धातुओं में सोना, चांदी के बाद तीसरे स्थान पर तांबा आता है। मगर गुणों में तांबा नंबर एक है। भले ही आज स्टील का बोलवाला है। चम्मच, कटोरी, गिलास, थाली, कलछी, पतीला, ट्रे आदि बर्तन रसोई घर की शान हैं। ये चमचमाते बर्तन दुकानों पर हाथों-हाथ बिकते हैं। दीवाली के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। उस रोज बर्तनों की दुकानों पर भारी भीड़ होती है। आज से 60-70 वर्ष पूर्व रसोई में तांबे के बर्तन प्रयोग में लाए जाते थे। उन दिनों आज की अपेक्षा व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता था। वास्तव में तांबा स्वास्थ्य के लिए रामबाण है। 4 विदेशों में हुए शोध से यह बात सामने आई है कि तांबा पेट के रोगों की अचूक दवा है। 4 तांबे के बर्तन में पका खाना और तांबे के लोटे रात्रि को रखा पानी प्रात उठकर पीने से पेट के कृमि समाप्त हो जाते हैं तथा पेट से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। 4 तांबा ऊष्मा का सुचालक है। इस धातु के पात्र भोजन जल्दी पकता है और ईधन की भी बचत होती है अर्थात् आम के आम गुठलियों के दाम वाली कहावत यहां चरितार्थ होती है। 4 तांबे के पात्र में पकाए भोजन में तांबे का कुछ भाग हमारे पेट में जाता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। 4 तांबे के पात्र में रखे भोजन को हर ओर से समान ताप मिलता है। इससे भोजन का स्वाद बढ़ जाता है तथा यह अधपका नहीं रहता । 4 इस धातु के पात्रों की अन्य धातुओं के पात्रों से अधिक मजबूती की गारंटी रहती है। इन बर्तनों का कई वर्षों तक उपयोग किया जा सकता है। 4 तांबे के पात्रों में एसिड वाले पदार्थ पकाने से भोजन का जायका खराब हो जाता है। इसलिए अमलीय पदार्थों को तांबे के पात्र में नहीं पकाना चाहिए । कसैला स्वाद आपके भोजन का मजा किरकिरा कर सकता है।