पास राज्यपाल की संस्था है, जो राज्य और केंद्र के बीच की कड़ी है। आप जानते हैं कि इस देश में राज्यपाल क्या करते हैं, वे सत्ता में बैठी सरकार के ज्यादा राजनीतिक विरोधी बन जाते हैं। आपके पास चुनाव आयोग की संस्था है। मैं चाहता हूं कि चुनाव आयोग के कामकाज पर कोई श्वेत पत्र हो । आप घोषित चुनाव तिथियों को स्थगित कर देते हैं और फिर मुफ्त चीजें देते हैं। संविधान के 75 साल पूरे होने पर चर्चा के दौरान प्रफुल्ल पटेल ने 1975 में आपातकाल लगाने के लिए कांग्रेस पर निशाना साधा।

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