नए टर्मिनल से वीओ चिदंबरनार पोर्ट के सामथ्र्य में भी विस्तार होगा अब बंदरगाहों से निर्यात बढने का दौर

हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने बढ़ते विदेश व्यापार घाटे, लाल सागर में बढ़ते संकट और कंटेनरों की किल्लत की चिंताओं के बीच बंदरगाहों से विदेश व्यापार बढ़ाने और निर्यातकों की सहायता के लिए अहम फैसले लिए हैं। इन फैसलों के तहत शिपिंग कॉरपोरेशन बड़े कंटनेर जहाज चलाएगी। बंदरगाह शुल्क में कटौती की जाएगी तथा निर्यात की खेपों को जल्दी भेजने के लिए प्रक्रिया में तेजी के उपाय शामिल हैं। पिछले दिनों 16 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीओ चिदंबरनार बंदरगाह पर नए तूतीकोरिन अंतरराष्ट्रीय कंटेनर टर्मिनल का उद्घाटन करते हुए अपने संदेश में कहा कि यह टर्मिनल भारत के मरीन इंफ्रास्ट्रक्चर का नया सितारा है। इस नए टर्मिनल से वीओ चिदंबरनार पोर्ट के सामथ्र्य में भी विस्तार होगा। खास बात यह भी है कि बंदरगाह से निर्यात बढ़ाने के नए फैसलों से देश के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के निर्यात भी बढ़ेंगे। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक देश दुनिया की खाद्य टोकरी बनता जा रहा है और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऐसे में अब निर्यात लागत घटने के कारण खाद्य प्रसंस्करण निर्यात और बढ़ेंगे। उल्लेखनीय है कि इस समय देश के वैश्विक व्यापार को बढ़ाने और निर्यात के ऊंचे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के साथ उन्हें समुद्री व्यापार के लिए प्रतिस्पर्धी बनाने की रणनीति के साथ तेजी से आगे बढ़ा जा रहा है। विगत 30 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में 76000 करोड़ रुपए की लागत वाली वधावन बंदरगाह परियोजना की आधारशिला रखी। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि वधावन देश का सबसे बड़ा कंटेनर बंदरगाह होगा । इस परियोजना का उद्देश्य भारत में एक विश्व स्तरीय समुद्री प्रवेश द्वार स्थापित करना है, जो बड़े कंटेनर जहाजों की जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाए। उन्होंने कहा कि वधावन बंदरगाह भारत के सबसे बड़े गहरे पानी के बंदरगाहों में से एक होगा। यह अंतरराष्ट्रीय नौवहन मार्गों को सीधा संपर्क प्रदान करेगा, जिससे पारगमन समय और लागत कम होगी। यह बंदरगाह भारत की समुद्री कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा और वैश्विक व्यापार केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को और मजबूत करेगा। गौरतलब है कि भारत की 7517 किमी लंबी समुद्री तटरेखा है, जो 9 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों को समाहित करती है। देश के विशाल समुद्र तटों पर, 13 प्रमुख बड़े और 212 छोटे बंदरगाह हैं। बड़े बंदरगाहों में पूर्वी तट पर हल्दिया, पारादीप, विशाखापट्टनम, कामराज, चेन्नई, तुतीकोरीन और पोर्ट ब्लेयर हैं। पश्चिमी तट पर कोचीन, न्यू मँगलोर, मोरमुगांव, जवाहरलाल नेहरू, कांडला और मुंबई बंदरगाह हैं। भारतीय बंदरगाह अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत और वैश्विक व्यापार के लिए शताब्दियों से महत्वपूर्ण बने हुए हैं और बंदरगाहों से विदेश व्यापार लगातार बढ़ता गया है। इस समय भारत का मात्रा के हिसाब से 95 फीसदी और मूल्य के हिसाब से 70 फीसदी व्यापार बंदरगाहों के माध्यम से होता है। निःसंदेह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार होने के कारण भारतीय बंदरगाहों ने समुद्री (तटीय) राज्यों को देश में औद्योगिक विकास के मद्देनजर पसंदीदा स्थल बना दिया है। परिवहन संबंधी न्यूनतम बाधाओं के साथ-साथ लॉजिस्टिक लागत में कमी बंदरगाहों के निकटवर्ती