प्रयागराज महाकुंभ मेला 2025 के सामाजिक- सांस्कृतिक मायने को ऐसे समझिए

हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित यह पवित्र त्योहार बारह वर्षों में चार बार मनाया जाता है, जो भारत के चार प्रतिष्ठित शहरों हरिद्वार, उज्जैन, नासिक एवं प्रयागराज में बहने वाली सबसे पवित्र नदियों, गंगा, शिप्रा और गोदावरी के बीच घूमता है। कहना न होगा कि इनमें से प्रत्येक शहर सबसे पवित्र नदियों गंगा, शिप्रा, गोदावरी और खासकर प्रयागराज ( पूर्वनाम इलाहाबाद) गंगा, यमुना एवं पौराणिक सरस्वती के संगम के किनारे स्थित हैं । दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम के रूप में मनाया जाने वाला महाकुंभ मेला सनातनी आस्था, संस्कृति और प्राचीन परंपरा का अद्भुत और बेमिसाल मिश्रण है। हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित यह पवित्र त्योहार बारह वर्षों में चार बार मनाया जाता है, जो भारत के चार प्रतिष्ठित शहरों हरिद्वार, उज्जैन, नासिक एवं प्रयागराज में बहने वाली सबसे पवित्र नदियों, गंगा, शिप्रा और गोदावरी के बीच घूमता है। कहना न होगा कि इनमें से प्रत्येक शहर सबसे पवित्र नदियों गंगा, शिप्रा, गोदावरी और खासकर प्रयागराज (पूर्वनाम इलाहाबाद) गंगा, यमुना एवं पौराणिक सरस्वती के संगम के किनारे स्थित हैं। आगामी 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक प्रयागराज एक बार फिर इस शानदार उत्सव का केंद्र बन जाएगा, जो लाखों तीर्थयात्रियों और आगंतुकों को भक्ति, एकता और भारत की आध्यात्मिक विरासत की जीवंत अभिव्यक्ति को देखने के लिए आकर्षित करेगा । इसलिए इसके राजनीतिक प्रभावों से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। । इस मौके पर यदि हमारा नेतृत्व संवैधानिक राज के साथ-साथ सनातनी राज जैसी जनभावनाओं का भी बीजारोपण करे, तो यह भारत भूमि/आसेतु हिमालय के लिए बहुत बड़ा उपकार होगा। क्योंकि हमारी धर्मनिरपेक्ष नीतियां हीं हमारे बन्धु-बांधवों के दमन और उत्पीड़न की पर्याय बनती जा रही हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आसेतु हिमालयी देशों में हिन्दू जनमानस प्रताड़ति हो रहा है और हमारे नागा साधु भी इस स्थिति से उन्हें निजात नहीं दिलवा पा रहे हैं । भारत सरकार भी स्पष्ट और आक्रामक नीति से बच रही है, क्योंकि उसकी धर्मनिरपेक्षता ने हिन्दू उत्पीड़न को अघोषित गारंटी प्रदान करती जा रही है। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है। इस पर हमारे साधु-संतों को गम्भीर होना होगा और धर्मनिरपेक्ष सरकार पर दबाव बनाना होगा । विश्व जनमानस पर भी इसका दबाव पड़े, यह चिंतन व अभिव्यक्ति शैली भी हमें विकसित करनी होगी। अतिक्रमित हिन्दू मंदिरों के पुनरुद्धार का मसला भी यहां उठना चाहिए, ताकि सबके बीच एक सकारात्मक संदेश जाए । इतिहास के पापों के प्रक्षालन का और कोई विकल्प नहीं हो सकता है। इसके अलावा, और भी मुद्दे हैं, जिन पर इसी बहाने एक सकारात्मक बहस छिड़नी चाहिए। वैसे तो इस भव्य आयोजन में धार्मिक अनुष्ठानों से परे खगोल विज्ञान, ज्योतिष, सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं और आध्यात्मिक ज्ञान का समृद्ध मिश्रण शामिल है। क्योंकि इस अवसर पर लाखों भक्त, तपस्वी और तपस्वी त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान सहित पवित्र अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए एकत्र होते हैं। इसलिए सनातनी हितों के सवाल पर भी यहां मौखिक विमर्श शुरू होना चाहिए। यहां आने वाले लोग सनातन धर्म के कट्टर अनुयायी होते हैं, इसलिए सनातनी संवेदनाओं को समझते उन्हें देर नहीं लगेगी। जब वो समझेंगे, तभी औरों को भी समझा पाएंगे।