भारत पर चीन की तरह भारी कर्ज, लेकिन जोखिम कम, उच्च वृद्धि दर से मिलेगा समर्थन
नई दिल्ली।
देश पर चीन की तरह ही भारी कर्ज है। इसके बावजूद कर्ज से जुड़ा जोखिम पड़ोसी देश की तुलना में भारत पर कम है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा, भारत को कर्ज से जुड़े जोखिम कम करने के लिए मध्यम अवधि में घाटे को कम करने वाली एक महत्वाकांक्षी राजकोषीय सशक्तीकरण योजना बनानी चाहिए। आईएमएफ में राजकोषीय मामलों के उपनिदेशक रुड डी मोइज ने कहा, भारत पर मौजूदा कर्ज जीडीपी का 81.9 फीसदी है। चीन के मामले में यह अनुपात 83 फीसदी है। इस तरह, दोनों ही देश लगभग समान स्थिति में हैं। हालांकि, महामारी से पहले 2019 में भारत पर कर्ज जीडीपी का 75 फीसदी था। मोइज ने कहा, भविष्य में भारत का कर्ज चीन की तरह बढ़ने की आशंका नहीं है, बल्कि इसमें कमी आने की संभावना है। 2028 में भारत पर कर्ज 1.5 फीसदी घटकर जीडीपी के 80.4 फीसदी पर आ जाएगा। उन्होंने कहा, भारत की आर्थिक वृद्धि दर ऊंची है और जोखिम कम करने में सहायक होगी। उच्च वृद्धि का ताल्लुक जीडीपी के अनुपात में कर्ज से भी है। मोइज ने कहा कि भारत में कुछ राज्यों पर बहुत अधिक कर्ज है। उन्हें ब्याज के भारी बोझ का सामना करना पड़ता है। यह ऐसा कारक है, जो भारत के लिए भी जोखिम है। हालांकि, इन जोखिमों से निपटने के लिए भारत जिन तरीकों से राजकोषीय सशक्तीकरण का उपयोगी समर्थन कर सकता है, उनमें एक तरीका तकनीकी प्रणाली को मजबूत करना है । आईएमएफ अधिकारी ने कहा, भारत में राजकोषीय घाटा 2023 में 8.8 फीसदी रह सकता है। इसका बड़ा हिस्सा ब्याज पर होने वाले खर्च का है क्योंकि भारत अपने ऋण पर अधिक ब्याज देता है, जो जीडीपी का 5.4 फीसदी है। प्राथमिक घाटा 3.4 प्रतिशत रहने से राजकोषीय घाटा 8.8 फीसदी पहुंच जाएगा। आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव अतनु चक्रवर्ती ने कहा, मजबूत खपत और निर्यात के दम पर भारत 2050 तक 30 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है । उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने इस साल भारत की वृद्धि दर करीब 6.3 फीसदी और महंगाई दर लगभग 6 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। इसलिए, मौजूदा मूल्य पर जीडीपी करीब 10-12 फीसदी होगी। केपीएमजी के कार्यक्रम में उन्होंने कहा, अगर जीडीपी की यही रफ्तार कुछ साल तक जारी रही तो भारत 2045-50 तक 30 लाख करोड़ डॉलर की जीडीपी बन जाएगा। प्रति व्यक्ति बढ़कर 21,000 डॉलर हो जाएगी।