ललित गर्ग राजनीति में दस दिन की सघन वार्ताओं और खासी नाटकीयता के बाद आखिर अंधेरा छंट गया और देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। फडणवीस का मुख्यमंत्री बनना न केवल महाराष्ट्र बल्कि देश की राजनीति को एक नई दिशा एवं दृष्टि देगा। क्योंकि फडणवीस ने अपने राजनीतिक कौशल से न केवल नये मानक गढ़े हैं बल्कि सकारात्मक राजनीति को नये आयाम दिये में सरकार गठन की राजनीति में दस दिन महाराष्ट्र की सघन वालांओं और खासी नाटकीयता के बाद आखिर अंधेरा छंट गया और देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। फडणवीस का मुख्यमंत्री बनना न केवल महाराष्ट्र बल्कि देश की राजनीति को एक नई दिशा एवं दृष्टि देगा। क्योंकि फडणवीस ने अपने राजनीतिक कौशल से न केवल नये मानक गढ़े हैं बल्कि सकारात्मक राजनीति को नये आयाम दिये हैं। हार का कारण स्वयं को मानने एवं जीत का श्रेय पार्टी एवं सहयोगी दलों को देने की विराट सोच रखने वाले फडणवीस को अब भाजपा के शीर्ष नेताओं में शुमार किया जाने लगा है। फडणवीस ने राजनीति के चाणक्यों के चक्रव्यूहों को कुछ ऐसा भेदा कि लोग उन्हें आधुनिक अभिमन्यु भी कहने लगे। बात सही भी है फडणवीस अब किसी चक्रव्यूह में फंसते नहीं बल्कि उसे भेदकर बाहर निकलते हैं। सामने कोई भी हो शह और मात के खेल में उनकी जीत अब गारंटी बन चुकी है। वे भाजपा के लिए चाणक्य हैं तो विपक्ष के लिए अबूझ पहेली। पिछले एक दशक से महाराष्ट्र की राजनीति उनके ही इर्द-गिर्द घूम रही है। ऐसे कद्दावर राजनेता के नेतृत्व में निश्चित ही अगली पारी सफल होने वाली है। बावजूद इसके विशाल बहुमत वाली इस सरकार के मुखिया के तौर पर फडणवीस की यह पारी किसी भी रूप में कम चुनौतीपूर्ण नहीं है फिर भी महाराष्ट्र को राजनीतिक स्थिरता और विकास के नए दौर में ले जाने की जिम्मेदारी निभाते हुए वह हर चुनौती के पार जायेंगे, लोगों ने उनकी पार्टी और सहयोगी दलों पर जो भरोसा जताया है, महायुति सरकार उनकी उम्मीदें पूरी करके एक नये इतिहास का सृजन करेगी, इसमें कोई शंका दूर तक नजर नहीं आती। तीसरी बार मुख्यमंत्री का ताज पहनने वाले देवेंद्र फडणवीस ने प्रखर राजनेता, अजातशत्रु, दूरदर्शी नायक एवं महाराष्ट्र- निर्माता के रूप में न केवल देश के लोगों का दिल जीता है, बल्कि विरोधियों के दिल में भी जगह बनाकर, अमिट यादों को जन-जन के हृदय में स्थापित कर अनेक राजनीतिक कीर्तिमान स्थापित किये हैं। फडणवीस यह नाम महाराष्ट्र राजनीतिक इतिहास का एक ऐसा स्वर्णिम पृष्ठ है, जिससे एक सशक्त जननायक, स्वप्नदर्शी राजनायक, आदर्श चिन्तक, नये महाराष्ट्र के निर्माता, कुशल प्रशासक के साथ-साथ राजनीति को एक खास रंग देने की महक उठती है । उनके व्यक्तित्व के इतने रूप हैं, इतने आयाम हैं, इतने रंग हैं, इतने दृष्टिकोण हैं, जिनमें वे व्यक्ति और नायक हैं, प्रशासक और राजनेता हैं, प्रबुद्ध और प्रधान है, वक्ता और नेता हैं, शासक एवं लोकतंत्र उन्नायक हैं। महाराष्ट्र राजनीति की एक खास स्थिति जहां सहयोगी दलों की आकांक्षाओं का ध्यान रखने और उन्हें यथासंभव संतुष्ट रखने की जरूरत से जुड़ी चुनौती है वहीं आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में महायुति से जुड़े दलों पर बेहतर प्रदर्शन की बड़ी जिम्मेदारी है। हालांकि पहली चुनौती मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे को संतोषजनक ढंग से निपटाने की है। एक बड़ी चुनौती महाराष्ट्र में भाजपा की ताकत को बलशाली बनाने की भी है। इन सब चुनौतियों एवं परिस्थितियों के बीच संतुलन बनाने एवं उनसे पार पाने की क्षमता फडणवीस में दिखती है। जो व्यक्ति 2022 में एकनाथ शिंदे मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री की बजाय उपमुख्यमंत्री की शिंदे मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री की बजाय उपमुख्यमंत्री की भूमिका मंजूर कर लेता है, पद से ज्यादा पार्टी हित को सामने रखता है, विशिष्ट परिस्थितियों में पार्टी के आग्रह पर न केवल सरकार का सुचारू संचालन सुनिश्चित करता है बल्कि चुनाव में पार्टी की अगुआई करते हुए उसे शानदार जीत भी दिलाता है, तो उन्हें मुख्यमंत्री की भूमिका सौंपी जा रही है तो अपनी पात्रता तो वह पहले ही अच्छी तरह सिद्ध कर चुके हैं, अब तो शासन के नये मानक गढ़ने है। यह स्पष्ट है कि देवेंद्र फडणवीस के राजनीतिक जीवन के नए दौर की शुरुआत संभावनाभरी है। भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद उन्होंने अपने भाषण में हिंदवी स्वराज से लेकर अहिल्याबाई होलकर का नाम लेकर अपनी राजनीतिक धारा को बिल्कुल स्पष्ट किया। चुनाव प्रचार के दौरान भी उनकी छवि आत्मविश्वास से भरे हिंदुत्ववादी शुद्ध स्वयंसेवक भाजपा नेता की बनी। उन्होंने कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं और उनको समर्थन देने वाले महाविकास आघाड़ी के विरुद्ध लगातार प्रखर प्रहार से अपनी छवि वर्तमान राजनीतिक धारा के अनुरूप बनाई। चुनाव के समय लगा था कि एक हैं तो सेफ हैं और बंटेंगे तो कटेंगे नारे को लेकर महायुति में मतभेद के बावजूद उन्होंने गजब का संतुलन बनाते हुए इन नारों के बल पर महायुति की जीत को उच्च शिखर देकर सबको आश्चर्यचकित किया। महायुति सरकार की नई पारी पिछली पारी जैसी सहजता और स्थिरता दिखा पाएगी या नहीं यह सवाल तो खड़ा ही है, लेकिन इस सवाल को नकारते हुए नयी सरकार अपना पूरा कार्यकाल उतार- चढ़ाव के बावजूद निष्कंटक पार करेगी। दो पुरानी और सुगठित राजनीतिक पार्टियों में हुई असाधारण तोड़फोड़ के परिणास्वरूप बनी महायुति ने हालांकि 2024 विधानसभा चुनावों में अपनी सार्थकता सिद्ध कर दी है और इसलिए अब इसे किसी भी रूप में कृत्रिम गठबंधन नहीं कहा जा सकता । फिर भी नए मुख्यमंत्री और भाजपा नेतृत्व को सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने और किसी भी असंतोष से बचने पर खास ध्यान देना होगा।