
शिवसागर | ताई अहोम युवा परिषद असम (टीएवाईपीए) ने ताई अहोम समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के लिए सरकार को 2025 तक की समय सीमा तय की है और चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वे तीव्र विरोध प्रदर्शन करेंगे। मंगलवार को संगठन के सदस्य शिवसागर की सड़कों पर उतर आए और अपनी लंबे समय से चली आ रही मांग को लेकर सह- जिला आयुक्त कार्यालय के बाहर एक विशाल रैली निकाली। नो एसटी, नो रेस्टलिखी तख्तियां थामे हुए बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं और युवा प्रदर्शन पर आए और सरकार पर समुदाय के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया। प्रदर्शन के दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प भी हुई। टीएवाईपीए के अध्यक्ष दिगंत तामुली ने झूठे वादों के साथ समुदाय को गुमराह करने के लिए सरकार की आलोचना की। तामुली ने कहा कि एसटी दर्जे के नाम पर सरकार से हमें जो कुछ मिला है, वह सब धोखा है। हम चाहते हैं कि 2025 तक हमें यह दर्जा मिल जाए। हम अनिश्चित काल, तक इंतजार नहीं कर सकते। उन्होंने छठी अनुसूची के लाभों की मांग भी दोहराई, जो कुछ आदिवासी समुदायों के लिए स्वायत्तता और विकास सुनिश्चित करती है । एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि जब हम गांवों या ग्रामीण इलाकों में विरोध प्रदर्शन करते हैं, तो हमारी आवाज को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसलिए हम सह – जिला आयुक्त कार्यालय के ठीक बाहर यहां हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारी मांगें सुनी जाएं। तामुली ने याद दिलाया कि चुनाव से पहले मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने ताई अहोम समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की तुलना ऐतिहासिक सरायघाट युद्ध से की थी, लेकिन वोट हासिल करने के बाद वे अपने वादों को भूल गए । तामुली ने कहा कि उन्होंने हमारे आंदोलन को सरायघाट की दूसरी लड़ाई कहा। अब उन्होंने हमें छोड़ दिया है। उन्होंने धमकी दी कि अगर सरकार उनकी मांग को नजरअंदाज करती रही तो वे राजनीतिक कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि इतिहास इस बात का सबूत है कि हमने 2016 में तरुण गोगोई की सरकार को वोट देकर सत्ता से बाहर कर दिया था क्योंकि उन्होंने हमें एसटी का दर्जा नहीं दिया था। अगर यह सरकार वही गलती दोहराती है, तो हम सुनिश्चित करेंगे कि उनका राजनीतिक सफाया हो जाए। सरायघाट की लड़ाई की भावना को अहोम युवाओं से बेहतर कोई नहीं समझ सकता । एसटी दर्जे की मांग सिर्फ ताई अहोम समुदाय तक सीमित नहीं है। पांच अन्य समुदाय- मोरान, मटक, चुटिया, आदिवासी (चाय जनजाति) और कोच – राजबोंगशी – भी इसी मान्यता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में केंद्र सरकार को असम सरकार की ओर से इन छह समुदायों को एसटी श्रेणी में शामिल करने का प्रस्ताव मिलने के बाद, चल रहे बजट सत्र के दौरान संसद में यह मुद्दा उठाया गया था। हालांकि, अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।
