
नेताजी सज-धज कर मीडिया के सामने आ चुके हैं। सिर के बाल और मूंछें कलर से चमक रही हैं। चेहरा फेशियल के बाद किसी फिल्मी सितारे की तरह दमक रहा है। मंद-मंद मुस्कान चेहरे पर चिपकी हुई है, मानो विकास की गंगा उनके मुखमंडल से ही बह रही हो । प्रेस कॉन्फ्रेंस का पूरा मंच सजा है और नेताजी आत्मविश्वास से लबालब भरे बैठे हैं। एक-एक करके उनकी निगाहें मीडिया वालों के चेहरे टटोल रही हैं, मानो चेहरा पढने की कला में वह किसी ज्योतिषी से कम नहीं। मीडिया के लिए जलपान का पूरा इंतजाम है। कैमरे ऑन हो चुके हैं। नेताजी माइक के सामने आते ही थोडी दार्शनिक मुद्रा अपनाते हैं, हल्की खंखार के बाद गला साफ करते हैं और कहना शुरू करते हैं, ‘बात कहां से शुरू करूं और क्या-क्या गिनाऊं, यह सोचकर ही मैं असमंजस में पड़ जाता हूं। इतने विकास कार्य हमने किए हैं कि हम खुद भूल जाते हैं कि कितने किए हैं। लेकिन चलिए, विकास पर ही बात करते हैं। मैं आपसे ही पूछना चाहूंगा कि ऐसा कौनसा विकास है जो हमने नहीं किया ?’ नेताजी अपनी मूंछों पर उंगलियां फेरते हुए आगे कहते हैं- ‘हमने शिलान्यासों की झड़ी लगा रखी है। कोई भी ऐसा कोना बता दीजिए जहां हमने पत्थर न लगाया हो । जहां पत्थर रखा, समझो विकास वहीं से शुरू हो गया । फिर जब हम उन्हीं विकास कार्यों का उद्घाटन करेंगे, तो नए पत्थर लगाएंगे। यानी पत्थरों की श्रृंखला विकास की सबसे बड़ी निशानी है।’ नेताजी जोश में आते हैं- ‘हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे प्रदेश में पत्थरों की कोई कमी नहीं है । सडक़ों पर पत्थर गिरते रहते हैं, हमारी मेहनतकश लेबर उन्हें हटाने में जुटी रहती है। हमने भी सोचा, क्यों न इन्हीं पत्थरों का सही इस्तेमाल किया जाए ! हमने चौराहों, गलियों, सरकारी दफ्तरों, जहां भी जगह मिली, वहां विकास के नाम पर पत्थर लगवा दिए। विपक्ष कहता है कि विकास नजर नहीं आ रहा, लेकिन पत्थर तो नजर आ रहे हैं न? यही असली विकास है।’ अब नेताजी की आवाज में गंभीरता झलकती है- ‘पिछली सरकार तो कागजों पर ही विकास करती रही, उसे विकास का असली फॉर्मूला पता ही नहीं था। लेकिन हमने क्या किया? हमने विकास को होटल मीटिंग्स, हवाई दौरों, और फाइव स्टार बैठकों में ले जाकर सशरीर साक्षात्कार कराया । विकास कैसा होना चाहिए, इसे तय करने के लिए हमने समोसे से लेकर जंगली मुर्गा तक प्लेट पर परोसा । हमनें हर वह चीज चखी जिससे हमारी योजनाओं को ग्लोबल टच मिल सके।’ नेताजी का आत्मविश्वास अब सातवें आसमान पर है- ‘विपक्ष कहता है कि खजाना खाली है। तो हमने कहा, खाली खजाने से भी विकास हो सकता है, अगर सही लोगों को ठेके दिए जाएं। हमने अपनी पार्टी के तमाम नेताओं के रिश्तेदारों को ठेके दिए, और परिणाम देखिए, आज उनके घरों में समृद्धि बह रही है। उनकी तिजोरियां भर चुकी हैं। बिना विकास के यह सब कैसे होता ?’ थोड़ा ठहरकर नेताजी नया तर्क प्रस्तुत करते हैं, ‘हम दिखाने में यकीन रखते हैं । हमने प्रदेश की चट्टानों पर विकास के नारे खुदवा दिए हैं। चट्टानों पर लिखे नारे ही असली विकास होते हैं। जो भी चट्टान पर लिखा दिखे, समझिए वह सरकार की योजना का हिस्सा है। नारों के दम पर सरकारें बनती और गिरती हैं, और हमारे नारे इतने मजबूत हैं कि चट्टान पर भी अम हैं । जनता को अब विकास देखने के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं है, वह गली- गली, सडक सडक देख सकती है। हमारी सरकार सिर्फ पत्थरों पर नहीं, फ्लेक्स बोर्ड पर भी भरोसा रखती है। हमने पूरे शहर में विकास कार्यों की इतनी होर्डिंग्स लगवा दी हैं कि किसी को भी यह भ्रम नहीं रहेगा कि विकास नहीं हुआ।’
