राजनीतिक आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से 2024 का साल भारत के लिए घटनाओं और उपलब्धियों से भरा रहा । आर्थिक मोर्चे पर भारत का उदय नए पावर हाउस के रूप में हो रहा है, | पर साल की सबसे बड़ी गतिविधि राजनीति से जुड़ी थी। 17वीं लोकसभा का कार्यकाल 16 जून 2024 को पूरा हुआ, पर जो परिणाम आए, उनसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को धक्का लगा। हालांकि, नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला, पर अब भाजपा के पास पूर्ण बहुमत न होने से वह अपने सहयोगी दलों का सहारा ले रही है। बीजेपी को सबसे बड़ा धक्का उत्तर प्रदेश में लगा है, जहां के कुल 80 क्षेत्रों में से उसे केवल 33 में विजय मिली। समाजवादी पार्टी ने राज्य में 37 सीटों पर जीत हासिल करके भाजपा को दूसरे स्थान पर धकेल दिया। यह अप्रत्याशित था। राहुल गांधी के लिए भी व्यक्तिगत रूप से इस बार का चुनाव लाभकारी रहा। वर्ष 2019 में उन्हें अमेठी से हार का सामना करना पड़ा था, वहीं इस बार उन्होंने अमेठी से वापसी की। नेहरू-गांधी परिवार की एक अन्य सदस्य प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस साल सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। लोकसभा चुनाव में अमेठी और वायनाड दोनों सीटों पर जीत के बाद राहुल गांधी ने वायनाड की सीट को छोड़ दिया, जहां से प्रियंका गांधी जीतकर आईं। लोकसभा चुनाव के परिणामों ने एकबारगी यह सोचने को मजबूर किया कि क्या बीजेपी की| विजय के चक्के ने अब उल्टी दिशा में घूमना शुरू कर दिया है? पर ऐसा भी नहीं है। इस वर्ष आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, ओडिशा, सिक्किम, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभाओं के चुनाव भी हुए। जम्मू-कश्मीर में एक दशक के बाद विधानसभा चुनाव हुआ था। राज्य में अनुच्छेद 370 हटने के बाद यह पहला चुनाव था। इस बार मतदाताओं ने वोटिंग के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस ने शानदार वापसी की। वहीं हरियाणा, जम्मू-कश्मीर के जम्मू क्षेत्र और खासतौर से महाराष्ट्र के परिणामों ने बीजेपी को भारी राहत प्रदान की। प्रधानमंत्री बनने के नरेंद्र मोदी ने गृह, रक्षा, वित्त और विदेश विभाग अपने उन्हीं सहयोगियों को सौंपे जो पिछले कार्यकाल में उनके मंत्री थे। इससे उन्होंने यह जाहिर कर दिया कि जैसा चल रहा था, वैसा ही चलेगा। बहरहाल केंद्र में गठबंधन की मजबूरियों के कारण इस सरकार को अब अगले चार साल तक अपने राजनीतिक कार्यक्रमों को लागू करने में वैसी स्वतंत्रता नहीं होगी, जैसी पिछले दस वर्षों में रही। साल के अंत में सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ कार्यक्रम के साथ संविधान संशोधन का विधेयक पेश किया है । उसे फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है। अब उसे पास कराने के लिए जिस विशेष दो-तिहाई बहुमत की जरूरत भविष्य में होगी, उसके लिए सरकार को अपने गठबंधन सहयोगियों के अलावा दूसरे दलों के समर्थन की जरूरत भी होगी। साल की शुरुआत 22 जनवरी को अयोध्या के राममंदिर की स्थापना के साथ हो गई। लगता था कि अयोध्या विवाद का समाधान हो जाने के बाद बीजेपी के पास एक मसला के कम हो गया है, पर ऐसा है नहीं । वाराणसी के ज्ञानवापी, मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि, राजस्थान के अजमेर शरीफ़ और अब संभल के विवादों ने राष्ट्रीय परिदृश्य को घेर लिया है। इन विवादों के संदर्भ में साल के आखिरी महीने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान ने एक और बहस को जन्म दे दिया है, जो संभवतः अगले साल के राष्ट्रीय- परिदृश्य को प्रभावित करती रहेगी। मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में ‘हिंदू सेवा महोत्सव’ के उद्घाटन के दौरान कहा, ‘मंदिर-मस्जिद के रोज़ नए विवाद निकालकर कोई नेता बनना चाहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं। अब वर्चस्व का | ज़माना ख़त्म हो गया है। यह सब पुरानी लड़ाइयां हैं, इन्हें भूलकर हमें सबको संभालना चाहिए।’ भागवत के बयान पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कुछ धर्माचार्यों की प्रतिक्रियाओं ने उत्तर भारत के सर्द माहौल में गर्मी पैदा कर दी है। इस गर्मी के | साथ साल के अंत में डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेकर पैदा हुई तल्खी भी साल की | महत्वपूर्ण घटनाओं में एक है। अंबेडकर की विरासत को लेकर राजनीति में तूफान आया हुआ है । अमित शाह की टिप्पणी के बाद संसद के परिसर में विरोध प्रदर्शन के दौरान दोनों पक्षों के बीच हाथापाई तक हुई। अगले साल की पहली तिमाही में ही दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, इसलिए यकीनन सभी दल इस मुद्दे को उठाना जारी रखेंगे। इस तूफान के लक्षण 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले प्रकट होने लगे थे, जब कांग्रेस ने जाति और संविधान की रक्षा को अपना मुद्दा बनाया। कहा गया कि भारतीय जनता पार्टी ‘400 पार’ इसलिए चाहती है, ताकि वह संविधान को खत्म कर सके। संविधान खत्म होगा, तो आरक्षण भी खत्म हो जाएगा। माना जाता है कि आरक्षण खत्म होने के भय ने दलित वोटर को ‘इंडिया’ गठबंधन की शरण में जाने को प्रेरित किया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और जेल से बाहर आने के बाद उनके इस्तीफे ने भी राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाई है। केजरीवाल के अलावा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी इस साल जेल जाना पड़ा, पर विधानसभा चुनाव में उनकी जीत ने इस कष्ट को काफी कम कर दिया। चुनाव का वर्ष होने के कारण इस साल पहले फरवरी में अंतरिम बजट पेश किया गया और फिर नई लोकसभा के गठन के बाद जुलाई में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पूर्ण बजट पेश किया। आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति के क्षेत्र में यह साल भारत के लिए उत्साहवर्धक रहा ।