नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है और किसी भी व्यक्ति को कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजे के भुगतान किए बिना उसकी संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि संविधान ( 44वां संशोधन) अधिनियम, 1978 के कारण संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं रह गया है, लेकिन कल्याणकारी राज्य में यह मानव अधिकार और संविधान के अनुच्छेद-300-ए के तहत संवैधानिक अधिकार है । यह अनुच्छेद कहता है कि कानूनी अधिकार के बिना किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बेदखल नहीं किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने यह फैसला बेंगलुरु-मैसुरु इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए भू-अधिग्रहण से जुड़े मामले कर्नाटक हाई कोर्ट के नवंबर, 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनाया। पीठ ने कहा कि परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहीत करने के लिए कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड ( केआइएडीबी) ने जनवरी, 2003 में एक प्रारंभिक अधिसूचना जारी की थी और नवंबर, 2005 में अपीलकर्ताओं की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता भू-स्वामियों को पिछले 22 वर्षों के दौरान कई बार अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ा और उन्हें बिना कोई मुआवजा दिए उनकी संपत्ति से बेदखल कर दिया गया। मुआवजा पाने के लिए अपीलकर्ताओं की ओर से कोई देरी नहीं हुई, बल्कि राज्य अथवा केआइएडीबी अधिकारियों के सुस्त रवैये के वजह से अपीलकर्ताओं को मुआवजा नहीं मिला। पीठ ने कहा कि अवमानना कार्यवाही में नोटिस जारी होने के बाद ही 22 अप्रैल, 2019 को विशेष भू- अधिग्रहण अधिकारी (एसएलएओ) ने अधिग्रहीत भूमि का बाजार मूल्य निर्धारित करने के लिए 2011 में प्रचलित दिशानिर्देश मूल्यों को आधार बनाया और मुआवजे का निर्धारण किया। पीठ ने कहा कि अगर 2003 के बाजार मूल्य पर मुआवजा प्रदान करने की अनुमति दी गई तो यह न्याय का मजाक बनाने और अनुच्छेद- 300-ए के प्रविधानों का माखौल उड़ाने जैसा होगा। सुप्रीम कोर्ट के लिए संविधान के अनुच्छेद- 142 के तहत अपनी शक्तियों के इस्तेमाल का यह उचित मामला है और यह अदालत एसएलएओ को 22 अप्रैल, 2019 को प्रचलित बाजार मूल्य के आधार पर अपीलकर्ताओं के लिए मुआवजे का निर्धारण करने का निर्देश देती है। शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि एसएलएओ पक्षकारों को सुनने के बाद दो महीने के भीतर नए सिरे से मुआवजे की घोषणा करेंगे। इस घोषणा से पीड़ित पक्षकारों को उसे चुनौती देने का अधिकार होगा।