नई दिल्ली (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में तीन नए आपराधिक कानूनों भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के सफल क्रियान्वयन से राष्ट्रको अवगत कराया और कहा कि नए आपराधिक कानून औपनिवेशिक युग के कानूनों के अंत का प्रतीक हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि न्याय संहिता का मूल मंत्र नागरिक प्रथम है। ये कानून नागरिक अधिकारों के रक्षक और न्याय की सुगमता का आधार बन रहे हैं। पहले एफआईआर दर्ज करवाना बहुत मुश्किल था लेकिन अब जीरो एफआईआर को कानूनी मान्यता दे दी गई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पीड़ित को एफआईआर की कॉपी दिए जाने का अधिकार दिया गया है और आरोपित के खिलाफ कोई भी मामला तभी वापस लिया जाएगा, जब पीड़ित सहमत होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि नए आपराधिक कानून हमारे संविधान द्वारा हमारे देश के नागरिकों के लिए कल्पित आदशों को पूरा करने की दिशा में एक ठोस कदम है। संविधान और कानूनी विशेषज्ञों की कड़ी मेहनत के बाद देश की नई न्याय संहिता को तैयार किया गया है। मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि सभी के सहयोग से बनी भारत की यह न्याय संहिता भारत की न्यायिक यात्रा में मील का पत्थर साबित होगी। मोदी ने कहा कि स्वतंत्रता- पूर्व काल में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए आपराधिक कानूनों को उत्पीड़न और शोषण के साधन के रूप में देखा जाता था। 1857 में देश के पहले बड़े स्वतंत्रता संग्राम के परिणामस्वरूप 1860 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) लागू की गई थी। कुछ वर्षों बाद भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू किया गया और फिर सीआरपीसी का पहला ढांचा अस्तित्व में आया । इन कानूनों का विचार और उद्देश्य भारतीयों को दंडित करना और उन्हें गुलाम बनाना था। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता के दशकों बाद भी हमारे कानून उसी दंड संहिता और दंडात्मक मानसिकता के इर्द-गिर्द घूमते रहे।