यह पुण्य कार्य होगा। यहां आने वाले भक्तों का भी मानना है कि महाकुंभ स्नान से उनके पाप धुल जाते हैं और उन्हें आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है। इस प्रकार महाकुंभ मेला न केवल भारत की गहरी जड़ें जमा चुकी विरासत का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि आंतरिक शांति, आत्म-बोध और सामूहिक एकता शाश्वत मानवीय खोज को भी प्रदर्शित करता है । की शाही स्नानः महाकुंभ मेला अनुष्ठानों का एक भव्य आयोजन है, इन सभी में स्नान सबसे महत्वपूर्ण है। त्रिवेणी संगम पर आयोजित इस पवित्र समागम में भाग लेने के लिए लाखों तीर्थयात्री एकत्रित होते हैं, जो इसमें विश्वास रखते हैं कि पवित्र जल में डुबकी लगाने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो सकता है। माना जाता है कि शुद्धिकरण का यह कार्य व्यक्ति और उनके पूर्वजों दोनों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर देता है, जिससे अंततः मोक्ष या आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है। स्नान अनुष्ठान के साथ-साथ तीर्थयात्री पवित्र नदी के किनारे पूजा- पाठ में भी शामिल होते हैं और साधुओं एवं संतों के नेतृत्व में ज्ञानवर्धक प्रवचनों में भाग लेते हैं, जिससे जीवन के अनुभव में आध्यात्मिक गहराई जुड़ जाती है। वैसे तो पूरे प्रयागराज महाकुंभ के दौरान पवित्र जल में डुबकी लगाना पवित्र माना जाता है, लेकिन कुछ तिथियां विशेष महत्व रखती हैं, जैसे पौष पूर्णिमा ( 13 जनवरी), मकर संक्रांति (14 जनवरी) आदि। इन तिथियों पर संतों, उनके शिष्यों और विभिन्न अखाड़ों (आध्यात्मिक क्रम में) के सदस्यों के साथ भव्य जुलूस निकलते हैं, जो शाही स्नान या ‘राजयोगी स्नान’ के नाम से जाने जाने वाले भव्य अनुष्ठान में भाग लेते हैं। यह महाकुंभ मेले की आधिकारिक शुरुआत का प्रतीक है और इस आयोजन का मुख्य आकर्षण है। शाही स्नान की परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि जो लोग अनुष्ठान में भाग लेते हैं उन्हें पवित्र जल में डुबकी लगाने पर पुण्य कर्मों का आशीर्वाद मिलता है और उनसे पहले आए संतों का गहन ज्ञान प्राप्त होता है। आरतीः नदी के किनारों पर मंत्रमुग्ध कर देने वाला गंगा आरती समागम में आए लोगों के लिए एक अविस्मरणीय क्षण होता है। इस पवित्र अनुष्ठान के दौरान पुजारी जगमगाते दीपक पकड़कर दृश्य अभिनय प्रस्तुत करते हुए कठिन धर्मक्रिया करते हैं। गंगा आरती हजारों भक्तों को आकर्षित करती है, जिससे पवित्र नदी के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा जागृत होती है। कल्पवासः कल्पवास महाकुंभ उत्सव का एक गहरा लेकिन कम ज्ञात पहलू है, जो साधकों को आध्यात्मिक अनुशासन, तपस्या और उच्च चेतना के लिए समर्पित एक अनुष्ठान प्रदान करता है। संस्कृत से उत्पन्न ‘कल्प’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय युग और ‘वास का अर्थ है निवास, जो गहन आध्यात्मिक अभ्यास की अवधि का प्रतीक है। कल्पवास में भाग लेने वाले तीर्थयात्री सादगी का जीवन अपनाते हैं, सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग करते हैं और ध्यान, प्रार्थना और धर्मग्रंथ अध्ययन जैसे दैनिक अनुष्ठानों में व्यस्त रहते हैं। कल्पवास में वैदिक यज्ञ और होम, पवित्र अग्नि अनुष्ठान जो दिव्य आशीर्वाद का आह्वान करते हैं और सत्संग, बौद्धिक एवं भक्ति विकास के लिए आध्यात्मिक प्रवचन भी शामिल हैं। प्रार्थना और अर्पणः माना जाता है कि श्रद्धालु कुंभ के दौरान संगम पर आने वाले देवताओं के सम्मान में देव पूजन करते हैं। श्राद्ध (पूर्वजों को भोजन और प्रार्थना करना) और वेणी दान (गंगा में बाल चढ़ाना) जैसे अनुष्ठान त्योहार के अभिन्न अंग हैं, जो समर्पण और शुद्धि का प्रतीक हैं। सत्संग या सत्य के साथ जुड़ना एक और मुख्य अभ्यास है जहां भक्त संतों और विद्वानों के प्रवचन सुनते हैं। ज्ञान का यह आदान-प्रदान आध्यात्मिकता की गहरी समझ को बढ़ावा देता है और उपस्थित लोगों को उच्च आत्म- साक्षात्कार के लिए प्रेरित करता है। कुंभ के दौरान परोपकार का बहुत महत्व होता है।

प्रयागराज महाकुंभ मेला 2025 के सामाजिक- सांस्कृतिक मायने को ऐसे समझिए
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