क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को बढ़ाने वाला प्रमुख कारण है । निश्चित रूप से पिछले एक दशक में भारत अपने बंदरगाहों को समुद्री व्यापार की धुरी बनाने के लिए लगातार रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रहा है। निजी बंदरगाहों को प्रोत्साहन दिया गया है । भारत कार्गो और जहाजों को संभालने में अपनी दक्षता में सुधार करने के उद्देश्य से अपने बंदरगाहों का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहा है । वर्ष 2015 में सागरमाला कार्यक्रम के लॉन्च होने के बाद से बंदरगाह के नेतृत्व वाले विकास को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिला है। मार्च 2022 तक सागरमाला कार्यक्रम के लिए 5.40 लाख करोड़ रुपए की निर्धारित लागत वाली कुल 802 परियोजनाओं में से 1.12 लाख करोड़ रुपए की 221 परियोजनाएं पहले ही पूरी हो चुकी हैं, जबकि 4.28 लाख करोड़ रुपए की 581 परियोजनाएं विकास के विभिन्न चरणों में हैं। वर्ष 2021 में लॉन्च किए गए पीएम गति – शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के माध्यम से विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को गति प्रदान की जा रही है। पीएम गति शक्ति मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी परियोजनाओं की समन्वित योजना और निष्पादन पर केंद्रित है जिसमें बंदरगाह भी शामिल हैं। ज्ञातव्य है निजी भागीदारी बंदरगाह आधारित विकास की मुख्य रणनीति है। इस संबंध में 100 करोड़ रुपए से अधिक निवेश की सभी परियोजनाएं नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) के तहत सूचीबद्ध हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जो समुद्री राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पोर्टल (एनएलजी) जनवरी 2023 में शुरू हुआ है, वह एक ऐसा वन- स्टॉप प्लेटफार्म है जो लॉजिस्टिक्स समुदाय के सभी हितधारकों को आईटी के माध्यम से जोड़ता है। जिसका उद्देश्य लागत और समय की देरी को कम करते हुए दक्षता और पारदर्शिता में सुधार करना है । सरकार ने बंदरगाह और बंदरगाह निर्माण और रखरखाव परियोजनाओं के लिए स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी हुई है। इसके अलावा 11.8 अरब डॉलर के योजनाबद्ध आउटले के साथ समुद्री क्षेत्र को विकसित करने के लिए राष्ट्रीय समुद्री विकास कार्यक्रम (एनएमडीपी) भी अत्यधिक लाभप्रद है। अब मेरीटाइम इंडिया मिशन 2030 के तहत बंदरगाहों के विकास और लॉजिस्टिक लागत घटाकर समुद्री अर्थव्यवस्था से देश को लाभान्वित करने का नया अध्याय आगे बढ़ रहा है। इन सबके साथ-साथ वैश्विक समुद्री भारत शिखर सम्मेलन (जीएमआईएस) के दौरान तय किए गए व्यापक रोडमैप के साथ समुद्री अमृतकाल विजन 2047 भारत के समुद्री क्षेत्र को नई ऊंचाई देने के लिए तैयार है। निःसंदेह सरकार और निजी क्षेत्र के द्वारा समन्वित रूप से किए जा रहे समुद्री विकास और बंदरगाहों के विकास के रणनीतिक प्रयासों के अच्छे परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। जहां 1990 के दशक में देश में जहाज की वापसी में लगने वाला औसत समय लगभग 7.8 दिन था, अब यह आंकड़ा कम होकर 2 दिनों से भी कम रह गया है। कई अन्य परिचालन दक्षता संकेतकों में भी बड़े सुधार आए हैं। यह स्पष्ट है कि जल परिवहन दुनियाभर में माल ढुलाई के लिए सबसे सस्ता और वरीयता वाला माध्यम है। चीन और अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों ने जैसे-जैसे विकास की ओर कदम बढ़ाए, वैसे-वैसे उन्होंने अपने जल मार्गों का अधिकतम उपयोग किया है। उन्होंने जल मार्गों को अपनी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ बना लिया है।

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