मंडी के पड्डल मैदान को बर्बाद मत करो

खेल मंत्रालय अन्य राज्यों के साथ-साथ हिमाचल केंद्रीय प्रदेश में भी युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के साथ मिलकर हर साल करोड़ों रुपए नए खेल मैदानों को बनाने व पुराने मैदानों के रखरखाव के लिए जारी करता है, मगर हकीकत में इस धन राशि की खूब बंदरबांट होती है। कहीं पर भी पूरी तरह से खेल मैदान तैयार नहीं हुआ है और जो था, वह भी बर्बाद कर दिया गया। अब मंडी के खूबसूरत पड्डल मैदान में इंडोर स्टेडियम बनाने के लिए सदर के विधायक अनिल शर्मा कह रहे हैं। पड्डल मंडी शहर के सभी शिक्षा संस्थानों के खेल मैदान का दायित्व तो अकेला निभाता ही है, साथ में पूरे शहर के लिए सवेरे की सैर को भी पूर्ण करता है। मंडी के तत्कालीन शासकों ने इसे अपनी सेना की परेड व शिवरात्रि उत्सव के लिए भी बनाया था जो आज भी हर वर्ष जारी है। पड्डुल हर दिन सैंकड़ों विद्यार्थियों व अन्य नागरिकों की फिटनेस को कवर करता है । जब यहां कंक्रीट का इंडोर बना देंगे तो वहां अंदर कितने लोग आ पाएंगे ? विधायक जी आप इसके लिए और जगह देखें, वहां इंडोर स्टेडियम बनाएं जिसके साथ आपका नाम सकारात्मक व आदर से जुड़े । मंजिल चाहे खेलों की हो या फिटनेस की, इन सबके लिए खेल मैदानों का होना बहुत जरूरी है। विद्यार्थी जीवन में ही पूरे जीवन के लिए स्वास्थ्य की नींव रखी जाती है, मगर हमारे विद्यालयों में खेल मैदानों के अभाव में विद्यार्थी की फिटनेस का कोई भी कार्यक्रम नहीं है। हिमाचल प्रदेश का अधिकांश भूभाग पहाड़ी होने के कारण मैदानों के लिए बहुत मुश्किल से लंबी-चौड़ी जगह मिल पाती है। इसलिए हिमाचल प्रदेश के शिक्षा संस्थानों के पास बहुत कम खेल मैदान हैं और जहां हैं भी, उन्हें कभी भवन तो कभी पार्किंग बनाकर यूं ही बरबाद किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के अधिकतर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के मैदानों में विज्ञान के लिए प्रयोगशाला भवन तो कभी किसी और के लिए भवन बना कर खत्म कर दिया जा रहा है। हिमाचल में ऐसे बहुत क्षेत्र हैं जहां वालीबॉल व कबड्डी की प्ले फील्ड होना भी बड़ी बात है। हिमाचल प्रदेश सरकार इस विषय पर ध्यान दे ताकि भविष्य में विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ स्वास्थ्य भी मिल सके। एक समय था जब विद्यार्थी सवेरे शाम अपने अभिभावकों के साथ कृषि कार्य में हाथ बंटाता था, फिर कई किलोमीटर चल कर विद्यालय पहुंचता था। उस समय किसी भी फिटनेस कार्यक्रम की जरूरत नहीं थी, मगर आज जब पढ़ाई के लिए घर का काम बंद है, पैदल चलने का रिवाज ही नहीं है तथा खेल के नाम पर मोबाइल व कम्प्यूटर है तो फिर फिटनेस के लिए खेल मैदान तो अनिवार्य हो जाता है। नहीं तो फिर हमारी संतानें कहीं नशे के दलदल में फंस जाएंगी। उस उच्च शिक्षा का क्या अर्थ रह जाता है जिससे आप प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी, अभियंता, चिकित्सक, प्रबंधक तो बन जाते हैं, मगर आप स्वस्थ रह कर साठ वर्षों तक देश व प्रदेश की सेवा नहीं कर पा रहे हैं। अब तो लोग तीस-चालीस साल की उम्र में जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। इस सबके पीछे जिम्मेदार बिना फिटनेस कार्यक्रम की स्कूली शिक्षा है। फिटनेस के इस संवेदनशील विषय पर इस कॉलम के माध्यम से सरकार व अभिभावकों को बार-बार सचेत किया जाता रहा है। हिमाचल प्रदेश के अधिकांश विद्यालयों में पढने के लिए कमरे तो हैं, मगर उनकी फिटनेस के लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं है। मैदान होंगे, तभी फिटनेस पर कार्य होगा। हिमाचल प्रदेश का शिक्षा विभाग शिक्षा संस्थान खोलने के लिए तो मैदान की अनिवार्य शर्त रखता है, मगर अपने सरकारी संस्थानों के मैदानों में भवन व पार्किंग बनाकर अपने ही नियमों को ठेंगा दिखा रहा है। अभी भी समय है कि हिमाचल प्रदेश की जनता व सरकार दोनों को विद्यार्थी जीवन में फिटनेस कार्यक्रम के महत्व को समझना होगा, नहीं तो भविष्य में हमारी अगामी पीढियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज खेल जगत में बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा हो गई है। इसलिए उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन करने पर भी पोडियम तक पहुंचना सबके बस की बात नहीं है। अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं की पदक तालिका में स्थान बनाने के लिए जहां विद्यालय स्तर से ही अच्छे ज्ञानवान प्रशिक्षक चाहिए, वहीं पर प्ले फील्ड भी बहुत जरूरी है। हिमाचल प्रदेश के खेल मैदानों व अन्य हाल ही के वर्षों में बनी अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड का रखरखाव भी ठीक ढंग से नहीं हो रहा है। हिमाचल प्रदेश के पास आज से दो दशक पहले तक खेल ढांचे के नाम पर सैंकड़ों साल पहले राजा-महाराजाओं द्वारा मेले व उत्सवों के लिए बनाए गए, उंगलियों पर गिने जाने वाले कुछ मैदान चंबा, मंडी, अमतर, सुजानपुर, जयसिंहपुर, कुल्लू, अनाडेल, रोहडू, सराहन, सोलन, चैल व नाहन में थे। इन मैदानों पर हिमाचल प्रदेश की खेल गतिविधियां कई दशकों से मेलों व उत्सवों से बचे समय में होती रही हैं। सुजानपुर व जयसिंहपुर के बड़े मैदानों पर तो पहले ही बहुत अतिक्रमण हो चुका है। अब मंडी के पड्डल मैदान में तो इंडोर बना कर उसे बर्बाद करने की कसरत शुरू हो गई है। सरकाघाट महाविद्यालय का खेल मैदान अभी तक भी कृषि विभाग का खेत ही नजर आता है । भवन निर्माण उन्नत प्रौद्योगिकी के कारण कहीं भी बन सकता है, तो फिर मैदान के लिए दुर्लभ समतल जगह को क्यों बरबाद किया जा रहा है। हर शिक्षा संस्थान को अपना खेल मैदान चाहिए, जहां सब विद्यार्थियों की फिटनेस हो सके। अगर शिक्षा संस्थान परिसर में मैदान ही नहीं होगा, तो फिर पहाड़ की संतान को स्वास्थ्य व खेल क्षेत्र में पिछडने का दंश झेलना ही पड़ेगा। इसलिए खेल मैदानों की बर्बादी को अभी से रोकना होगा, तभी हम अपनी आने वाली पीढियों से न्याय कर सकेंगे।

मंडी के पड्डल मैदान को बर्बाद मत करो
Skip to content