शीर्षता की सूची में

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शीर्षता की सूची में

भारत के प्रमुख शैक्षिक, प्रौद्योगिकी संस्थानों और विश्वविद्यालयों के लिए बेहद अच्छी खबर है। अब भारत भी शीर्षता की वैश्विक सूची में उपस्थित है। देश के 9 संस्थान शीर्ष 50 संस्थानों की जमात में शामिल हैं और 79 भारतीय विश्वविद्यालयों को भी शीर्षता के तौर पर चिह्नित किया गया है। बीते साल यह संख्या 69 थी। एक दौर ऐसा भी था, जब हमारे संस्थान और विश्वविद्यालय 500 शीर्ष की सूची में भी नहीं आते थे। उसमें भी कोई राजनीतिक और भारत को ‘पिछड़े देश’ के तौर पर आंकने की मानसिकता रही होगी, क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में भारत शीर्ष देशों की श्रेणी में रहा है। नालंदा, तक्षशिला इसके सांस्कृतिक उदाहरण रहे हैं, लेकिन वक्त के मुताबिक, शिक्षा के आयाम और क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। आज कृत्रिम बौद्धिकता, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग का बिल्कुल परिवर्तित युग है, लिहाजा रोजगार की अपेक्षाएं भी बदली हैं। सुखद और प्रोत्साहित खबर यह है कि भारतीय विश्वविद्यालयों के 24 इंजीनियरिंग संस्थान, सोशल साइंस के 20 और प्राकृतिक विज्ञान के 19 संस्थान शीर्षता की सूची में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यह उपलब्धि ऐसे समय हासिल हुई है, जब बहुधा रपटों और सर्वेक्षणों के निष्कर्ष सामने आ रहे थे कि भारतीय स्नातकों में कौशल, हुनरमंदी का घोर अभाव है। अब क्यूएस रैंकिंग सूची में विश्वविद्यालयों और संस्थानों के कौशल संबंधी प्रयासों का भी उल्लेख किया गया है, नतीजतन स्नातकों की वरीयता में नियोक्ताओं ( एंप्लायर) की अपेक्षाओं और दृष्टिकोण में भी काफी सुधार हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी हालिया साक्षात्कार में कहा है कि दुनिया कुछ भी कर ले, लेकिन भारत के बिना ‘एआई’ (कृत्रिम बौद्धिकता) अधूरी है। हालांकि भारत सरकार में कौशल मंत्रालय का गठन प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्र रूप से किया था, लेकिन कौशल के नाम पर कुछ भाषण देना या सुनना के अलावा हम ठोस और व्यावहारिक तौर पर इसे आंदोलन नहीं बना सके हैं, लिहाजा हमारे युवा वैश्विक ही नहीं, घरेलू आधार पर भी पिछड़े हैं । बहरहाल हम शीर्षता की जमात में शामिल हो गए हैं, लेकिन क्यूएस 2025 में यह भी स्पष्ट किया गया है कि भारत ज्ञान और अर्थव्यवस्था का शीर्ष गंतव्य, गढ़ बनने में अब भी पीछे है। यह भी रेखांकित किया गया है कि भारत के संभ्रांत और विशिष्ट विश्वविद्यालयों को अपने छात्रों के सीखने के अनुभवों में सुधार की गुंजाइश बेहद जरूरी है। उसी के बाद वे वैश्विक तौर पर अपनी उपस्थिति साबित कर पाएंगे। छात्रों के सीखने के अनुभवों और उन्हें प्रशिक्षित बनाने में बेहतर शिक्षकों, निरंतर निरीक्षण और पाठ्यक्रम विकास आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सूची में शामिल विश्वविद्यालय और संस्थान क्यूएस वरीयता प्रणाली के ऐसे मानदंडों पर लगभग खरे साबित हुए हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त प्रशिक्षित शिक्षकों और उनके काम करने की माकूल स्थितियां आज भी हमारी उच्च शिक्षा के लिए बुनियादी समस्याएं बनी हुई हैं। संस्थानों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं अथवा छात्रों के अनुपात में अध्यापक बहुत कम हैं। 2023 की एक कैग रपट में खुलासा किया गया था कि आईआईटी संस्थानों में शिक्षकों की भर्ती नियमित रूप से की जाती रही है, लेकिन अब भी वे उतने नहीं हैं, जितने छात्रों के अनुपात में होने चाहिए। ऐतिहासिक कमजोरी यह है कि ऐसे शिक्षकों की संख्या को वैज्ञानिक तौर पर कभी भी तय नहीं किया गया। 2009 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक कार्यबल का गठन किया था ।

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